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देश में देसी गाय के गोबर से बने दीयों की धूम, बढ़ रही मांग - लोकल फॉर लोकल

पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र में लोकल फॉर लोकल के तहत गाय के गोबर से दिये बनाए जा रहे हैं. उसके साथी प्रथम पूजनीय भगवान गणेश और लक्ष्मी की मूर्ति भी गोबर से बनाए जा रही है. मार्केट में गोबर से बने हुए गणेश लक्ष्मी की मूर्ति और जिओ का बहुत ही ज्यादा डिमांड है.

लोकल फॉर लोकल को बढ़ रहा बढ़ावा
लोकल फॉर लोकल को बढ़ रहा बढ़ावा
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Published : Oct 31, 2021, 8:23 AM IST

वाराणसी: पूरे देश में दीपावली की तैयारियां चल रही हैं. धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी में भी और दीपावली का महापर्व हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है. इसी की तरह इस बार बनारस के लोग इको फ्रेंडली तरीके से दीपावली मनाने की तैयारी में हैं. यहां भगवान गणेश और लक्ष्मी की मूर्ति गोबर से बनाई जा रही है. घरों में सजाने वाली वस्तुएं भी गोबर से खास तरीके से तैयार की जा रही हैं.


खास बात यह है कि गोबर से तैयार की गई मूर्तियां बिल्कुल मिट्टी के मूर्ति जैसी ही लग रही हैं. हालांकि, लोग काफी ज्यादा इन मूर्तियों को भी पसंद कर रहे हैं. इसीलिए मार्केट में यह मूर्तियां आसानी से मिल रही हैं, कारीगर भी बहुत ही खुश हैं कि इस बार दीपावली में लोग गोबर से बनी मूर्ति ले रहे हैं जो हम लोग के लिए भविष्य में अच्छे संकेत हैं

देश में देसी गाय के गोबर से बने दीयों की धूम
मिट्टी के मूर्ति और दिये बनाने वाले अंशुमान राय ने बताया कि यह हमारी संस्कृति है. गोबर से ही गौरी गणेश बनाकर उनका पूजन पाठ किया जाता है. वहीं से विचार आया कि क्यों न गोबर से ही मूर्ति बनाई जाए. यह हमारे नेचर के लिए बहुत ही अच्छा है. दीये जलने के बाद उसकी राख भी खाद के रूप में हम खेतों में प्रयोग कर सकते हैं.अंशुमान ने बताया कि लगातार आर्डर मिल रहे हैं. मूर्ति की कीमत 25 रुपये से लेकर लगभग 3000 तक रुपए की बड़ी मूर्ति बेची जा रही हैं, अभी तक साढ़े चार लाख दिये का आर्डर हम लोगों को मिल चुका है.
यह भी पढ़ें- 2 नवंबर से कर सकेंगे मां अन्नपूर्णा की पूजा, साल में केवल चार दिन ही होते हैं दर्शन



उन्होंने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में जिनके पास देशी गाय हैं, हम उनसे गोबर लेते हैं और इसके लिए उन्हें कीमत भी देते हैं. लोकल फॉर वोकल की तरह गांव में भी रोजगार मिल रहा है और बहुत से किसान परिवार हमसे जुड़ रहा है. गोबर में थोड़ा मिट्टी मिलाते हैं और आवश्यक चीजें मिलाकर इसको तैयार करते हैं. हमारे साथ अब तक 40 लोग कार्य को कर रहे हैं.

वहीं कारीगर, सुमन पाल ने बताया कि देशी गाय के गोबर से हम लोग दिए बनाते हैं. प्रधानमंत्री लगातार लोकल फॉर लोकल की बात कर रहे हैं. उन्हीं की प्रेरणा से हम लोग ये काम कर पा रहे हैं. उन्होंने ही गांव में ट्रेनिंग देकर हम लोगों को गोबर से दिए और मूर्ति बनाने सिखाया है.

वाराणसी: पूरे देश में दीपावली की तैयारियां चल रही हैं. धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी में भी और दीपावली का महापर्व हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है. इसी की तरह इस बार बनारस के लोग इको फ्रेंडली तरीके से दीपावली मनाने की तैयारी में हैं. यहां भगवान गणेश और लक्ष्मी की मूर्ति गोबर से बनाई जा रही है. घरों में सजाने वाली वस्तुएं भी गोबर से खास तरीके से तैयार की जा रही हैं.


खास बात यह है कि गोबर से तैयार की गई मूर्तियां बिल्कुल मिट्टी के मूर्ति जैसी ही लग रही हैं. हालांकि, लोग काफी ज्यादा इन मूर्तियों को भी पसंद कर रहे हैं. इसीलिए मार्केट में यह मूर्तियां आसानी से मिल रही हैं, कारीगर भी बहुत ही खुश हैं कि इस बार दीपावली में लोग गोबर से बनी मूर्ति ले रहे हैं जो हम लोग के लिए भविष्य में अच्छे संकेत हैं

देश में देसी गाय के गोबर से बने दीयों की धूम
मिट्टी के मूर्ति और दिये बनाने वाले अंशुमान राय ने बताया कि यह हमारी संस्कृति है. गोबर से ही गौरी गणेश बनाकर उनका पूजन पाठ किया जाता है. वहीं से विचार आया कि क्यों न गोबर से ही मूर्ति बनाई जाए. यह हमारे नेचर के लिए बहुत ही अच्छा है. दीये जलने के बाद उसकी राख भी खाद के रूप में हम खेतों में प्रयोग कर सकते हैं.अंशुमान ने बताया कि लगातार आर्डर मिल रहे हैं. मूर्ति की कीमत 25 रुपये से लेकर लगभग 3000 तक रुपए की बड़ी मूर्ति बेची जा रही हैं, अभी तक साढ़े चार लाख दिये का आर्डर हम लोगों को मिल चुका है.
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उन्होंने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में जिनके पास देशी गाय हैं, हम उनसे गोबर लेते हैं और इसके लिए उन्हें कीमत भी देते हैं. लोकल फॉर वोकल की तरह गांव में भी रोजगार मिल रहा है और बहुत से किसान परिवार हमसे जुड़ रहा है. गोबर में थोड़ा मिट्टी मिलाते हैं और आवश्यक चीजें मिलाकर इसको तैयार करते हैं. हमारे साथ अब तक 40 लोग कार्य को कर रहे हैं.

वहीं कारीगर, सुमन पाल ने बताया कि देशी गाय के गोबर से हम लोग दिए बनाते हैं. प्रधानमंत्री लगातार लोकल फॉर लोकल की बात कर रहे हैं. उन्हीं की प्रेरणा से हम लोग ये काम कर पा रहे हैं. उन्होंने ही गांव में ट्रेनिंग देकर हम लोगों को गोबर से दिए और मूर्ति बनाने सिखाया है.

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