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Varanasi News : मेडिकली स्मार्ट हुआ बनारस, जर्मन छात्रा सीख रही मरीजों के इलाज का तरीका

वाराणसी में चिकित्सा प्रणाली अपनी मुख्य भमिका निभा रही है. सरकारी से लेकर प्राइवेट संस्थानों तक इसकी डिमांड देखी जा रही है. बनारस इन दिनों जर्मनी की छात्रा सोफी भारत की इलाज पद्धति सीख रही हैं.

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डॉ. सोफी
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Published : Feb 28, 2023, 2:20 PM IST

जर्मनी की छात्रा डॉ. सोफी वाराणसी में सीख रहीं भारत की इलाज पद्धति.

वाराणसीः धर्म नगरी काशी धर्म के साथ-साथ शिक्षा की राजधानी बनती जा रही है. यहां की चिकित्सा प्रणाली अपनी मुख्य भमिका निभा रही है. सरकारी से लेकर प्राइवेट संस्थानों तक इसकी डिमांड देखी जा रही है. ऐसे में सात समंदर पार से आने वाले विदेशी छात्र भी इसका लाभ ले रहे हैं. इसका एक उदाहरण जर्मनी की छात्रा सोफी हैं, जो इन दिनों वराणसी के एक निजी आई सर्जिकल इंस्टीयूट में भारत की इलाज पद्धति सीख रही हैं.

दरअसल, वाराणसी के एक अस्पताल में जर्मनी से आई एक डॉक्टर यहां की चिकित्सा पद्धति को सीख रही हैं. वह इसलिए क्योंकि जर्मनी भले ही हमसे डेवलप्ड देश है, लेकिन वहां पर मरीजों का तेजी से इलाज हमारे यहां जितना संभव नहीं है. जहां जर्मनी में इलाज में एक लंबा वक्त लग जाता है. वहीं, भारत में इलाज का तरीका सरल और कम समय का है.

भारत में मरीजों के लिए रिसोर्सेज जर्मनी से अलग हैं
इस बारे में आई इंस्टीट्यूट वाराणसी के फैलो डॉ. जय सिंह ने बताया कि 'हम एक-दूसरे से सीखते हैं. ये जर्मनी से आयी हैं और यहां के परिवेश में ट्रीटमेंट के तरीके हैं वो सीख रही हैं, क्योंकि हर जगह पर ये बीमारी कहीं पर कम होती है तो कहीं पर ज्यादा होती है'. उन्होंने कहा कि जर्मनी डेवलप्ड कंट्री है और भारत डेवलपिंग कंट्री है. यहां पर मरीजों की अपेक्षाएं और यहां की सहूलियत या कहें कि रिसोर्सेज अलग हैं.

सोफी हमारी चिकित्सा प्रणाली को सीख रही हैं
उन्होंने बताया कि 'हमारा देश विकासशील देश है. कम से कम खर्च में कितने बेहतर सुविधा हम मरीज को दे पाते हैं, ये हमारा फोकस रहता है. ये सब चीजें ये वहां से आने के बाद देख और सीख रही हैं. यह एक तरीके से जानकारियों और चिकित्सा प्रणाली का आदान-प्रदान हो रहा है. ये हमारी प्रणाली को सीख रहे हैं. हो सकता है भविष्य में हम भी जाएं और इनके जगह की शिक्षा प्रणाली हम कुछ सीखें'.

शॉर्ट इंटरनेशनल फेलोशिप के लिए आई हैं सोफी
जर्मनी से आईं डॉ. सोफी ने बताया कि वह डॉक्टर प्रत्युश रंजन और डॉ. कार्तिकेय के मेंटरशिप में शॉर्ट इंटरनेशनल फेलोशिप के लिए काशी आई हुई हैं. वह यहां पर जनवरी से आई हुई हैं. उन्होंने बताया कि म्युचुअल फ्रेंड से यहां के बारे में जानकारी मिली. उन्होंने मुझे यहां के बारे में और यहां डॉक्टरों की कार्यशैली के बारे में बताया.

