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बनारसी लंगड़ा आम को जीआई टैग दिलाने की शुरू हुई कवायद, लिस्ट में बनारसी पान भी शामिल

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Published : Jul 5, 2020, 10:40 PM IST

देश में कोरोना है और इसी बीच सीमा विवाद को लेकर चीन से तनाव भी. इन सबके बीच प्रधानमंत्री मोदी ने आत्मनिर्भर भारत का भी नारा दिया है. इसी क्रम में बनारसी लंगड़ा आम के साथ अन्य 10 उत्पादों को भी जीआई टैग दिलाने की कवायद शुरु हो गई है.

बनारसी लंगड़ा आम को मिलेगा जीआई टैग.
बनारसी लंगड़ा आम को मिलेगा जीआई टैग.

वाराणसी: धर्म अध्यात्म की नगरी वाराणसी जहां पर खाने-खिलाने का भी बेहद मजा है. यहां की चाट हो या बनारसी पान दुनिया में इसका कोई जोड़ नहीं है. वहीं अब बनारसी लंगडा आम भी किसी से पीछे नहीं है. कोरोना के इस दौर में बनारस का लंगड़ा आम अमेरिका और लंदन भेजा जा रहा है. गर्मियों के सीजन में अगर किसी ने बनारसी आम नहीं खाया तो शायद उसे आम का मजा ही न मिले. बनारस में मिलने वाला बनारसी लंगड़ा आम अब विदेशों तक पहुंच चुका है और अब इसको जीआई टैग दिलवाने की कवायद भी शुरू हो गई है. जीआई टैग मिलने के बाद यह कृषि क्षेत्र में बड़ा कदम तो होगा ही साथ में प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत को और भी बल मिलेगा.

बनारसी लंगड़ा आम को मिलेगा जीआई टैग.

क्या है जीआई टैग?
दरअसल जीआई टैग देश के उस भौगोलिक संकेतक के रूप में जाना जाता है जो किसी विशेष क्षेत्र राज्य या देश के उत्पाद निर्माता या व्यवसायियों के समूह के द्वारा तैयार किया जाता है. इन उत्पादों की विशिष्ट विशेषताएं एवं प्रतिष्ठा की वजह से भौगोलिक स्थिति के आधार पर इन्हें विशेष राज्य, जिले या देश में उत्पादन के आधार पर दिए जाने वाले टैग को ही जीआई टैग कहते हैं. इस टैग के मिलने के बाद जीआई टैग वाले उत्पादन का निर्माण का उत्पादन अन्य कोई राज्य, देश या जिला नहीं कर सकते. इसके बाद उक्त प्रोडक्ट भौगोलिक स्थिति के आधार पर सिर्फ उसी स्थान के लिए विशेष रूप से सुरक्षित हो जाता है और उसके कॉपी करने का अधिकार भी किसी को नहीं होता.

पूर्वांचल के 13 प्रोडक्ट्स को पहले ही मिल चुका है जीआई टैग
दरअसल पहले से ही वाराणसी समेत आसपास के जिलों की विशिष्ट चीजों को जीआई टैग मिलने का सिलसिला बीते कुछ सालों से लगातार जारी है. अब बनारस के पान समेत 10 उत्पादों के जीआई पंजीकरण की प्रक्रिया वर्तमान में शुरू की गई है. इसमें बनारसी लंगड़ा आम, मिर्जापुर का आदम चीनी चावल, रामनगर का मशहूर बैंगन और बनारसी पान शामिल है.

नाबार्ड और उत्तर प्रदेश सरकार के सहयोग से शुरु हो चुका है पंजीकरण
इन 10 चीजों के जीआई पंजीकरण के लिए वहां की स्थानीय उत्पादक संस्थाओं द्वारा नाबार्ड और उत्तर प्रदेश सरकार (ओपीडी सेल-एमयसएमई विभाग) के सहयोग से ह्यूमन वेलफेयर एशोसिएशन संस्था द्वारा शुरू किया जा चुका है. जल्दी ही इसे जीआई रजिस्ट्रेशन के लिए चेन्नई भेज दिया जाएगा.

जीआई टैग के लिए प्रयासरत और हस्तशिल्प व बुनकरों के लिए लगातार कार्य करने वाले पद्मश्री डॉ. रजनीकांत ने बताया कि जीआई का आवेदन हमेशा स्थानीय उत्पादक संस्थाओं द्वारा ही किया जाता है. रजनीकांत का कहना है कि पूर्वांचल के कुल 13 उत्पादों को जीआई का दर्जा हासिल हो चुका है.

