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वाराणसी: महाश्मशान हरिश्चंद्र घाट पर खेली गई चिता भस्म की होली

मान्यता के अनुसार बाबा विश्वनाथ कल माता गौरा का गौना कराते हैं. अपने ससुराल में देवताओं के साथ गुलाल और अबीर के साथ होली खेलते हैं, जिसे रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है. उसके बाद बाबा स्वयं महादेव भूत, प्रेत, पिचास चुड़ैल, साधुओं के साथ मसान में आकर चिता भस्म की होली खेलते हैं.

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काशीवासियों ने खेली चिता भस्म की होली.
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Published : Mar 6, 2020, 6:53 PM IST

वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी के महाश्मशान घाटों पर शुक्रवार को एक अलग ही नजारा देखने को मिला. जलती चिताओं के बीच बाबा मसाननाथ के साथ काशीवासियों ने रंग और गुलाल की नहीं बल्कि भस्म से होली खेली.

जिले के अति प्राचीन हरिश्चंद्र घाट पर सैकड़ों की संख्या में काशीवासियों ने चिता भस्म की होली खेली. बाबा कीनाराम तपस्थली से शोभायात्रा निकाली गई जो हरिश्चंद्र घाट पहुंची. यहां पर लोगों ने बाबा के भस्म की आरती की और उसके बाद जमकर उनके साथ होली खेली.

काशीवासियों ने खेली चिता भस्म की होली.

मान्यता के अनुसार बाबा विश्वनाथ कल माता गौरा का गौना कराते हैं. अपने ससुराल में देवताओं के साथ गुलाल और अबीर के साथ होली खेलते हैं, जिसे रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है. उसके बाद बाबा स्वयं महादेव भूत, प्रेत, पिचास चुड़ैल, साधुओं के साथ मसान में आकर चिता भस्म की होली खेलते हैं.

आयोजक समिति के सदस्य गोपाल प्रसाद ने बताया हम लोग बाबा कीनाराम स्थल से महाश्मशान हरिश्चंद्र घाट तक बाबा मसाननाथ की शोभायात्रा निकाली. जहां पर सब ने मिलकर चिता भस्म की होली खेली और बनारस की अति प्राचीन परंपरा का निर्वहन किया.

ये भी पढ़ें- रंगभरी के बाद होली की मस्ती में रंगी काशी की महिलाएं

वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी के महाश्मशान घाटों पर शुक्रवार को एक अलग ही नजारा देखने को मिला. जलती चिताओं के बीच बाबा मसाननाथ के साथ काशीवासियों ने रंग और गुलाल की नहीं बल्कि भस्म से होली खेली.

जिले के अति प्राचीन हरिश्चंद्र घाट पर सैकड़ों की संख्या में काशीवासियों ने चिता भस्म की होली खेली. बाबा कीनाराम तपस्थली से शोभायात्रा निकाली गई जो हरिश्चंद्र घाट पहुंची. यहां पर लोगों ने बाबा के भस्म की आरती की और उसके बाद जमकर उनके साथ होली खेली.

काशीवासियों ने खेली चिता भस्म की होली.

मान्यता के अनुसार बाबा विश्वनाथ कल माता गौरा का गौना कराते हैं. अपने ससुराल में देवताओं के साथ गुलाल और अबीर के साथ होली खेलते हैं, जिसे रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है. उसके बाद बाबा स्वयं महादेव भूत, प्रेत, पिचास चुड़ैल, साधुओं के साथ मसान में आकर चिता भस्म की होली खेलते हैं.

आयोजक समिति के सदस्य गोपाल प्रसाद ने बताया हम लोग बाबा कीनाराम स्थल से महाश्मशान हरिश्चंद्र घाट तक बाबा मसाननाथ की शोभायात्रा निकाली. जहां पर सब ने मिलकर चिता भस्म की होली खेली और बनारस की अति प्राचीन परंपरा का निर्वहन किया.

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