यहां पर मरीजों के इलाज का तरीका अलग है
डॉ. सोफी ने बताया कि मैंने यहां आकर बहुत कुछ सीखा है. यहां पर बहुत ही पैशनेट टीचर हैं, जिन्होंने मुझे बहुत कुछ सिखाया है. यह मेरे लिए एक अलग माइंडसेट है, जिसे मैंने अपने यहां पर नहीं देखा. यहां पर मरीजों के इलाज का तरीका अलग है. साथ ही मरीजों की भी मानसिकता अलग है. इसलिए यह मेरे लिए अलग ही सोचने और सीखने का तरीका है. मैं बहुत कुछ समझ और सीख रही हूं.

वाराणसी की संस्कृति भी सीख रही हैं सोफी
उन्होंने बताया कि मैं सिर्फ यहां पर चिकित्सा ही नहीं सीख रही हूं. मुझे सिर्फ अस्पताल में ही नहीं बल्कि अस्पताल के बाहर भी लेक्चर सिखाया जाता है. वह मुझे यहां अपनी संस्कृति और धर्मों की कार्य पद्धति भी सिखाने की कोशिश करते हैं. यह मेरे लिए बेहतरीन एक्सपीरियंस है. मैं इससे भी बहुत कुछ सीख रही हूं. ये सब चीजें भी मैं अपने घर लेकर जाऊंगी.

सोफी को मिल रहा कल्चरल सपोर्ट
इस बारे में उनके साथी डॉ. नीतीश दीक्षित ने बताया कि मेरे साथ डॉ. सोफी हैं. यह जर्मनी से दो महीने के लिए ऑब्जर्वेशन के लिए आई हुई हैं. उन्हें यहां पर एक महीना हो चुका है. उन्हें सिर्फ एजुकेशन में ही नहीं बल्कि कल्चरल सपोर्ट भी मिल रहा है. वह ये सभी चीजें सीख पा रही हैं. डॉ. सोफी यहां पर आई हैं. हो सकता है भविष्य में हम लोगों को वहां पर जाने का मौका मिले. हम वहां से कुछ सीख पाएं और अपने यहां पर मरीजों को कुछ अच्छा दे पाएं.

अधिक मरीजों का कम समय में इलाज होता है
जर्मनी में हमसे अधिक डेवलपमेंट है तो वह हमारे यहां क्यों सीखने आई हैं? इसके जवाब में नीतीश दीक्षित ने कहा कि कुछ बीमारियां होती हैं जो विश्व के कुछ क्षेत्रों में ज्यादा पाई जाती हैं. कुछ बीमारियां हैं जो किसी दूसरे क्षेत्र में ज्यादा पाई जाती हैं. कई चीजें थी जो डॉ. सोफी सीखना चाहती थी. वहां पर मरीजों की संख्या कम होती है, लेकिन इलाज का तरीका लंबा चलता है. यहां पर मरीजों की संख्या अधिक होती है, लेकिन हम उन्हें हम कम समय में बेहतर सुविधा प्रदान करते हैं. सोफी को यह देखना और समझना था.

बदल रहा बनारस का हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर
गौरतलब है कि 2014 के बाद से बनारस के हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला. यहां पर कैंसर अस्पताल बनाने के साथ अन्य सरकारी अस्पतालों को ना सिर्फ एक नया रूप दिया गया, बल्कि नई-नई सुविधाओं को भी विकसित किया गया. यही नहीं जच्चा-बच्चा की सुविधा को लेकर यहां पर अलग-अलग मैटरनिटी हॉस्पिटल भी बनाए गए. पीएचसी-सीएचसी की तस्वीरें बदली और वेलनेस सेंटर की सौगात मिली.

बड़ी बात यह रही कि सरकार सरकारी के साथ-साथ निजी संस्थाओं को भी जोड़कर सरकार मरीजों का बेहतर इलाज कराने की कोशिश कर रही है. इसका प्रमाण कोरोना काल और बीते दिनों वाराणसी में शुरू हुई ई रूपी सुविधा के रूप में नजर आता है. आंकड़ों की बात करें तो, अब तक लगभग हजार करोड़ से ज्यादा की सौगात बनारस को मेडिकल के क्षेत्र में मिल चुकी है. ऐसे में जर्मन से आई छात्रा का वाराणसी में इलाज सीखना बनारस की बदलती तस्वीर का एक उदाहरण है.

