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धर्म नगरी में कैसे मिलेगा मोक्ष, जब शवों को नहीं मिल रहे चार कंधे

कोरोना काल ने देश भर में हाहाकार मचाकर रखा है. चारों तरफ मौत का मातम पसरा हुआ है. वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग संकट की इस घड़ी में भी मुनाफा कमाने में लगे हैं. वाराणसी में शवों के अंतिम संस्कार के लिए घाटों पर मनमाने पैसे वसूले जा रहे हैं. इसके साथ ही शवों को कंधा देने के नाम पर भी धन उगाही की जा रही है. देखिए ये रिपोर्ट...

स्पेशल रिपोर्ट.
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Published : Apr 27, 2021, 11:00 PM IST

वाराणसी: कोरोना काल में लोग जीते जी दूर हो रहे हैं और जब कोई मर जाता है तो मुट्ठी भर लोग उसे अंतिम विदाई देते हैं. कोरोना ने 'अपनों' को 'अपनों' से दूर कर दिया है. अब तो मरने के बाद चार कंधे देने के लिए श्मशान घाट पर कोई नहीं रहता. कोरोना अभी जिंदगी में कितना इम्तिहान लेगा, यह तय नहीं है. हालात यह हैं कि कोरोना संक्रमित मरीज के मौत के बाद शव के पास आने से सगे-संबंधी कतरा रहे हैं. शवों को कंधा देने वाला कोई नहीं है.

स्पेशल रिपोर्ट.

दो महाश्मशान, लेकिन मानवता शर्मसार
वाराणसी के दो महाश्मशान हरिश्चंद्र व मणिकर्णिका घाट पर इन दिनों कोरोना से मरने वालों का दाह संस्कार किया जा रहा है. हर रोज सैकड़ों शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है, लेकिन इन दोनों घाटों पर मानवता शर्मसार हो रही है. मोक्ष नगरी में अंतिम समय में चार कंधे भी शवों को नसीब नहीं हो रहे हैं. हालात यह हैं कि कोरोना से मरने वालों को चिता तक पहुंचाने के लिए कोई नहीं है. शवों की लंबी कतारें लगी हैं और जलाने के लिए मोल भाव किया जा रहा है.

मिल रहे भाड़े के कंधे
इस समय मोक्ष नगरी में शवों के दाह संस्कार के लिए भाड़े के कंधे का सहारा लेना पड़ रहा है. यह सुनकर आश्चर्य हो रहा होगा, लेकिन यही सच है. कोरोना ने अंतिम संस्कार की पुरानी परंपरा को ध्वस्त करके रख दिया है. रीति रिवाज के साथ कोरोना से मरने वालों का दाह संस्कार नहीं हो पा रहा है. अंतिम क्षणों में न तो सगे संबंधी श्मशान घाट पर मौजूद रहते हैं और न ही लोगों को अपने प्रिय को अंतिम बार देखने का मौका मिलता है.

आने वाले लोगों ने बयां किया दर्द
इस समय शवों को लेकर सौदा होने लगा है. श्मशान घाट पर शवों को उठाने के लिए मोल भाव करना पड़ता है. काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले एक छात्र के रिश्तेदार का निधन हुआ तो वह दाह संस्कार के लिए हरिश्चंद्र घाट पहुंचा, लेकिन वहां मौजूद लोगों ने 3500 रुपये की डिमांड रखी. काफी देर तक मोल भाव करने के बाद 2 हजार रुपये पर सौदा हुआ. इसके बाद लाश को कंधा देकर चिता तक पहुंचाया गया.

ऐसी स्थिति वाराणसी के दोनों श्मशान घाटों पर देखने को मिल रही है. स्थानीय नागरिक अमित राय का कहना है कि 2 दिन पहले उनके मित्र की माता जी का देहांत हुआ. जब शव को लेकर घाट पर पहुंचे तो वहां मौजूद लोगों को जानकारी हुई कि कोविड के चलते माताजी का देहांत हुआ है. इसके बाद शव को जलाने के लिए चार कंधे देने के लिए आना-कानी शुरू हो गई. कुछ लोगों ने रुपयों के लेन-देन की बात कही. जिसके बाद शव का अंतिम संस्कार संभव हो सका.

