ETV Bharat / state

काशी में जर्मन वैज्ञानिकों ने जानी गंगा की हालत, आंकड़े हैं डराने वाले

प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में जर्मनी के विशेषज्ञ अधिकारियों की टीम पहुंची. टीम के वैज्ञानिकों ने गंगा में दो दिनों तक अलग-अलग जगहों से वॉटर सैंपल लिए. जानिए क्या कहते हैं गंगा से जुड़े आकड़ें...

जर्मन वैज्ञानिकों ने जानी गंगा की हालत.
author img

By

Published : Nov 22, 2019, 1:28 PM IST

वाराणसी: गंगा को साफ और स्वच्छ करने के उद्देश्य से अलग-अलग सरकारें कवायद करती रही हैं, लेकिन गंगा की हालात सुधरने की जगह बिगड़ती ही जा रही है. गंगा की स्थिति को सुधारने के लिए वर्तमान सरकार भी अलग-अलग प्रोजेक्ट चला रही है, लेकिन क्या वास्तव में हालात सुधरे हैं. यह सवाल बड़ा है. इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने के लिए पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में जर्मनी के विशेषज्ञ अधिकारियों की टीम पहुंची.

देखें खास रिपोर्ट.

वैज्ञानिकों ने गंगा में दो दिनों तक अलग-अलग जगहों से वॉटर सैंपल लिए. इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को हाईटेक बनाए जाने को लेकर गहन मंथन भी हुआ. विशेषज्ञों की टीम ने वाराणसी में महाश्मशान मणिकर्णिका के अलावा कई अन्य जगहों से वाटर सैंपल लिए. वहीं गंगा में सीधे गिर रहे नाले को देखकर वैज्ञानिकों ने काफी असंतोष जताया. जानिए क्या कहते हैं गंगा से जुड़े आकड़ें...

गंगा की बदहाली

  • विशेषज्ञों की टीम ने तीन नालों को सीधे गंगा में गिरता हुआ पाया.
  • बीते सितंबर से प्रति 100 मिलीलीटर पानी में कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया की मात्रा मानक से 68 गुना ज्यादा पाई गई.
  • शहर के बाहर यह मानक पांच गुना ज्यादा है.
  • प्रयागराज-मिर्जापुर से होते हुए काशी पहुंचने तक कई गुना प्रदूषित हो रहा है गंगाजल.
  • शहरी क्षेत्र में गंगाजल में हानिकारक कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया की मात्रा मानक से कहीं ज्यादा है.
  • शहरी क्षेत्र में गंगा के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा भी मानक से कम है.
  • प्रति लीटर तीन मिलीग्राम ऑक्सीजन की मात्रा नदी के जल में होनी चाहिए.
  • जून में 3.5, जुलाई में 3.8, अगस्त में 4.2 और सितंबर में 4 मिलीग्राम रही है.
    etv bharat
    अलग-अलग जगहों से लिए गए वॉटर सैंपल.

यह आंकड़े बयां कर रहे हैं कि गंगा के हालात अभी ठीक नहीं है. हालांकि अभी बाढ़ का सीजन खत्म होने के बाद गंगा में पानी है, लेकिन लगातार कई जगहों से गिर रहे नाले और फैक्ट्रियों से आ रहा केमिकल गंगा को प्रदूषित कर रहा है. टीम ने जल निगम गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई के अधिकारियों के साथ भी मुलाकात की है. विशेषज्ञों ने दीनापुर भगवानपुर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का निरीक्षण किया है. इस दौरान यह बातें सामने आई कि अभी एसटीपी आधी क्षमता से ही कार्य कर पा रहा है, जो गंगा में गिर रहे नाले को सीधे तौर पर रोकने में असफल है. अस्सी नाला भी सीधे गंगा में मिल रहा है, क्योंकि 50 एमएलडी क्षमता का एसटीपी प्लांट अब तक तैयार नहीं हो पाया है, जिसकी वजह से प्रदूषण का स्तर गंगा में कम होने की जगह बढ़ रहा है.

etv bharat
101 बिंदुओं पर होगी गंगा की जांच.

