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मोदी के करीबी, यूपी के पूर्व सह प्रभारी सुनील ओझा का निधन, गड़ौली धाम आश्रम को लेकर चर्चा में आए थे

यूपी के पूर्व सह प्रभारी और पीएम मोदी के करीबी सुनील ओझा का निधन हो गया है. वह गडौली धाम आश्रम को लेकर चर्चा में आए थे.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Nov 29, 2023, 10:43 AM IST

Updated : Nov 29, 2023, 11:38 AM IST

वाराणसी: भारतीय जनता पार्टी के सीनियर लीडर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद करीबी और पीएम के चुनाव में अहम भूमिका निभाने वाले सुनील ओझा का आज गुड़गांव के एक अस्पताल में इलाज के दौरान निधन हो गया. हाल ही में सुनील ओझा को उत्तर प्रदेश से बिहार में भेज कर चुनावी रणनीति तैयार करने की बड़ी जिम्मेदारी सौंप गई थी. बिहार जाने से पहले सुनील ओझा उत्तर प्रदेश के सह प्रभारी थे और उन्हें अब बिहार में सह प्रभारी की जिम्मेदारी देकर बड़ी भूमिका निभाने के लिए भेजा गया था.वह गड़ौली धाम आश्रम को लेकर विवाद में आए थे. सुनील ओझा को उत्तर प्रदेश से हटकर बिहार भेजा गया था. यह मामला काफी दिनों तक काफी चर्चा में रहा था.

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पीएम मोदी से सीधे मिलते थे यूपी के पूर्व सह प्रभारी. (फाइल फोटो)
दरअसल, भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता के तौर पर सुनील ओझा के ऊपर बड़ी जिम्मेदारी देखी जाती थी. सुनील ओझा यूपी के सब प्रभारी होते हुए हमेशा चर्चा में भी रहे, लेकिन 29 मार्च 2023 को उन्हें उत्तर प्रदेश से बिहार के सह प्रभारी के तौर पर ट्रांसफर करके भेजा गया माना जा रहा था कि सुनील ओझा को बिहार में चल रहे राजनीतिक फिर बदल के लिए बड़ी जिम्मेदारी दी गई है. जिसकी वजह से राजनीतिक गलियारों में काफी हलचल मच गई थी.
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बीजेपी के बड़े नेताओं में शुमार किए जाते थे सुनील ओझा. (फाइल फोटो)
सुनील ओझा सबसे ज्यादा चर्चा में वाराणसी के पास मिर्जापुर जिले में पड़ने वाले गढ़ौली धाम आश्रम को लेकर चर्चा में रहे. नदी के किनारे गढ़ौली धाम आश्रम का निर्माण किया गया है जिसके देखरेख की जिम्मेदारी सुनील ओझा निभा रहे थे. उसे वक्त कई बड़े नेताओं समेत कई अन्य बड़ी हस्तियों की यहां पर जुटान भी हुई थी जिसके बाद वह चर्चा में आए और तमाम कार्यों को देखते हुए उसे वक्त ही सुनील ओझा को उत्तर प्रदेश से बिहार भेजा गया था.
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कई मामलों को लेकर वह सीधे पीएम मोदी से मिलते थे. (फाइल फोटो)
मूल रूप से गुजरात के रहने वाले सुनील ओझा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सबसे करीबी नेता माना जाता था. उनके संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भी सुनील ओझा हमेशा से महत्वपूर्ण भूमिका निभाते नजर आए थे अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत करने वाले सुनील ओझा ने गुजरात के भावनगर से अपने पॉलीटिकल करियर को शुरू किया था. दो बार भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर वह भावनगर से विधायक रहे और 2007 में जब भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो वह निर्दलीय चुनाव लड़े लेकिन हार गए इसके बाद उनके और प्रधानमंत्री मोदी के बीच दूरियां बढ़ती गई ऐसा भी माना गया था कि वह गुजरात के सीएम के तौर पर नरेंद्र मोदी ने अवैध निर्माण के खिलाफ जब बड़ा अभियान चलाया तो इसे लेकर सुनील ओझा उसे समय बतौर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से नाराज भी थे
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पीएम मोदी के बेहद करीबी माने जाते थे सुनील ओझा. (फाइल फोटो)

भारतीय जनता पार्टी छोड़ने के बाद सुनील ओझा ने महागुजरात जनता पार्टी के नाम से एक अलग पार्टी भी बनाई थी. हालांकि 2011 में वह फिर से नरेंद्र मोदी के करीब आए और उन्हें गुजरात भाजपा में प्रवक्ता का पद दिया गया 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी लोकसभा से चुनाव लड़ने की जब तैयारी की तो सुनील ओझा, अरुण सिंह और सुनील देवधर को चुनाव जिताने की जिम्मेदारी देकर वाराणसी भेजा गया.

