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गंगा आरती को अद्भुत बनाने वाले कौन हैं गंगा अर्चक, जानें

यूपी के वाराणसी में गंगा घाट पर आरती भारत के साथ-साथ विश्व में भी लोकप्रिय है. इसी के चलते आरती दूर-दराज से लोग आरती में शामिल होने आते हैं. शाम को समय गंगा घाट का नजारा काफी अद्भुत होता है.

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Published : Dec 10, 2020, 9:20 PM IST

Updated : Dec 11, 2020, 9:46 AM IST

मां गंगा आरती
मां गंगा आरती

वाराणसी: गंगा तरंग रमणीय जटाकलापम.... गौरी निरंतर विभूषित वामभांग.... काशी के गंगा घाट पर हर शाम इन्ही मंत्रों के साथ गंगा आरती का आयोजन होता है. गंगा आरती काशी की अलग पहचान है. गंगा आरती को देखकर हर किसी का मन प्रफुल्लित हो जाता है. क्या आप जानते हैं कि इस गंगा आरती को अद्भुत बनाने में गंगा सेवक यानी अर्चकों की अहम भूमिका होती है. जिसे आप रंगीन और बेहतरीन वेशभूषा में देखते हैं. यह वेशभूषा सभी लोगों को आकर्षित करती है. आज हम आपको उन्हीं अर्चकों की कहानी बताएंगे. यह बताएंगे कि कौन है अर्चक, किस तरीके से ये गंगा आरती की तैयारी करते हैं. कब से यह परंपरा चली आ रही है और किस तरीके से उसका निर्वहन किया जाता है.

विश्व में भी लोक प्रिय है मां गंगा की आरती.

आचार्य व शास्त्री के विद्यार्थी होते हैं अर्चक
इस बाबत गंगा आरती के मुख्य अर्चक आचार्य रणधीर पांडे ने बताया कि जो अर्चक मां गंगा की आरती करते हैं. वह शास्त्री और आचार्य के विद्यार्थी होते हैं. उनकी शिक्षा-दीक्षा संस्कृत और कर्मकांड में हुई होती है और अपने शिक्षा के दौरान ही वह गंगा आरती पूजन भी करना सीखते हैं. जिसके बाद वह मां गंगा की सेवा में कार्य करते हैं. उन्होंने बताया कि गंगा घाट पर नौ और सात अर्चकों के साथ मां गंगा की महा आरती का आयोजन किया जाता है.

तीन दशकों से कर रहे हैं गंगा आरती
वैसे तो बनारस के हर घाट पर गंगा आरती होती है लेकिन दशाश्वमेध व राजेंद्र प्रसाद घाट पर बीते तीन दशकों से गंगा आरती हो रही है. जहां पर अर्चक अनोखी वेशभूषा में तैयार होकर के हर शाम मां गंगा की आराधना करते हैं. आचार्य रणधीर ने बताया कि 1991 में गंगा सेवा निधि के संस्थापक सतेंद्र मिश्रा ने मां गंगा की महाआरती की शुरुआत की थी और यह परंपरा अनवरत चली आ रही है.

आरती सीखने में लगता है छह महीने का समय
मुख्य अर्चक ने बताया कि अर्चक को आरती सीखने में छह महीने का समय लगता है. अर्चक छह महीने तक आरती की प्रक्रिया को दोहराता है. आरती गाना को मंत्रोचार करना सीखता है और इसके उपरांत छह महीने में वह पूर्ण रूप से आरती सीख लेता है. इसके बाद वह गंगा घाट पर महा आरती में सम्मिलित होता है. उन्होंने बताया कि हमारे लिए एक खास तरीके की वेशभूषा होती है. आमतौर पर कर्मकांडी ब्राह्मण जो धोती लपेटते हैं वह 5 मीटर की होती है, परंतु हम 6 मीटर की धोती, किनारे बंधन के कुर्ते व दुपट्टे के साथ तैयार होकर मां गंगा की आरती करते हैं.

गंगा घाट पर शाम में होता है अद्भुत नजारा
अर्चक हर शाम होने वाली आरती को अद्भुत बनाते हैं. वाकई जब काशी के गंगा घाट पर चारों ओर घंटियां, डमरू और शंखनाद की आवाज सुनाई पड़ती है तो मानो ऐसा लगता है धरती पर स्वर्ग उतर आया हो. शाम की झार आरती में उठते हुई ज्वाला और धूप से निकलता धुंआ मन को पवित्र करते हुए चला जाता है. यही वजह है कि बनारस के गंगा आरती और घाट का नजारा बेहद ही अद्भुत और अलौकिक होता है.