महीने वार टोटल कॉलीफॉर्म का स्तर

  • जनवरी- 43,000
  • फरवरी - 31,000
  • मार्च - 32,000
  • अप्रैल - 34,000
  • मई - 34,000
  • जून - 27,000
  • जुलाई - 34,000
  • अगस्त - 31,000
  • सितंबर - 34,000

पीने में टोटल कॉलीफॉर्म की मात्रा जीरो और नदी के पानी में प्रति 100 मिलीलीटर में 500 एमपीएन तक हो सकती है, लेकिन जनवरी से सितंबर तक के आंकड़ों में यह बयां हो रहा है कि इसकी मात्रा निर्धारित मानक से 68 गुना ज्यादा है.

etv bharat
जर्मन वैज्ञानिकों ने जानी गंगा की हालत.
क्या है टोटल कॉलीफॉर्म
दरअसल, टोटल कॉलीफॉर्म वह मानक है, जो किसी भी पानी को पीने योग्य या नहाने योग्य बताने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा प्राप्त किया जाता है. पीने के पानी में इसकी क्षमता जीरो, जबकि नदी के पानी में पीने व नहाने योग्य होने के लिए प्रति 100 मिलीलीटर में 500 एमपीए होनी चाहिए. इसकी मात्रा ज्यादा होने का मतलब है कि गंगा या किसी भी नदी में केमिकल और मलमूत्र की मौजूदगी जरूरत से ज्यादा है.

वाराणसी: गंगा को साफ और स्वच्छ करने के उद्देश्य से अलग-अलग सरकारें कवायद करती रही हैं, लेकिन गंगा की हालात सुधरने की जगह बिगड़ती ही जा रही है. गंगा की स्थिति को सुधारने के लिए वर्तमान सरकार भी अलग-अलग प्रोजेक्ट चला रही है, लेकिन क्या वास्तव में हालात सुधरे हैं. यह सवाल बड़ा है. इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने के लिए पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में जर्मनी के विशेषज्ञ अधिकारियों की टीम पहुंची.

देखें खास रिपोर्ट.

वैज्ञानिकों ने गंगा में दो दिनों तक अलग-अलग जगहों से वॉटर सैंपल लिए. इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को हाईटेक बनाए जाने को लेकर गहन मंथन भी हुआ. विशेषज्ञों की टीम ने वाराणसी में महाश्मशान मणिकर्णिका के अलावा कई अन्य जगहों से वाटर सैंपल लिए. वहीं गंगा में सीधे गिर रहे नाले को देखकर वैज्ञानिकों ने काफी असंतोष जताया. जानिए क्या कहते हैं गंगा से जुड़े आकड़ें...

गंगा की बदहाली

  • विशेषज्ञों की टीम ने तीन नालों को सीधे गंगा में गिरता हुआ पाया.
  • बीते सितंबर से प्रति 100 मिलीलीटर पानी में कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया की मात्रा मानक से 68 गुना ज्यादा पाई गई.
  • शहर के बाहर यह मानक पांच गुना ज्यादा है.
  • प्रयागराज-मिर्जापुर से होते हुए काशी पहुंचने तक कई गुना प्रदूषित हो रहा है गंगाजल.
  • शहरी क्षेत्र में गंगाजल में हानिकारक कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया की मात्रा मानक से कहीं ज्यादा है.
  • शहरी क्षेत्र में गंगा के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा भी मानक से कम है.
  • प्रति लीटर तीन मिलीग्राम ऑक्सीजन की मात्रा नदी के जल में होनी चाहिए.
  • जून में 3.5, जुलाई में 3.8, अगस्त में 4.2 और सितंबर में 4 मिलीग्राम रही है.
    etv bharat
    अलग-अलग जगहों से लिए गए वॉटर सैंपल.

यह आंकड़े बयां कर रहे हैं कि गंगा के हालात अभी ठीक नहीं है. हालांकि अभी बाढ़ का सीजन खत्म होने के बाद गंगा में पानी है, लेकिन लगातार कई जगहों से गिर रहे नाले और फैक्ट्रियों से आ रहा केमिकल गंगा को प्रदूषित कर रहा है. टीम ने जल निगम गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई के अधिकारियों के साथ भी मुलाकात की है. विशेषज्ञों ने दीनापुर भगवानपुर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का निरीक्षण किया है. इस दौरान यह बातें सामने आई कि अभी एसटीपी आधी क्षमता से ही कार्य कर पा रहा है, जो गंगा में गिर रहे नाले को सीधे तौर पर रोकने में असफल है. अस्सी नाला भी सीधे गंगा में मिल रहा है, क्योंकि 50 एमएलडी क्षमता का एसटीपी प्लांट अब तक तैयार नहीं हो पाया है, जिसकी वजह से प्रदूषण का स्तर गंगा में कम होने की जगह बढ़ रहा है.

etv bharat
101 बिंदुओं पर होगी गंगा की जांच.

