वाराणसी: धर्म की नगरी काशी में लगभग 478 वर्ष पुरानी परंपरा निभाई गई. चौथे और आखिरी धार्मिक लक्खा मेले में शुमार नाग नथैया लीला देखने के लिए गंगा तुलसी घाट पर हजारों की संख्या में लोग पहुंचे. यहां पर मां गंगा गुरुवार को यमुना के रूप में बदल गईं तो यहां द्वापर युग की छवि उतरी हुई नजर आई.
नाग नथैया लीला गोस्वामी तुलसीदास जी ने शुरू की थी. तभी से यह लीला तुलसी घाट पर होती चली आ रही है. इसे देखने के लिए साधु-संतों के साथ देश-दुनिया के कोने-कोने से लोग आते हैं. इस लीला के तहत भगवान कृष्ण ब्रज विलास के दोहे के साथ कदंब वृक्ष से यमुना रूपी गंगा में कूद पड़े. कुछ ही देर में कालिया नाग को नाथ कर उसके फन पर सवार बंसी बजाते बाहर निकले.
इसके बाद चारों तरफ जयकारे गूंज उठे शंख, घंटे और घड़ियाल की आवाज के साथ ही हर-हर महादेव के उद्घोष से दूर तक का इलाका गूंज उठा. धर्म संस्कृति के आस्था के विश्वास और टूट संगम का यह नजारा जिसने भी देखा, वह भावविभोर हो गया.
उसके बाद सबसे पहले संकट मोचन मंदिर के महंत प्रोफेसर विशम्भर नाथ मिश्र ने भगवान श्रीकृष्ण को माल्यार्पण किया. कालिया नाग पर सवार भगवान ने गंगा में चारों ओर परिक्रमा कर भक्तों को दर्शन दिया. आरती संग लीला का समापन हुआ. अपनी पुरानी परंपरा को निभाते हुए महाराजा काशी नरेश डॉ. अनंत नारायण सिंह भी रामनगर से इस लीला को देखने आते हैं.
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प्रो. विशम्भर नाथ मिश्र ने बताया कि गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा यह लीला शुरू की गई है. जब यमुना का पानी कालिया नाग की वजह से विषैला हो जाता है. पशु-पक्षी भी उसके पास आने से मरने लगते हैं. तब भगवान गेंद डालकर यमुना में कूदे और कालिया नाग को मारा नहीं बल्कि उसे दूसरे क्षेत्र में भेजा.
आज के परिवेश में हम बात करें तो मां गंगा में ऐसे कई कालिया नाग घूम रहे हैं, जिन्होंने उनको पूरी तरह प्रदूषित कर दिया. हम भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना करते हैं कि जल्दी भगवान किसी रूप में आकर मां गंगा को शुद्ध करें.
-प्रो. विशम्भर नाथ मिश्र, महंत, गोस्वामी तुलसीदास अखाड़ा
हमें इस अद्भुत दृश्य का इंतजार रहता है. देश ही नहीं बल्कि विदेश के भी लोग इस दृश्य को देखने के लिए आते हैं. जब भगवान श्री कृष्ण मां यमुना को शुद्ध कराने के लिए कदंब की वृक्ष से गंगा में कूदते हैं, वह दृश्य बड़ा ही मनमोहक होता है. उसके बाद कालिया नाग पर सवार होकर बंसी बजाते हुए पूरे काशी वासियों को आशीर्वाद देते हैं.
- राजेश कुमार, श्रद्धालु