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IIT BHU का दावा: बैक्टीरिया से साफ करेंगे पानी, गंभीर रोगों से लोगों को बचाएंगे

देशभर में आज सबसे बड़ी समस्या शुद्ध पेय जल की है. शुद्ध पेय जल न मिलने की वजह से न जाने कितने लोगों की मौत हो जाती है. डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक सालाना लगभग 2.2 मिलियन मौतों के लिए गंदा पानी जिम्मेदार है, इनमें से 1.4 मिलियन बच्चे हैं.

बैक्टीरिया से साफ करेंगे पानी
बैक्टीरिया से साफ करेंगे पानी
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Published : Sep 22, 2021, 9:26 PM IST

वाराणसी: हम अपने प्राकृतिक संसाधनों का लगातार दोहन कर रहे हैं, जिसकी वजह से तमाम नदियां भी दूषित हो रही हैं. ऐसे में सबसे बड़ी समस्या शुद्ध जल की है. ऐसे में वाराणसी आईआईटी बैक्टीरिया के माध्यम से दूषित जल को शुद्ध करने का दावा कर रहा है. आईआईटी बीएचयू के वैज्ञानिकों ने नए बैक्टिरिया की खोज की है जो पानी से जहरीली धातु हेक्सावालेंट क्रोमियम को अलग करेगा. स्कूल ऑफ बायोकेमिकल इंजीनियरिंग के वैज्ञानिक डॉ. विशाल मिश्रा और उनके पीएचडी छात्र वीर सिंह ने दूषित साइट से नए जीवाणु स्ट्रेन को अलग किया है, जो अपशिष्ट जल से जहरीले हेक्सावलेंट क्रोमियम को हटा सकता है. बता दें कि हेक्सावलेंट क्रोमियम मानव में कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं जैसे कैंसर, गुर्दे, लीवर की खराबी, बांझपन के लिए जिम्मेदार है.

शोध छात्र वीर सिंह ने बताया कि यह शोध कार्य प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल 'जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल केमिकल इंजीनियरिंग (इम्पैक्ट फैक्टर 5.9)' में पहले ही प्रकाशित हो चुका है. यह शोध पानी से हेक्सावलेंट क्रोमियम जैसे जहरीले धातु आयनों को हटाने के लिए लागत प्रभावी और पर्यावरण के अनुकूल तरीके पर केंद्रित है. छात्र का कहना है कि बैक्टीरिया आसानी से उगाए जा सकते हैं.

बैक्टीरिया से साफ करेंगे पानी

इस संबंध में डॉ. विशाल मिश्रा ने बताया कि यह नया बैक्टीरियल स्ट्रेन हेक्सावलेंट क्रोमियम की बड़ी मात्रा को सहन करने में सक्षम है. यह अन्य पारंपरिक तरीकों की तुलना में अपशिष्ट जल से हेक्सावलेंट क्रोमियम को हटाने के लिए बहुत प्रभावी है. इस बैक्टीरियल स्ट्रेन ने जलीय माध्यम वाले क्रोमियम में तेजी से विकास दर दिखाई और जल उपचार प्रक्रिया के बाद आसानी से जलीय माध्यम से अलग हो गए. यह जीवाणु स्ट्रेन बहुत फायदेमंद है क्योंकि पानी से इसे हटाने के बाद अतिरिक्त पृथक्करण प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं होती है. उन्होंने बताया कि बैक्टीरियल मध्यस्थता अपशिष्ट जल उपचार प्रक्रिया बहुत सस्ती और गैर-विषाक्त है क्योंकि इसमें महंगे उपकरणों और रसायनों की भागीदारी नहीं है. डॉ. विशाल मिश्रा ने कहा कि शोधकर्ताओं ने औद्योगिक और सिंथेटिक अपशिष्ट जल में इस जीवाणु तनाव की हेक्सावलेंट क्रोमियम हटाने की क्षमता का परीक्षण किया है और संतोषजनक परिणाम पाए हैं.

इसे भी पढ़ें- पतित पावनी मां गंगा का जल नहीं होगा प्रदूषित, नये मॉडल का प्रयोग

एसोसिएट प्रोफेसर विशाल मिश्रा ने बताया विकासशील देशों में जल जनित रोग सबसे बड़ी समस्या है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार हर साल 3.4 मिलियन लोग इनमें ज्यादातर बच्चे पानी से संबंधित बीमारियों से मर जाते हैं. संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के आकलन के अनुसार बैक्टीरिया से दूषित पानी के सेवन से हर दिन 4000 बच्चे मर जाते हैं. डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट है कि 2.6 बिलियन से अधिक लोगों की स्वच्छ पानी तक पहुंच नहीं है, जो सालाना लगभग 2.2 मिलियन मौतों के लिए जिम्मेदार है, इनमें से 1.4 मिलियन बच्चे हैं. पानी की गुणवत्ता में सुधार करके वैश्विक जल जनित बीमारियों को कम किया जा सकता है.