पढ़ेंः Holi 2023: महादेव की काशी में कान्हा खेल रहे होली! जाने कैसे ये बेटियों के लिए बन रही खास

जर्मनी की छात्रा डॉ. सोफी वाराणसी में सीख रहीं भारत की इलाज पद्धति.

वाराणसीः धर्म नगरी काशी धर्म के साथ-साथ शिक्षा की राजधानी बनती जा रही है. यहां की चिकित्सा प्रणाली अपनी मुख्य भमिका निभा रही है. सरकारी से लेकर प्राइवेट संस्थानों तक इसकी डिमांड देखी जा रही है. ऐसे में सात समंदर पार से आने वाले विदेशी छात्र भी इसका लाभ ले रहे हैं. इसका एक उदाहरण जर्मनी की छात्रा सोफी हैं, जो इन दिनों वराणसी के एक निजी आई सर्जिकल इंस्टीयूट में भारत की इलाज पद्धति सीख रही हैं.

दरअसल, वाराणसी के एक अस्पताल में जर्मनी से आई एक डॉक्टर यहां की चिकित्सा पद्धति को सीख रही हैं. वह इसलिए क्योंकि जर्मनी भले ही हमसे डेवलप्ड देश है, लेकिन वहां पर मरीजों का तेजी से इलाज हमारे यहां जितना संभव नहीं है. जहां जर्मनी में इलाज में एक लंबा वक्त लग जाता है. वहीं, भारत में इलाज का तरीका सरल और कम समय का है.

भारत में मरीजों के लिए रिसोर्सेज जर्मनी से अलग हैं
इस बारे में आई इंस्टीट्यूट वाराणसी के फैलो डॉ. जय सिंह ने बताया कि 'हम एक-दूसरे से सीखते हैं. ये जर्मनी से आयी हैं और यहां के परिवेश में ट्रीटमेंट के तरीके हैं वो सीख रही हैं, क्योंकि हर जगह पर ये बीमारी कहीं पर कम होती है तो कहीं पर ज्यादा होती है'. उन्होंने कहा कि जर्मनी डेवलप्ड कंट्री है और भारत डेवलपिंग कंट्री है. यहां पर मरीजों की अपेक्षाएं और यहां की सहूलियत या कहें कि रिसोर्सेज अलग हैं.

सोफी हमारी चिकित्सा प्रणाली को सीख रही हैं
उन्होंने बताया कि 'हमारा देश विकासशील देश है. कम से कम खर्च में कितने बेहतर सुविधा हम मरीज को दे पाते हैं, ये हमारा फोकस रहता है. ये सब चीजें ये वहां से आने के बाद देख और सीख रही हैं. यह एक तरीके से जानकारियों और चिकित्सा प्रणाली का आदान-प्रदान हो रहा है. ये हमारी प्रणाली को सीख रहे हैं. हो सकता है भविष्य में हम भी जाएं और इनके जगह की शिक्षा प्रणाली हम कुछ सीखें'.

शॉर्ट इंटरनेशनल फेलोशिप के लिए आई हैं सोफी
जर्मनी से आईं डॉ. सोफी ने बताया कि वह डॉक्टर प्रत्युश रंजन और डॉ. कार्तिकेय के मेंटरशिप में शॉर्ट इंटरनेशनल फेलोशिप के लिए काशी आई हुई हैं. वह यहां पर जनवरी से आई हुई हैं. उन्होंने बताया कि म्युचुअल फ्रेंड से यहां के बारे में जानकारी मिली. उन्होंने मुझे यहां के बारे में और यहां डॉक्टरों की कार्यशैली के बारे में बताया.