रेट निर्धारित, लेकिन वसूली जबरदस्त
वाराणसी के दो श्मशान घाटों पर प्रतिदिन 300 से ज्यादा शवों का दाह संस्कार हो रहा है. इनमें वाराणसी ही नहीं, बल्कि आसपास के जिलों से भी आने वाले शव शामिल हैं. आम दिनों में यह संख्या दोनों घाटों पर मिलाकर लगभग 80 से 100 होती है, लेकिन कोरोना काल में मौतों का आंकड़ा बढ़ गया है. श्मशान घाटों पर 7000 रुपये का शुल्क निर्धारित होने के बाद भी शवों के दाह संस्कार के लिए मनमाने पैसे वसूले जा रहे हैं. इस बात की पुष्टि स्थानीय लोग भी कर रहे हैं.

शव यात्रा से लोगों ने बनाई दूरी
एक समय था, जब शव को कंधा देने के लिए लोग स्वयं से आगे आते थे और इसे पुण्य का काम समझते थे, लेकिन आज स्थिति बिल्कुल विपरीत है. आज किसी को पुण्य की परवाह नहीं है. हर कोई बस खुद को कोरोना से सुरक्षित रखना चाहता है. यही वजह है कि इस समय 'अपनों' ने 'अपनों' से दूरी बना ली है.

इस तरह होता है पूरा खेल
दोनों श्मशान घाटों पर कंधा देने वालों की भीड़ एक अलग कोने में बैठी दिखाई दे जाएगी. जब शव को लेकर परिजन पहुंचते हैं तो ये लोग दाह संस्कार के लिए बातचीत शुरू करते हैं. इसके बाद लकड़ी बेचने वालों के कहने पर कंधा देने वाले लोग आगे आते हैं और भाड़े पर कंधा देने की बात करते हैं. ये लोग 3000-3500 रुपये से शुरुआत करते हैं और मोल भाव करते करते 500 से 1000 रुपये तक आते हैं. ऐसे में आज मोक्ष नगरी में लोगों को चार कंधों के लिए 2000 से 4000 रुपये तक का भुगतान करना पड़ रहा है.

अब आप बताएं कि एक गरीब आदमी अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार भी कैसे कर पाएगा. बनारस के हरिश्चंद्र घाट व मणिकर्णिका घाट पर आजकल रोजाना 300 से ज्यादा शवों का अंतिम संस्कार हो रहा है. यहां वाराणसी के अलावा दूसरे जिलों से भी शव लाए जा रहे. अगर कोरोना यूं ही कहर बरपाता रहा और लाशें भी कमाई का जरिया बनी रहीं तो यकीन मानिए काशी में मोक्ष के लिए कोई नहीं आएगा.

वाराणसी: कोरोना काल में लोग जीते जी दूर हो रहे हैं और जब कोई मर जाता है तो मुट्ठी भर लोग उसे अंतिम विदाई देते हैं. कोरोना ने 'अपनों' को 'अपनों' से दूर कर दिया है. अब तो मरने के बाद चार कंधे देने के लिए श्मशान घाट पर कोई नहीं रहता. कोरोना अभी जिंदगी में कितना इम्तिहान लेगा, यह तय नहीं है. हालात यह हैं कि कोरोना संक्रमित मरीज के मौत के बाद शव के पास आने से सगे-संबंधी कतरा रहे हैं. शवों को कंधा देने वाला कोई नहीं है.

स्पेशल रिपोर्ट.

दो महाश्मशान, लेकिन मानवता शर्मसार
वाराणसी के दो महाश्मशान हरिश्चंद्र व मणिकर्णिका घाट पर इन दिनों कोरोना से मरने वालों का दाह संस्कार किया जा रहा है. हर रोज सैकड़ों शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है, लेकिन इन दोनों घाटों पर मानवता शर्मसार हो रही है. मोक्ष नगरी में अंतिम समय में चार कंधे भी शवों को नसीब नहीं हो रहे हैं. हालात यह हैं कि कोरोना से मरने वालों को चिता तक पहुंचाने के लिए कोई नहीं है. शवों की लंबी कतारें लगी हैं और जलाने के लिए मोल भाव किया जा रहा है.

