वाराणसी: गंगा को साफ और स्वच्छ करने के उद्देश्य से अलग-अलग सरकारें कवायद करती रही हैं, लेकिन गंगा की हालात सुधरने की जगह बिगड़ती ही जा रही है. गंगा की स्थिति को सुधारने के लिए वर्तमान सरकार भी अलग-अलग प्रोजेक्ट चला रही है, लेकिन क्या वास्तव में हालात सुधरे हैं. यह सवाल बड़ा है. इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने के लिए पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में जर्मनी के विशेषज्ञ अधिकारियों की टीम पहुंची.
वैज्ञानिकों ने गंगा में दो दिनों तक अलग-अलग जगहों से वॉटर सैंपल लिए. इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को हाईटेक बनाए जाने को लेकर गहन मंथन भी हुआ. विशेषज्ञों की टीम ने वाराणसी में महाश्मशान मणिकर्णिका के अलावा कई अन्य जगहों से वाटर सैंपल लिए. वहीं गंगा में सीधे गिर रहे नाले को देखकर वैज्ञानिकों ने काफी असंतोष जताया. जानिए क्या कहते हैं गंगा से जुड़े आकड़ें...
गंगा की बदहाली
- विशेषज्ञों की टीम ने तीन नालों को सीधे गंगा में गिरता हुआ पाया.
- बीते सितंबर से प्रति 100 मिलीलीटर पानी में कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया की मात्रा मानक से 68 गुना ज्यादा पाई गई.
- शहर के बाहर यह मानक पांच गुना ज्यादा है.
- प्रयागराज-मिर्जापुर से होते हुए काशी पहुंचने तक कई गुना प्रदूषित हो रहा है गंगाजल.
- शहरी क्षेत्र में गंगाजल में हानिकारक कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया की मात्रा मानक से कहीं ज्यादा है.
- शहरी क्षेत्र में गंगा के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा भी मानक से कम है.
- प्रति लीटर तीन मिलीग्राम ऑक्सीजन की मात्रा नदी के जल में होनी चाहिए.
- जून में 3.5, जुलाई में 3.8, अगस्त में 4.2 और सितंबर में 4 मिलीग्राम रही है.
यह आंकड़े बयां कर रहे हैं कि गंगा के हालात अभी ठीक नहीं है. हालांकि अभी बाढ़ का सीजन खत्म होने के बाद गंगा में पानी है, लेकिन लगातार कई जगहों से गिर रहे नाले और फैक्ट्रियों से आ रहा केमिकल गंगा को प्रदूषित कर रहा है. टीम ने जल निगम गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई के अधिकारियों के साथ भी मुलाकात की है. विशेषज्ञों ने दीनापुर भगवानपुर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का निरीक्षण किया है. इस दौरान यह बातें सामने आई कि अभी एसटीपी आधी क्षमता से ही कार्य कर पा रहा है, जो गंगा में गिर रहे नाले को सीधे तौर पर रोकने में असफल है. अस्सी नाला भी सीधे गंगा में मिल रहा है, क्योंकि 50 एमएलडी क्षमता का एसटीपी प्लांट अब तक तैयार नहीं हो पाया है, जिसकी वजह से प्रदूषण का स्तर गंगा में कम होने की जगह बढ़ रहा है.
महीने वार टोटल कॉलीफॉर्म का स्तर
- जनवरी- 43,000
- फरवरी - 31,000
- मार्च - 32,000
- अप्रैल - 34,000
- मई - 34,000
- जून - 27,000
- जुलाई - 34,000
- अगस्त - 31,000
- सितंबर - 34,000
पीने में टोटल कॉलीफॉर्म की मात्रा जीरो और नदी के पानी में प्रति 100 मिलीलीटर में 500 एमपीएन तक हो सकती है, लेकिन जनवरी से सितंबर तक के आंकड़ों में यह बयां हो रहा है कि इसकी मात्रा निर्धारित मानक से 68 गुना ज्यादा है.
दरअसल, टोटल कॉलीफॉर्म वह मानक है, जो किसी भी पानी को पीने योग्य या नहाने योग्य बताने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा प्राप्त किया जाता है. पीने के पानी में इसकी क्षमता जीरो, जबकि नदी के पानी में पीने व नहाने योग्य होने के लिए प्रति 100 मिलीलीटर में 500 एमपीए होनी चाहिए. इसकी मात्रा ज्यादा होने का मतलब है कि गंगा या किसी भी नदी में केमिकल और मलमूत्र की मौजूदगी जरूरत से ज्यादा है.