जिन 13 उत्पादों को मिल चुका है जीआई टैग

  • काला नमक चावल
  • बनारसी साड़ी
  • मेटल क्राफ्ट
  • गुलाबी मीनाकारी
  • स्टोन शिल्प
  • चुनार बलुआ पत्थर
  • ग्लास बीड्स
  • भदोही का कालीन
  • गाजीपुर की वॉल हैंगिंग
  • मिर्जापुर की दरी
  • निजामाबाद आजमगढ़ की ब्लैक पॉटरी
  • इलाहाबाद का अमरूद
  • गोरखपुर का टेरोकोटा

बनारस का आम पहुंचा विदेश में
पूर्वांचल की इन 13 चीजों के जीआई टैग में शामिल होने के बाद अब तक उत्तर प्रदेश के 26 जीआई उत्पाद वैश्विक संपदा में शामिल हो चुके हैं. रजनीकांत का कहना है कि इस वक्त जब पूरा देश वैश्विक महामारी कोरोना से लड़ रहा है. तब बनारस के बनारसी लंगड़ा आम को पहले दुबई और फिर लंदन भेजकर एक कीर्तिमान स्थापित किया है. इस वक्त जब प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर भारत की बात कर रहे हैं तो यह बेहद जरूरी हो जाता है कि आत्मनिर्भर बनने के उद्देश्य से सबसे पहले कृषि को जोड़ा जाए. यदि कृषि क्षेत्र में उत्पादित होने वाले फल और सब्जियों को जीआई टैग मिलने का सिलसिला शुरू हो जाएगा तो निश्चित तौर पर भारत एक कृषि प्रधान देश कहलाएगा, इतना ही नहीं उसके बाद भारत तेजी से आत्मनिर्भर बन सकेगा.


बनारसी लंगड़ा आम है खास
महाराष्ट्र के अलफांजो और मालदा आम को पहले ही जीआई टैग मिल चुका है. अब अगर बनारसी लंगड़ा आम भी इस लिस्ट में शामिल हो जाएगा तो बनारस के लिए यह लाभकारी होगा. गंगा तट पर बसे इस शहर की भौगोलिक स्थिति के आधार पर सिर्फ लंगड़ा आम का उत्पादन बनारस में ही होता है. बनारसी लंगड़ा आम की अपनी खासियतें हैं. यदि इसे जीआई टैग मिल जाएगा तो आम बनारसी ब्रांड बन जाएगा. इससे बागवान के साथ पीएम के संसदीय क्षेत्र को और भी मजबूती मिलेगी.

वाराणसी: धर्म अध्यात्म की नगरी वाराणसी जहां पर खाने-खिलाने का भी बेहद मजा है. यहां की चाट हो या बनारसी पान दुनिया में इसका कोई जोड़ नहीं है. वहीं अब बनारसी लंगडा आम भी किसी से पीछे नहीं है. कोरोना के इस दौर में बनारस का लंगड़ा आम अमेरिका और लंदन भेजा जा रहा है. गर्मियों के सीजन में अगर किसी ने बनारसी आम नहीं खाया तो शायद उसे आम का मजा ही न मिले. बनारस में मिलने वाला बनारसी लंगड़ा आम अब विदेशों तक पहुंच चुका है और अब इसको जीआई टैग दिलवाने की कवायद भी शुरू हो गई है. जीआई टैग मिलने के बाद यह कृषि क्षेत्र में बड़ा कदम तो होगा ही साथ में प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत को और भी बल मिलेगा.

बनारसी लंगड़ा आम को मिलेगा जीआई टैग.

क्या है जीआई टैग?
दरअसल जीआई टैग देश के उस भौगोलिक संकेतक के रूप में जाना जाता है जो किसी विशेष क्षेत्र राज्य या देश के उत्पाद निर्माता या व्यवसायियों के समूह के द्वारा तैयार किया जाता है. इन उत्पादों की विशिष्ट विशेषताएं एवं प्रतिष्ठा की वजह से भौगोलिक स्थिति के आधार पर इन्हें विशेष राज्य, जिले या देश में उत्पादन के आधार पर दिए जाने वाले टैग को ही जीआई टैग कहते हैं. इस टैग के मिलने के बाद जीआई टैग वाले उत्पादन का निर्माण का उत्पादन अन्य कोई राज्य, देश या जिला नहीं कर सकते. इसके बाद उक्त प्रोडक्ट भौगोलिक स्थिति के आधार पर सिर्फ उसी स्थान के लिए विशेष रूप से सुरक्षित हो जाता है और उसके कॉपी करने का अधिकार भी किसी को नहीं होता.