महीने वार टोटल कॉलीफॉर्म का स्तर

  • जनवरी- 43,000
  • फरवरी - 31,000
  • मार्च - 32,000
  • अप्रैल - 34,000
  • मई - 34,000
  • जून - 27,000
  • जुलाई - 34,000
  • अगस्त - 31,000
  • सितंबर - 34,000

पीने में टोटल कॉलीफॉर्म की मात्रा जीरो और नदी के पानी में प्रति 100 मिलीलीटर में 500 एमपीएन तक हो सकती है, लेकिन जनवरी से सितंबर तक के आंकड़ों में यह बयां हो रहा है कि इसकी मात्रा निर्धारित मानक से 68 गुना ज्यादा है.

etv bharat
जर्मन वैज्ञानिकों ने जानी गंगा की हालत.
क्या है टोटल कॉलीफॉर्म
दरअसल, टोटल कॉलीफॉर्म वह मानक है, जो किसी भी पानी को पीने योग्य या नहाने योग्य बताने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा प्राप्त किया जाता है. पीने के पानी में इसकी क्षमता जीरो, जबकि नदी के पानी में पीने व नहाने योग्य होने के लिए प्रति 100 मिलीलीटर में 500 एमपीए होनी चाहिए. इसकी मात्रा ज्यादा होने का मतलब है कि गंगा या किसी भी नदी में केमिकल और मलमूत्र की मौजूदगी जरूरत से ज्यादा है.
Intro:स्पेशल:

वाराणसी: गंगा को साफ और स्वच्छ करने के उद्देश्य से लंबे वक्त से अलग-अलग सरकार कवायद कर रही है लेकिन हालात सुधारने की जगह बिगड़ते ही जा रहे हैं. गंगा की स्थिति को सुधारने के लिए वर्तमान सरकार भी अलग-अलग प्रोजेक्ट चला रही है लगातार गंगा के पानी की निगरानी भी की जा रही है लेकिन क्या वास्तव में हालात सुधरे हैं. यह सवाल बड़ा है इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने के लिए पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में जर्मनी के विशेषज्ञ अधिकारियों कि टीम पहुंची हुई थी. टीम में शामिल वैज्ञानिकों ने गंगा में 2 दिनों तक अलग-अलग जगहों से वॉटर सैंपल इन करने के साथ ही उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के लिए हाईटेक बनाए जाने को लेकर गहन मंथन किया है. विशेषज्ञों की टीम ने वाराणसी में महाश्मशान मणिकर्णिका के आसपास के अलावा कई अन्य जगहों से वाटर सिंह की है और इसकी जांच कर रिपोर्ट केंद्र सरकार के अधीन काम करने वाले जल शक्ति मंत्रालय को भेजेंगे बताया जा रहा है कि मानकों का निर्धारण करते हुए गंगा को लेकर कई नई जानकारियां इस टीम के द्वारा की गई जांच में सामने आ सकती हैं. फिलहाल टीम को कई जगहों पर अभी भी गंगा में सीधे गिर रहे नाले भी दिखाई दिए हैं जिसे लेकर उन्होंने काफी असंतोष भी जताया है.


Body:वीओ-01 दरअसल जर्मनी से आए विशेषज्ञों की टीम में वैज्ञानिक पैट्रिक डॉल, क्रिस्टिन और नमामि गंगे की सलाहकार डॉ स्वाति शामिल रहीं. इस टीम ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों के साथ गंगा में 2 दिनों तक लगातार गस्त करते हुए अलग-अलग जगहों से गंगा के वाटर की टेंपरिंग की है और अलग-अलग पैमानों पर गंगाजल की गुणवत्ता की जांच करने के लिए इसके नमूने का प्रशिक्षण भी किया है और इसकी तैयारी पोर्ट को जल शक्ति मंत्रालय को भेजे जाने की तैयारी की जा रही है. कुल मिलाकर क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जर्मन वैज्ञानिकों की एक टीम 101 बिंदुओं पर गंगा के पानी का परीक्षण करेगी और इसकी रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्य योजना तैयार कर गंगा के लिए कार्य किया जाएगा. हालांकि इस बारे में जर्मन वैज्ञानिक का कहना है कि गंगा बहुत बड़ी नदी है इसे लेकर किसी एक आंकड़े पर बात करना संभव नहीं है. यह लगातार निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, जिसको करते रहना और आंकड़े ज्यादा से ज्यादा जुटाना जरूरी है यह कहना कि गंगा प्रदूषित है या नहीं जल्दीबाजी होगा.