वाराणसी: गंगा तरंग रमणीय जटाकलापम.... गौरी निरंतर विभूषित वामभांग.... काशी के गंगा घाट पर हर शाम इन्ही मंत्रों के साथ गंगा आरती का आयोजन होता है. गंगा आरती काशी की अलग पहचान है. गंगा आरती को देखकर हर किसी का मन प्रफुल्लित हो जाता है. क्या आप जानते हैं कि इस गंगा आरती को अद्भुत बनाने में गंगा सेवक यानी अर्चकों की अहम भूमिका होती है. जिसे आप रंगीन और बेहतरीन वेशभूषा में देखते हैं. यह वेशभूषा सभी लोगों को आकर्षित करती है. आज हम आपको उन्हीं अर्चकों की कहानी बताएंगे. यह बताएंगे कि कौन है अर्चक, किस तरीके से ये गंगा आरती की तैयारी करते हैं. कब से यह परंपरा चली आ रही है और किस तरीके से उसका निर्वहन किया जाता है.

विश्व में भी लोक प्रिय है मां गंगा की आरती.

आचार्य व शास्त्री के विद्यार्थी होते हैं अर्चक
इस बाबत गंगा आरती के मुख्य अर्चक आचार्य रणधीर पांडे ने बताया कि जो अर्चक मां गंगा की आरती करते हैं. वह शास्त्री और आचार्य के विद्यार्थी होते हैं. उनकी शिक्षा-दीक्षा संस्कृत और कर्मकांड में हुई होती है और अपने शिक्षा के दौरान ही वह गंगा आरती पूजन भी करना सीखते हैं. जिसके बाद वह मां गंगा की सेवा में कार्य करते हैं. उन्होंने बताया कि गंगा घाट पर नौ और सात अर्चकों के साथ मां गंगा की महा आरती का आयोजन किया जाता है.

तीन दशकों से कर रहे हैं गंगा आरती
वैसे तो बनारस के हर घाट पर गंगा आरती होती है लेकिन दशाश्वमेध व राजेंद्र प्रसाद घाट पर बीते तीन दशकों से गंगा आरती हो रही है. जहां पर अर्चक अनोखी वेशभूषा में तैयार होकर के हर शाम मां गंगा की आराधना करते हैं. आचार्य रणधीर ने बताया कि 1991 में गंगा सेवा निधि के संस्थापक सतेंद्र मिश्रा ने मां गंगा की महाआरती की शुरुआत की थी और यह परंपरा अनवरत चली आ रही है.

आरती सीखने में लगता है छह महीने का समय
मुख्य अर्चक ने बताया कि अर्चक को आरती सीखने में छह महीने का समय लगता है. अर्चक छह महीने तक आरती की प्रक्रिया को दोहराता है. आरती गाना को मंत्रोचार करना सीखता है और इसके उपरांत छह महीने में वह पूर्ण रूप से आरती सीख लेता है. इसके बाद वह गंगा घाट पर महा आरती में सम्मिलित होता है. उन्होंने बताया कि हमारे लिए एक खास तरीके की वेशभूषा होती है. आमतौर पर कर्मकांडी ब्राह्मण जो धोती लपेटते हैं वह 5 मीटर की होती है, परंतु हम 6 मीटर की धोती, किनारे बंधन के कुर्ते व दुपट्टे के साथ तैयार होकर मां गंगा की आरती करते हैं.

गंगा घाट पर शाम में होता है अद्भुत नजारा
अर्चक हर शाम होने वाली आरती को अद्भुत बनाते हैं. वाकई जब काशी के गंगा घाट पर चारों ओर घंटियां, डमरू और शंखनाद की आवाज सुनाई पड़ती है तो मानो ऐसा लगता है धरती पर स्वर्ग उतर आया हो. शाम की झार आरती में उठते हुई ज्वाला और धूप से निकलता धुंआ मन को पवित्र करते हुए चला जाता है. यही वजह है कि बनारस के गंगा आरती और घाट का नजारा बेहद ही अद्भुत और अलौकिक होता है.

Last Updated : Dec 11, 2020, 9:46 AM IST
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