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बीजेपी के कई दिग्गज नेताओं के करीबी थे सुनील ओझा. (फाइल फोटो)
चुनाव के बाद सुनील देवधर और अरुण सिंह ने तो दूसरी जिम्मेदारियां संभाल ली लेकिन सुनील ओझा को वाराणसी में ही रखा गया. सुनील ओझा को सह प्रभारी की जिम्मेदारी दी गई. सुनील ओझा से काशी क्षेत्र की जिम्मेदारी संभालते हुए 2019 में उन्हें गोरक्ष प्रांत की भी जिम्मेदारी दे दी गई. भारतीय जनता पार्टी के छह क्षेत्रों में महत्वपूर्ण होने वाले काशी क्षेत्र जिसमें एक 14 लोकसभा और 12 प्रशासनिक जिले आते हैं उसे पर सुनील ओझा ने अपना दबदबा कायम करते हुए भाजपा को मजबूत स्थिति में खड़ा करने का भी काम किया था.हालांकि गाड़ौली धाम को लेकर सुनील ओझा सबसे ज्यादा चर्चा में रहे. बनारस के नजदीक मिर्जापुर और जिले में इस आश्रम की शुरुआत बालमुकुंद फाउंडेशन की तरफ से हुई थी. जिसकी अगुवाई सुनील ओझा नहीं की थी. फाउंडेशन पहली बार कोरोना की दूसरी लहर के वक्त तब चर्चा में आया, जब उसके कार्यकर्ताओं की तरफ से लोगों की मदद के लिए हाथ बढ़ाना शुरू किया गया. लगभग 20 बीघा जमीन गंगा किनारे खरीद कर उसे पर आश्रम का निर्माण शुरू हुआ और गौरी शंकर की 108 फीट ऊंची प्रतिमा लगाने की तैयारी की जाने लगी. 12 फरवरी को आश्रम के स्थापना दिवस के मौके पर 5 दिन के कार्यक्रम के आयोजन के दौरान तरह-तरह के कार्य यहां पर धार्मिक आयोजन भी हुए. हालांकि इसी आश्रम को लेकर चर्चा में आए सुनील ओझा को यूपी से हटाकर बिहार के सह प्रभारी की जिम्मेदारी दी गई जो काफी चर्चा का विषय बना हाल ही में धाम को लेकर फिर से कार्यक्रम का आयोजन हुआ था. जिसमें तीन दिन पहले ही सुनील ओझा ने बड़ा दीप उत्सव और तुलसी विवाह का कार्यक्रम भी किया था.

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पीएम मोदी से सीधे मिलते थे यूपी के पूर्व सह प्रभारी. (फाइल फोटो)
दरअसल, भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता के तौर पर सुनील ओझा के ऊपर बड़ी जिम्मेदारी देखी जाती थी. सुनील ओझा यूपी के सब प्रभारी होते हुए हमेशा चर्चा में भी रहे, लेकिन 29 मार्च 2023 को उन्हें उत्तर प्रदेश से बिहार के सह प्रभारी के तौर पर ट्रांसफर करके भेजा गया माना जा रहा था कि सुनील ओझा को बिहार में चल रहे राजनीतिक फिर बदल के लिए बड़ी जिम्मेदारी दी गई है. जिसकी वजह से राजनीतिक गलियारों में काफी हलचल मच गई थी.
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बीजेपी के बड़े नेताओं में शुमार किए जाते थे सुनील ओझा. (फाइल फोटो)
सुनील ओझा सबसे ज्यादा चर्चा में वाराणसी के पास मिर्जापुर जिले में पड़ने वाले गढ़ौली धाम आश्रम को लेकर चर्चा में रहे. नदी के किनारे गढ़ौली धाम आश्रम का निर्माण किया गया है जिसके देखरेख की जिम्मेदारी सुनील ओझा निभा रहे थे. उसे वक्त कई बड़े नेताओं समेत कई अन्य बड़ी हस्तियों की यहां पर जुटान भी हुई थी जिसके बाद वह चर्चा में आए और तमाम कार्यों को देखते हुए उसे वक्त ही सुनील ओझा को उत्तर प्रदेश से बिहार भेजा गया था.
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कई मामलों को लेकर वह सीधे पीएम मोदी से मिलते थे. (फाइल फोटो)
मूल रूप से गुजरात के रहने वाले सुनील ओझा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सबसे करीबी नेता माना जाता था. उनके संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भी सुनील ओझा हमेशा से महत्वपूर्ण भूमिका निभाते नजर आए थे अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत करने वाले सुनील ओझा ने गुजरात के भावनगर से अपने पॉलीटिकल करियर को शुरू किया था. दो बार भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर वह भावनगर से विधायक रहे और 2007 में जब भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो वह निर्दलीय चुनाव लड़े लेकिन हार गए इसके बाद उनके और प्रधानमंत्री मोदी के बीच दूरियां बढ़ती गई ऐसा भी माना गया था कि वह गुजरात के सीएम के तौर पर नरेंद्र मोदी ने अवैध निर्माण के खिलाफ जब बड़ा अभियान चलाया तो इसे लेकर सुनील ओझा उसे समय बतौर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से नाराज भी थे
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पीएम मोदी के बेहद करीबी माने जाते थे सुनील ओझा. (फाइल फोटो)