बाईट- कालिका सिंह, क्षेत्रीय अधिकारी, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
बाईट- पैट्रिक डॉल, जर्मन वैज्ञानिक


Conclusion:वीओ-02 फिलहाल प्रारंभिक जानकारी में यह बातें सामने आई है कि गंगा के हालात अभी ठीक नहीं है. हालांकि अभी बाढ़ का सीजन खत्म होने के बाद गंगा में पानी है लेकिन लगातार कई जगहों से गिर रहे नाले और फैक्ट्रियों से आ रहा केमिकल गंगा को प्रदूषित कर रहा है. टीम ने जल निगम गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई के अधिकारियों के साथ भी मुलाकात की है. अधिकारियों ने गोल्डन दीनापुर भगवानपुर एसटीपी की कार्यप्रणाली को भी जाना है. विशेषज्ञों ने दीनापुर भगवानपुर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का निरीक्षण किया है और यह बातें सामने आई हैं कि अभी एसटीपी आधी क्षमता से ही कार्य कर पा रहा है जो गंगा में गिर रहे नाले को सीधे तौर पर रोकने में असफल है. अस्सी नाला भी सीधे गंगा में मिल रहा है, क्योंकि 50 एमएलडी क्षमता का एसटीपी प्लांट अब तक तैयार नहीं हो पाया है. जिसकी वजह से प्रदूषण का स्तर गंगा में कम होने की जगह बढ़ रहा है.

यह है हाल

- विशेषज्ञों की टीम ने तीन नालो को सीधे गंगा में गिरते पाया है
- उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार बीते सितंबर से प्रति 100 मिलीलीटर पानी में कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया की मात्रा मानक से 68 गुना ज्यादा पाई गई है
- हालांकि शहर के बाहर या मानक 5 गुना ज्यादा है
- प्रारंभिक जांच पता चला है कि प्रयागराज मिर्जापुर से होते हुए काशी पहुंचने के बाद गंगाजल कई गुना प्रदूषित हो रहा है
- रामनगर सामने घाट के बाद शहरी क्षेत्र में गंगा जल में स्वास्थ्य के प्रति हानिकारक कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया की मात्रा मानक से कहीं ज्यादा अधिक है
- शहरी क्षेत्र में गंगा के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा भी मानक से कम है
- आंकड़ों पर अगर गौर करें तो प्रति लीटर 3 मिलीग्राम ऑक्सीजन की मात्रा नदी के जल में होनी चाहिए
- जबकि जनवरी में 4.1 मिलीग्राम फरवरी में 3.4 मिलीग्राम मार्च, अप्रैल और मई में 3.6 मिलीग्राम
- जून में 3.5 मिलीग्राम जुलाई में 3.8 मिलीग्राम अगस्त में 4.2 मिलीग्राम और सितंबर में 4 मिलीग्राम रही है.


आंकड़ों में महीने दर महीने हाल टोटल कोलीफॉर्म का स्तर

जनवरी- 43000
फरवरी - 31000
मार्च - 32000
अप्रैल - 34000
मई - 34000
जून - 27000
जुलाई - 34000
अगस्त - 31000
सितंबर - 34000

(पीने में टोटल कोलीफॉर्म की मात्रा जीरो और नदी के पानी में प्रति 100 मिलीलीटर में 500 एमपीएन तक हो सकती है, लेकिन जनवरी से सितंबर तक के आंकड़ों में यह बयां हो रहा है कि इसकी मात्रा निर्धारित मानक से 68 गुना ज्यादा है)

क्या है टोटल कोलीफॉर्म
दरअसल टोटल कॉलीफॉर्म वह मानक है जो किसी भी पानी को पीने योग्य या नहाने योग्य बताने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा प्राप्त किया जाता है पीने के पानी में इसकी क्षमता 0 जबकि नदी के पानी में पीने व नहाने योग्य होने के लिए प्रति 100 मिलीलीटर में 500 एमपीए होनी चाहिए. इसकी मात्रा ज्यादा होने का मतलब है कि गंगा या किसी भी नदी में केमिकल और मल मूत्र की मौजूदगी जरूरत से बहुत ज्यादा है.
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.