पूर्वांचल के 13 प्रोडक्ट्स को पहले ही मिल चुका है जीआई टैग
दरअसल पहले से ही वाराणसी समेत आसपास के जिलों की विशिष्ट चीजों को जीआई टैग मिलने का सिलसिला बीते कुछ सालों से लगातार जारी है. अब बनारस के पान समेत 10 उत्पादों के जीआई पंजीकरण की प्रक्रिया वर्तमान में शुरू की गई है. इसमें बनारसी लंगड़ा आम, मिर्जापुर का आदम चीनी चावल, रामनगर का मशहूर बैंगन और बनारसी पान शामिल है.

नाबार्ड और उत्तर प्रदेश सरकार के सहयोग से शुरु हो चुका है पंजीकरण
इन 10 चीजों के जीआई पंजीकरण के लिए वहां की स्थानीय उत्पादक संस्थाओं द्वारा नाबार्ड और उत्तर प्रदेश सरकार (ओपीडी सेल-एमयसएमई विभाग) के सहयोग से ह्यूमन वेलफेयर एशोसिएशन संस्था द्वारा शुरू किया जा चुका है. जल्दी ही इसे जीआई रजिस्ट्रेशन के लिए चेन्नई भेज दिया जाएगा.

जीआई टैग के लिए प्रयासरत और हस्तशिल्प व बुनकरों के लिए लगातार कार्य करने वाले पद्मश्री डॉ. रजनीकांत ने बताया कि जीआई का आवेदन हमेशा स्थानीय उत्पादक संस्थाओं द्वारा ही किया जाता है. रजनीकांत का कहना है कि पूर्वांचल के कुल 13 उत्पादों को जीआई का दर्जा हासिल हो चुका है.

जिन 13 उत्पादों को मिल चुका है जीआई टैग

  • काला नमक चावल
  • बनारसी साड़ी
  • मेटल क्राफ्ट
  • गुलाबी मीनाकारी
  • स्टोन शिल्प
  • चुनार बलुआ पत्थर
  • ग्लास बीड्स
  • भदोही का कालीन
  • गाजीपुर की वॉल हैंगिंग
  • मिर्जापुर की दरी
  • निजामाबाद आजमगढ़ की ब्लैक पॉटरी
  • इलाहाबाद का अमरूद
  • गोरखपुर का टेरोकोटा

बनारस का आम पहुंचा विदेश में
पूर्वांचल की इन 13 चीजों के जीआई टैग में शामिल होने के बाद अब तक उत्तर प्रदेश के 26 जीआई उत्पाद वैश्विक संपदा में शामिल हो चुके हैं. रजनीकांत का कहना है कि इस वक्त जब पूरा देश वैश्विक महामारी कोरोना से लड़ रहा है. तब बनारस के बनारसी लंगड़ा आम को पहले दुबई और फिर लंदन भेजकर एक कीर्तिमान स्थापित किया है. इस वक्त जब प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर भारत की बात कर रहे हैं तो यह बेहद जरूरी हो जाता है कि आत्मनिर्भर बनने के उद्देश्य से सबसे पहले कृषि को जोड़ा जाए. यदि कृषि क्षेत्र में उत्पादित होने वाले फल और सब्जियों को जीआई टैग मिलने का सिलसिला शुरू हो जाएगा तो निश्चित तौर पर भारत एक कृषि प्रधान देश कहलाएगा, इतना ही नहीं उसके बाद भारत तेजी से आत्मनिर्भर बन सकेगा.


बनारसी लंगड़ा आम है खास
महाराष्ट्र के अलफांजो और मालदा आम को पहले ही जीआई टैग मिल चुका है. अब अगर बनारसी लंगड़ा आम भी इस लिस्ट में शामिल हो जाएगा तो बनारस के लिए यह लाभकारी होगा. गंगा तट पर बसे इस शहर की भौगोलिक स्थिति के आधार पर सिर्फ लंगड़ा आम का उत्पादन बनारस में ही होता है. बनारसी लंगड़ा आम की अपनी खासियतें हैं. यदि इसे जीआई टैग मिल जाएगा तो आम बनारसी ब्रांड बन जाएगा. इससे बागवान के साथ पीएम के संसदीय क्षेत्र को और भी मजबूती मिलेगी.

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