बता दें कि हेक्सावलेंट क्रोमियम जैसी भारी धातुओं से होने वाला कैंसर दुनिया भर में एक गंभीर समस्या है. भारत और चीन जैसे विकासशील देश भारी धातु संदूषण के प्रति बहुत संवेदनशील हैं. हेक्सावलेंट क्रोमियम मानव शरीर में मुख्य रूप से त्वचा के संपर्क, दूषित पानी के सेवन या खाद्य उत्पाद में संदूषण के माध्यम से जाता है.

वाराणसी: हम अपने प्राकृतिक संसाधनों का लगातार दोहन कर रहे हैं, जिसकी वजह से तमाम नदियां भी दूषित हो रही हैं. ऐसे में सबसे बड़ी समस्या शुद्ध जल की है. ऐसे में वाराणसी आईआईटी बैक्टीरिया के माध्यम से दूषित जल को शुद्ध करने का दावा कर रहा है. आईआईटी बीएचयू के वैज्ञानिकों ने नए बैक्टिरिया की खोज की है जो पानी से जहरीली धातु हेक्सावालेंट क्रोमियम को अलग करेगा. स्कूल ऑफ बायोकेमिकल इंजीनियरिंग के वैज्ञानिक डॉ. विशाल मिश्रा और उनके पीएचडी छात्र वीर सिंह ने दूषित साइट से नए जीवाणु स्ट्रेन को अलग किया है, जो अपशिष्ट जल से जहरीले हेक्सावलेंट क्रोमियम को हटा सकता है. बता दें कि हेक्सावलेंट क्रोमियम मानव में कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं जैसे कैंसर, गुर्दे, लीवर की खराबी, बांझपन के लिए जिम्मेदार है.

शोध छात्र वीर सिंह ने बताया कि यह शोध कार्य प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल 'जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल केमिकल इंजीनियरिंग (इम्पैक्ट फैक्टर 5.9)' में पहले ही प्रकाशित हो चुका है. यह शोध पानी से हेक्सावलेंट क्रोमियम जैसे जहरीले धातु आयनों को हटाने के लिए लागत प्रभावी और पर्यावरण के अनुकूल तरीके पर केंद्रित है. छात्र का कहना है कि बैक्टीरिया आसानी से उगाए जा सकते हैं.

बैक्टीरिया से साफ करेंगे पानी

इस संबंध में डॉ. विशाल मिश्रा ने बताया कि यह नया बैक्टीरियल स्ट्रेन हेक्सावलेंट क्रोमियम की बड़ी मात्रा को सहन करने में सक्षम है. यह अन्य पारंपरिक तरीकों की तुलना में अपशिष्ट जल से हेक्सावलेंट क्रोमियम को हटाने के लिए बहुत प्रभावी है. इस बैक्टीरियल स्ट्रेन ने जलीय माध्यम वाले क्रोमियम में तेजी से विकास दर दिखाई और जल उपचार प्रक्रिया के बाद आसानी से जलीय माध्यम से अलग हो गए. यह जीवाणु स्ट्रेन बहुत फायदेमंद है क्योंकि पानी से इसे हटाने के बाद अतिरिक्त पृथक्करण प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं होती है. उन्होंने बताया कि बैक्टीरियल मध्यस्थता अपशिष्ट जल उपचार प्रक्रिया बहुत सस्ती और गैर-विषाक्त है क्योंकि इसमें महंगे उपकरणों और रसायनों की भागीदारी नहीं है. डॉ. विशाल मिश्रा ने कहा कि शोधकर्ताओं ने औद्योगिक और सिंथेटिक अपशिष्ट जल में इस जीवाणु तनाव की हेक्सावलेंट क्रोमियम हटाने की क्षमता का परीक्षण किया है और संतोषजनक परिणाम पाए हैं.

इसे भी पढ़ें- पतित पावनी मां गंगा का जल नहीं होगा प्रदूषित, नये मॉडल का प्रयोग

एसोसिएट प्रोफेसर विशाल मिश्रा ने बताया विकासशील देशों में जल जनित रोग सबसे बड़ी समस्या है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार हर साल 3.4 मिलियन लोग इनमें ज्यादातर बच्चे पानी से संबंधित बीमारियों से मर जाते हैं. संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के आकलन के अनुसार बैक्टीरिया से दूषित पानी के सेवन से हर दिन 4000 बच्चे मर जाते हैं. डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट है कि 2.6 बिलियन से अधिक लोगों की स्वच्छ पानी तक पहुंच नहीं है, जो सालाना लगभग 2.2 मिलियन मौतों के लिए जिम्मेदार है, इनमें से 1.4 मिलियन बच्चे हैं. पानी की गुणवत्ता में सुधार करके वैश्विक जल जनित बीमारियों को कम किया जा सकता है.

बता दें कि हेक्सावलेंट क्रोमियम जैसी भारी धातुओं से होने वाला कैंसर दुनिया भर में एक गंभीर समस्या है. भारत और चीन जैसे विकासशील देश भारी धातु संदूषण के प्रति बहुत संवेदनशील हैं. हेक्सावलेंट क्रोमियम मानव शरीर में मुख्य रूप से त्वचा के संपर्क, दूषित पानी के सेवन या खाद्य उत्पाद में संदूषण के माध्यम से जाता है.

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