भारतीय जनता पार्टी छोड़ने के बाद सुनील ओझा ने महागुजरात जनता पार्टी के नाम से एक अलग पार्टी भी बनाई थी. हालांकि 2011 में वह फिर से नरेंद्र मोदी के करीब आए और उन्हें गुजरात भाजपा में प्रवक्ता का पद दिया गया 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी लोकसभा से चुनाव लड़ने की जब तैयारी की तो सुनील ओझा, अरुण सिंह और सुनील देवधर को चुनाव जिताने की जिम्मेदारी देकर वाराणसी भेजा गया.

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बीजेपी के कई दिग्गज नेताओं के करीबी थे सुनील ओझा. (फाइल फोटो)
चुनाव के बाद सुनील देवधर और अरुण सिंह ने तो दूसरी जिम्मेदारियां संभाल ली लेकिन सुनील ओझा को वाराणसी में ही रखा गया. सुनील ओझा को सह प्रभारी की जिम्मेदारी दी गई. सुनील ओझा से काशी क्षेत्र की जिम्मेदारी संभालते हुए 2019 में उन्हें गोरक्ष प्रांत की भी जिम्मेदारी दे दी गई. भारतीय जनता पार्टी के छह क्षेत्रों में महत्वपूर्ण होने वाले काशी क्षेत्र जिसमें एक 14 लोकसभा और 12 प्रशासनिक जिले आते हैं उसे पर सुनील ओझा ने अपना दबदबा कायम करते हुए भाजपा को मजबूत स्थिति में खड़ा करने का भी काम किया था.हालांकि गाड़ौली धाम को लेकर सुनील ओझा सबसे ज्यादा चर्चा में रहे. बनारस के नजदीक मिर्जापुर और जिले में इस आश्रम की शुरुआत बालमुकुंद फाउंडेशन की तरफ से हुई थी. जिसकी अगुवाई सुनील ओझा नहीं की थी. फाउंडेशन पहली बार कोरोना की दूसरी लहर के वक्त तब चर्चा में आया, जब उसके कार्यकर्ताओं की तरफ से लोगों की मदद के लिए हाथ बढ़ाना शुरू किया गया. लगभग 20 बीघा जमीन गंगा किनारे खरीद कर उसे पर आश्रम का निर्माण शुरू हुआ और गौरी शंकर की 108 फीट ऊंची प्रतिमा लगाने की तैयारी की जाने लगी. 12 फरवरी को आश्रम के स्थापना दिवस के मौके पर 5 दिन के कार्यक्रम के आयोजन के दौरान तरह-तरह के कार्य यहां पर धार्मिक आयोजन भी हुए. हालांकि इसी आश्रम को लेकर चर्चा में आए सुनील ओझा को यूपी से हटाकर बिहार के सह प्रभारी की जिम्मेदारी दी गई जो काफी चर्चा का विषय बना हाल ही में धाम को लेकर फिर से कार्यक्रम का आयोजन हुआ था. जिसमें तीन दिन पहले ही सुनील ओझा ने बड़ा दीप उत्सव और तुलसी विवाह का कार्यक्रम भी किया था.

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Last Updated : Nov 29, 2023, 11:38 AM IST
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