यहां पर मरीजों के इलाज का तरीका अलग है
डॉ. सोफी ने बताया कि मैंने यहां आकर बहुत कुछ सीखा है. यहां पर बहुत ही पैशनेट टीचर हैं, जिन्होंने मुझे बहुत कुछ सिखाया है. यह मेरे लिए एक अलग माइंडसेट है, जिसे मैंने अपने यहां पर नहीं देखा. यहां पर मरीजों के इलाज का तरीका अलग है. साथ ही मरीजों की भी मानसिकता अलग है. इसलिए यह मेरे लिए अलग ही सोचने और सीखने का तरीका है. मैं बहुत कुछ समझ और सीख रही हूं.

वाराणसी की संस्कृति भी सीख रही हैं सोफी
उन्होंने बताया कि मैं सिर्फ यहां पर चिकित्सा ही नहीं सीख रही हूं. मुझे सिर्फ अस्पताल में ही नहीं बल्कि अस्पताल के बाहर भी लेक्चर सिखाया जाता है. वह मुझे यहां अपनी संस्कृति और धर्मों की कार्य पद्धति भी सिखाने की कोशिश करते हैं. यह मेरे लिए बेहतरीन एक्सपीरियंस है. मैं इससे भी बहुत कुछ सीख रही हूं. ये सब चीजें भी मैं अपने घर लेकर जाऊंगी.

सोफी को मिल रहा कल्चरल सपोर्ट
इस बारे में उनके साथी डॉ. नीतीश दीक्षित ने बताया कि मेरे साथ डॉ. सोफी हैं. यह जर्मनी से दो महीने के लिए ऑब्जर्वेशन के लिए आई हुई हैं. उन्हें यहां पर एक महीना हो चुका है. उन्हें सिर्फ एजुकेशन में ही नहीं बल्कि कल्चरल सपोर्ट भी मिल रहा है. वह ये सभी चीजें सीख पा रही हैं. डॉ. सोफी यहां पर आई हैं. हो सकता है भविष्य में हम लोगों को वहां पर जाने का मौका मिले. हम वहां से कुछ सीख पाएं और अपने यहां पर मरीजों को कुछ अच्छा दे पाएं.

अधिक मरीजों का कम समय में इलाज होता है
जर्मनी में हमसे अधिक डेवलपमेंट है तो वह हमारे यहां क्यों सीखने आई हैं? इसके जवाब में नीतीश दीक्षित ने कहा कि कुछ बीमारियां होती हैं जो विश्व के कुछ क्षेत्रों में ज्यादा पाई जाती हैं. कुछ बीमारियां हैं जो किसी दूसरे क्षेत्र में ज्यादा पाई जाती हैं. कई चीजें थी जो डॉ. सोफी सीखना चाहती थी. वहां पर मरीजों की संख्या कम होती है, लेकिन इलाज का तरीका लंबा चलता है. यहां पर मरीजों की संख्या अधिक होती है, लेकिन हम उन्हें हम कम समय में बेहतर सुविधा प्रदान करते हैं. सोफी को यह देखना और समझना था.

बदल रहा बनारस का हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर
गौरतलब है कि 2014 के बाद से बनारस के हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला. यहां पर कैंसर अस्पताल बनाने के साथ अन्य सरकारी अस्पतालों को ना सिर्फ एक नया रूप दिया गया, बल्कि नई-नई सुविधाओं को भी विकसित किया गया. यही नहीं जच्चा-बच्चा की सुविधा को लेकर यहां पर अलग-अलग मैटरनिटी हॉस्पिटल भी बनाए गए. पीएचसी-सीएचसी की तस्वीरें बदली और वेलनेस सेंटर की सौगात मिली.

बड़ी बात यह रही कि सरकार सरकारी के साथ-साथ निजी संस्थाओं को भी जोड़कर सरकार मरीजों का बेहतर इलाज कराने की कोशिश कर रही है. इसका प्रमाण कोरोना काल और बीते दिनों वाराणसी में शुरू हुई ई रूपी सुविधा के रूप में नजर आता है. आंकड़ों की बात करें तो, अब तक लगभग हजार करोड़ से ज्यादा की सौगात बनारस को मेडिकल के क्षेत्र में मिल चुकी है. ऐसे में जर्मन से आई छात्रा का वाराणसी में इलाज सीखना बनारस की बदलती तस्वीर का एक उदाहरण है.

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