वाराणसी: वासंतिक नवरात्र के चौथे दिन शक्ति की देवी मां कुष्मांडा की पूजा का विधान है. देवी कुष्मांडा को अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है, क्योंकि देवी कुष्मांडा की आठ भुजाएं हैं. इन भुजाओं में कमंडल, धनुष-बाण, कमल पुष्प, शंख चक्र, गदा, हस्त और सभी सिद्धियों को देने वाली जपमाला है. मां के हाथों में इन सभी चीजों के अलावा कलश भी होता है, जो असुरों के रक्त से भरा होता है. मां कुष्मांडा का वाहन सिंह है. मान्यता है कि इनके स्वरूप की पूजा करने से भय से मुक्ति मिलती है. हालांकि इस साल कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों के चलते वाराणसी प्रशासन ने मां कुष्मांडा देवी मंदिर पर सख्ती बढ़ा दी है. कोविड गाइडलाइन का पालन करने वाले श्रद्धालुओं को ही मंदिर में प्रवेश दिया जा रहा है.
अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था मंदिर का निर्माण
वाराणसी के दुर्गा कुंड स्थित मां दुर्गा के मंदिर का निर्माण 1780 में देवी अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था. कुछ कहानियों में ये भी जिक्र है कि यह मंदिर भगवान के चमत्कार से अपने आप पृथ्वी पर दिखने लगा.
संसार में फैले अंधकार को दूर किया
शास्त्रों के अनुसार, मां कुष्मांडा ने अपनी दिव्य शक्ति से संसार में फैले अंधकार को दूर किया था. चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए माता कुष्मांडा को सभी दुखों को हरने वाली मां भी कहा जाता है. मां दुर्गा का यह इकलौता ऐसा स्वरूप है, जिन्हें सूर्यलोक में रहने की शक्ति प्राप्त है.
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दर्शन मात्र से दूर होते हैं कष्ट
मान्यता है कि मां कुष्मांडा की पूजा करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं. कहा जाता है कि मां कुष्मांडा को कुम्हड़े की बलि अतिप्रिय है. इसलिए नवरात्र के चौथे दिन सुबह उठकर स्नान कर हरे रंग के वस्त्र धारण करें. मां की मूर्ति के सामने घी का दीपक जलाएं और माता को तिलक लगाएं, फिर देवी को हरी इलायची, सौंफ और कुम्हड़े का भोग लगाकर मां कुष्मांडा के मंत्र का जाप 108 बार करें. मां कुष्मांडा की आरती उतारें के बाद किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं या दान दें. इससे मां प्रसन्न होकर मनोवांछित फल देती हैं.
मंदिर प्रशासन ने बढ़ायी सख्ती
कोरोना महामारी की दूसरी खतरनाक लहर को देखते हुए मंदिर के अंदर 5 से अधिक लोगों का एक साथ प्रवेश वर्जित है. नवरात्र के अलावा अन्य दिनों में भी यहां भक्तों की लम्बी कतारें देखी जाती थीं. मगर इस बार भक्तों की संख्या काफी घटी है. थर्मल स्कैनिंग करने के बाद ही मंदिर में भक्तों को प्रवेश दिया जा रहा है. बिना मास्क के मंदिर के अंदर प्रवेश पर पूर्ण रूप से मनाही है.