मिल रहे भाड़े के कंधे
इस समय मोक्ष नगरी में शवों के दाह संस्कार के लिए भाड़े के कंधे का सहारा लेना पड़ रहा है. यह सुनकर आश्चर्य हो रहा होगा, लेकिन यही सच है. कोरोना ने अंतिम संस्कार की पुरानी परंपरा को ध्वस्त करके रख दिया है. रीति रिवाज के साथ कोरोना से मरने वालों का दाह संस्कार नहीं हो पा रहा है. अंतिम क्षणों में न तो सगे संबंधी श्मशान घाट पर मौजूद रहते हैं और न ही लोगों को अपने प्रिय को अंतिम बार देखने का मौका मिलता है.

आने वाले लोगों ने बयां किया दर्द
इस समय शवों को लेकर सौदा होने लगा है. श्मशान घाट पर शवों को उठाने के लिए मोल भाव करना पड़ता है. काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले एक छात्र के रिश्तेदार का निधन हुआ तो वह दाह संस्कार के लिए हरिश्चंद्र घाट पहुंचा, लेकिन वहां मौजूद लोगों ने 3500 रुपये की डिमांड रखी. काफी देर तक मोल भाव करने के बाद 2 हजार रुपये पर सौदा हुआ. इसके बाद लाश को कंधा देकर चिता तक पहुंचाया गया.

ऐसी स्थिति वाराणसी के दोनों श्मशान घाटों पर देखने को मिल रही है. स्थानीय नागरिक अमित राय का कहना है कि 2 दिन पहले उनके मित्र की माता जी का देहांत हुआ. जब शव को लेकर घाट पर पहुंचे तो वहां मौजूद लोगों को जानकारी हुई कि कोविड के चलते माताजी का देहांत हुआ है. इसके बाद शव को जलाने के लिए चार कंधे देने के लिए आना-कानी शुरू हो गई. कुछ लोगों ने रुपयों के लेन-देन की बात कही. जिसके बाद शव का अंतिम संस्कार संभव हो सका.

रेट निर्धारित, लेकिन वसूली जबरदस्त
वाराणसी के दो श्मशान घाटों पर प्रतिदिन 300 से ज्यादा शवों का दाह संस्कार हो रहा है. इनमें वाराणसी ही नहीं, बल्कि आसपास के जिलों से भी आने वाले शव शामिल हैं. आम दिनों में यह संख्या दोनों घाटों पर मिलाकर लगभग 80 से 100 होती है, लेकिन कोरोना काल में मौतों का आंकड़ा बढ़ गया है. श्मशान घाटों पर 7000 रुपये का शुल्क निर्धारित होने के बाद भी शवों के दाह संस्कार के लिए मनमाने पैसे वसूले जा रहे हैं. इस बात की पुष्टि स्थानीय लोग भी कर रहे हैं.

शव यात्रा से लोगों ने बनाई दूरी
एक समय था, जब शव को कंधा देने के लिए लोग स्वयं से आगे आते थे और इसे पुण्य का काम समझते थे, लेकिन आज स्थिति बिल्कुल विपरीत है. आज किसी को पुण्य की परवाह नहीं है. हर कोई बस खुद को कोरोना से सुरक्षित रखना चाहता है. यही वजह है कि इस समय 'अपनों' ने 'अपनों' से दूरी बना ली है.

इस तरह होता है पूरा खेल
दोनों श्मशान घाटों पर कंधा देने वालों की भीड़ एक अलग कोने में बैठी दिखाई दे जाएगी. जब शव को लेकर परिजन पहुंचते हैं तो ये लोग दाह संस्कार के लिए बातचीत शुरू करते हैं. इसके बाद लकड़ी बेचने वालों के कहने पर कंधा देने वाले लोग आगे आते हैं और भाड़े पर कंधा देने की बात करते हैं. ये लोग 3000-3500 रुपये से शुरुआत करते हैं और मोल भाव करते करते 500 से 1000 रुपये तक आते हैं. ऐसे में आज मोक्ष नगरी में लोगों को चार कंधों के लिए 2000 से 4000 रुपये तक का भुगतान करना पड़ रहा है.

अब आप बताएं कि एक गरीब आदमी अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार भी कैसे कर पाएगा. बनारस के हरिश्चंद्र घाट व मणिकर्णिका घाट पर आजकल रोजाना 300 से ज्यादा शवों का अंतिम संस्कार हो रहा है. यहां वाराणसी के अलावा दूसरे जिलों से भी शव लाए जा रहे. अगर कोरोना यूं ही कहर बरपाता रहा और लाशें भी कमाई का जरिया बनी रहीं तो यकीन मानिए काशी में मोक्ष के लिए कोई नहीं आएगा.

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