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माता कालरात्रि के दर्शन के लिए पहुंचे श्रद्धालु, कोरोना से निजात की कामना की

नवरात्र के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है. सदैव शुभ फल देने के कारण मां कालरात्रि को शुभंकरी भी कहा जाता है. वाराणसी में चारों ओर मां काली की पूजा की जा रही है. आइए जानते हैं वाराणसी के उस ऐतिहासिक मंदिर के बारे में जहां मां पार्वती ने सैकड़ों वर्ष तक कठोर तपस्या की थी.

मां काली की पूजा.
कोरोना से निजात के लिए की कामना
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Published : Apr 19, 2021, 1:39 PM IST

Updated : Sep 21, 2022, 5:03 PM IST

वाराणसी: आज वासंतिक नवरात्र का सातवां दिन है. आज के दिन मां के सप्तम स्वरूप मां कालरात्रि के पूजन का विधान है. काशी में मां कालरात्रि का अद्भुत मंदिर है. मीर घाट के समीप कालिका गली में 'कालरात्रि मंदिर' स्थित है. इसी मंदिर में मां पार्वती ने सैकड़ों वर्षों तक रहकर कठोर तपस्या की थी. आज माता के दर्शन करने के लिए सुबह से ही मंदिर में भक्तों का तांता लगा हुआ है. हालांकि कोरोना के मद्देनजर प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं. बिना मास्क के श्रद्धालुओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं है.

माता के दर्शन मात्र से भय से मिलती है मुक्ति

मान्यता है कि माता के सप्तम स्वरूप की पूजा करने से काल का नाश होता है. मां के इस स्वरूप को वीरता और साहस का प्रतीक माना जाता है. मां कालरात्रि की कृपा से भक्त हमेशा भयमुक्त रहता है. मां कालरात्रि की पूजा करने से भक्तों को अग्नि, जल, शत्रु आदि किसी का भी भय नहीं होता.

मां का सातवां स्वरूप अद्भुत

मां कालरात्रि का रंग गहरा काला है और बाल खुले हुए हैं. वह गन्धर्व पर सवार रहती हैं. माता की चार भुजाएं हैं. उनके एक बाएं हाथ में कटार और दूसरे बाएं हाथ में लोहे का कांटा है. वहीं एक दायां हाथ अभय मुद्रा और दूसरा दायां हाथ वर मुद्रा में रहता है. माता के गले में मुंडों की माला होती है. इन्हें त्रिनेत्री भी कहा जाता है. माता के तीन नेत्र ब्रह्मांड की तरह विशाल हैं. माता का यह स्वरूप कान्तिमय और अद्भुत दिखाई देता है.

कालरात्रि मंदिर में मां पार्वती ने की थी तपस्या

वाराणसी का कालरात्रि मंदिर ऐसा अद्भुत मंदिर है, जिसके बारे में कहा जाता है कि जब मां पार्वती भगवान शंकर के मजाक के कारण रुष्ट हो गई थीं, तब वह सैकड़ों वर्षों तक यहीं पर आकर रहीं और कठोर तपस्या की. इसके बाद जब शंकर भगवान उन्हें मना कर ले गए तभी वह वापस गईं. यहां नवरात्र के सातवें दिन भोर में माता का विशेष श्रृंगार किया जाता है.

सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम

इस समय कोरोना महामारी ने पूरे देश में हाहाकार मचाया हुआ है. इसके चलते प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं. मंदिर में प्रवेश करने से पहले श्रद्धालुओं का मास्क लगाना सुनिश्चित किया जा रहा है. वहीं बिना हाथ सैनिटाइज किए किसी को भी मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं है.

'सुहागनों का सुहाग रहता है अटल'

मंदिर के पुजारी सुरेंद्र नारायण तिवारी बताते हैं कि भगवती के इस रूप में संहार की शक्ति है. मृत्यु अर्थात काल का विनाश करने की शक्ति भगवती में होने के कारण इनकी कालरात्रि के रूप में पूजा की जाती है. उन्होंने कहा कि माता से विनती है कि जल्द से जल्द देश को कोरोना के मुसीबत से उबारें.

वाराणसी: आज वासंतिक नवरात्र का सातवां दिन है. आज के दिन मां के सप्तम स्वरूप मां कालरात्रि के पूजन का विधान है. काशी में मां कालरात्रि का अद्भुत मंदिर है. मीर घाट के समीप कालिका गली में 'कालरात्रि मंदिर' स्थित है. इसी मंदिर में मां पार्वती ने सैकड़ों वर्षों तक रहकर कठोर तपस्या की थी. आज माता के दर्शन करने के लिए सुबह से ही मंदिर में भक्तों का तांता लगा हुआ है. हालांकि कोरोना के मद्देनजर प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं. बिना मास्क के श्रद्धालुओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं है.

माता के दर्शन मात्र से भय से मिलती है मुक्ति

मान्यता है कि माता के सप्तम स्वरूप की पूजा करने से काल का नाश होता है. मां के इस स्वरूप को वीरता और साहस का प्रतीक माना जाता है. मां कालरात्रि की कृपा से भक्त हमेशा भयमुक्त रहता है. मां कालरात्रि की पूजा करने से भक्तों को अग्नि, जल, शत्रु आदि किसी का भी भय नहीं होता.

मां का सातवां स्वरूप अद्भुत

मां कालरात्रि का रंग गहरा काला है और बाल खुले हुए हैं. वह गन्धर्व पर सवार रहती हैं. माता की चार भुजाएं हैं. उनके एक बाएं हाथ में कटार और दूसरे बाएं हाथ में लोहे का कांटा है. वहीं एक दायां हाथ अभय मुद्रा और दूसरा दायां हाथ वर मुद्रा में रहता है. माता के गले में मुंडों की माला होती है. इन्हें त्रिनेत्री भी कहा जाता है. माता के तीन नेत्र ब्रह्मांड की तरह विशाल हैं. माता का यह स्वरूप कान्तिमय और अद्भुत दिखाई देता है.

कालरात्रि मंदिर में मां पार्वती ने की थी तपस्या

वाराणसी का कालरात्रि मंदिर ऐसा अद्भुत मंदिर है, जिसके बारे में कहा जाता है कि जब मां पार्वती भगवान शंकर के मजाक के कारण रुष्ट हो गई थीं, तब वह सैकड़ों वर्षों तक यहीं पर आकर रहीं और कठोर तपस्या की. इसके बाद जब शंकर भगवान उन्हें मना कर ले गए तभी वह वापस गईं. यहां नवरात्र के सातवें दिन भोर में माता का विशेष श्रृंगार किया जाता है.

सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम

इस समय कोरोना महामारी ने पूरे देश में हाहाकार मचाया हुआ है. इसके चलते प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं. मंदिर में प्रवेश करने से पहले श्रद्धालुओं का मास्क लगाना सुनिश्चित किया जा रहा है. वहीं बिना हाथ सैनिटाइज किए किसी को भी मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं है.

'सुहागनों का सुहाग रहता है अटल'

मंदिर के पुजारी सुरेंद्र नारायण तिवारी बताते हैं कि भगवती के इस रूप में संहार की शक्ति है. मृत्यु अर्थात काल का विनाश करने की शक्ति भगवती में होने के कारण इनकी कालरात्रि के रूप में पूजा की जाती है. उन्होंने कहा कि माता से विनती है कि जल्द से जल्द देश को कोरोना के मुसीबत से उबारें.

Last Updated : Sep 21, 2022, 5:03 PM IST
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