वाराणसीः वैसे तो आपने अस्पतालों में मरीजों का इलाज होते हमेशा देखा होगा. डॉक्टर को मरीजों की जिंदगी बचाने के लिए और उन्हें स्वस्थ करने के लिए जद्दोजहद करते हुए भी देखा होगा, लेकिन आज हम आपको उस अस्पताल में लेकर चल रहे हैं जहां मरीजों का इलाज तो होता ही हैं साथ ही बेटियों का भविष्य भी संवारा जाता है. यहां जरूरतमंद गरीब बच्चियां पढ़ने आती हैं. चलिए जानते हैं इस खास स्कूल के बारे में.
वाराणसी के वरुणा पार इलाके के पांडेयपुर क्षेत्र में डॉक्टर शिप्राधर श्रीवास्तव और डॉक्टर मनोज श्रीवास्तव अपना निजी अस्पताल चलाते हैं. इस अस्पताल की एक खासियत यह भी है की यहां अगर कोई बेटी जन्म लेती है तो उस पर होने वाला खर्च खुद अस्पताल वहन करता है और कोई फीस भी नहीं ली जाती.
इसके अलावा इस अस्पताल में बीते साल नवंबर से एक ऐसे स्कूल की शुरुआत भी हो चुकी है जो 10 किलोमीटर दायरे में रहने वाली उन गरीब और जरूरतमंद बेटियों को शिक्षित करने का काम कर रहा है जिनकी माताएं घरों में काम करके अपने परिवार का जीवनयापन करती हैं.
आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से बेटियां अपनी इन माताओं के साथ घर-घर चक्कर लगाती थीं. अस्पताल की संचालिका डॉक्टर शिप्रा धर को यह अच्छा न लगा. डॉक्टर शिप्रा बताती हैं कि उनके घर एक दाई अपनी बेटी को लेकर काम करने आती थी और बेटी से भी काम करवाती थी. यह बात उन्हें अच्छी नहीं लगी और उन्होंने उसकी बेटी को घर पर ही पढ़ाना शुरू कर दिया.
उसे किताबें और स्कूल बैग दिया. कपड़े भी दिए. उसका नाम भी एक स्कूल में लिखवा दिया. जिसके बाद वह बेटी बेहद खुश हुई उसी की खुशी देखकर उन्होंने अपने ही अस्पताल में एक ऐसे स्कूल की शुरुआत की जो ऐसी जरूरतमंद माताओं की बेटियों को शिक्षित करने का काम कर रहा है.
डॉ. शिप्रा के मुताबिक उनके इस खास स्कूल में 50 से ज्यादा बेटियां हैं. 25 बेटियां सुबह आती है, जो कक्षा 1 से लेकर कक्षा 8 तक की छात्राएं हैं. इन सभी को पहले कुछ दिनों तक अपने यहां शिक्षित किया और फिर इनका नाम आसपास के अच्छे स्कूलों में लिखवा कर उन्हें ड्रेस, कॉपी किताब और जरूरत की हर चीजें उपलब्ध करवाई गई.
यहां तक कि स्वस्थ रहने के लिए उन्हें फल और खाने का सामान भी उपलब्ध कराया गया है. डॉक्टर शिप्रा का कहना है कि उनके इस प्रयास से न सिर्फ बेटियां शिक्षित होंगी बल्कि समाज को भी एक सही दिशा दिखाई मिलेगी.
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डॉ. शिप्रा के साथ काम करने वाला मेडिकल स्टाफ भी इस नेक काम से बेहद खुश हैं. उनका कहना है कि अस्पताल में अक्सर लोग दुख दर्द के बीच आते हैं लेकिन बेटियों को शिक्षित करने का अस्पताल के अंदर का यह प्रयास निश्चित तौर पर बिल्कुल अलग और अनूठा है.
इससे अस्पताल का माहौल भी बदल रहा है. वही डॉक्टर शिप्रा से शिक्षित होने वाली बेटियां भी अपने आप को सौभाग्यशाली मानती हैं. उनका कहना है कि डॉ. शिप्रा अपने व्यस्त शेड्यूल में से उनको न सिर्फ समय देती हैं, बल्कि एक अलग से टीचर भी रख रखा है.
यदि डॉक्टर शिप्रा ऑपरेशन थिएटर में या कहीं अन्य जगह व्यस्त हो जाती हैं तो उनकी नियमित रूप से क्लास एक टीचर लेती है. सबसे बड़ी बात यह है कि डॉक्टर शिप्रा के इन प्रयासों को कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सराहा था. शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी से मिली शाबाशी के बाद डॉक्टर शिप्रा ने बेटियों के लिए कई और तरह के प्रयास शुरू किए हैं. उनका यह प्रयास समाज के लिए बड़ा संदेश है.
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