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वाराणसी का यह आश्रम लोगों को दे रहा अनोखा संदेश, गोमाता और नंदी का किया जाता है संरक्षण

वाराणसी के रमना स्थित टिकरी में एक ऐसा भी आश्रम है, जहां पर 300 से ज्यादा संख्या में गाय और 200 से ज्यादा की संख्या में सांड़ों का पालन-पोषण किया जाता है. आस-पास के गांव वाले नियमित रूप से आकर आश्रम की साफ-सफाई और गोवंशों की देखभाल करते हैं.

गाय की होती है सेवा.
गाय की होती है सेवा.
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Published : Jul 1, 2020, 11:01 PM IST

वाराणसी: वर्तमान दौर में लोग जहां अपनी रोजी-रोटी के लिए गौ का पालन करते हैं तो वहीं अपनी जरूरत पूरी होने के बाद उनको सड़क पर घूमने के लिए छोड़ देते हैं और सही ढंग से उनके चारे की व्यवस्था भी नहीं करते. ऐसे लोगों को वाराणसी का एक आश्रम नसीहत दे रहा है. जिले के रमना के टिकरी इलाके में स्थित आश्रम में 300 से ज्यादा संख्या में गाय और 200 से ज्यादा नंदी स्वरूप सांड़ का पालन-पोषण किया जाता है. यहां पर न किसी गाय को बेचा जाता है और न ही किसी गाय को खूंटे से बांधा जाता है. इस आश्रम में गाय और नंदी की नि:स्वार्थ सेवा की जाती है. इतना ही नहीं गांव के लोग ही इनके चारे-पानी की व्यवस्था करते हैं. ईटीवी भारत की टीम ने आश्रम में जाकर यहां के सेवादार एवं महंत से बातचीत की.

गायों के साथ सांड़ का भी होता है संरक्षण.

गाय के साथ सांड़ का भी होता है पालन-पोषण

संत वितरगानंद सरस्वती आश्रम के बारे में बताते हुए स्वामी विशेश्वर आनंद सरस्वती ने कहा कि 1924 में यह आश्रम यहां पर स्थापित हुआ था. हमारे गुरु जी की तरफ से देव वाणी हुई थी कि गौ माता और नंदी भगवान की सेवा करनी है. हम लोग उसी को अपनी प्रेरणा मानकर हम तब से इनकी सेवा करते आए हैं. हमारे यहां 300 के लगभग गाय और 200 के लगभग में नंदी भगवान हैं. यहां पर उनका पालन-पोषण किया जाता है.

ट्रस्ट के नाम से रजिस्टर नहीं है आश्रम

स्वामी विशेश्वर आनंद सरस्वती ने बताया कि यह आश्रम किसी ट्रस्ट के नाम से रजिस्टर नहीं है. यहां की उत्तराधिकारी स्वयं गौ माता हैं. सेवादार और भक्त इनके खाने-पीने के लिए अनुदान देते हैं और वही लोग सुबह-शाम आकर इनको चारा डालते हैं, साथ ही यहां की साफ-सफाई की व्यवस्था करते हैं.

आश्रम का नियम है निस्वार्थ सेवा

उन्होंने बताया कि यहां पर गाय और सांड़ को बांधा नहीं जाता है. सरकार से मदद लेने के सवाल पर उन्होंने बताया कि हम सरकार की मदद इसलिए नहीं लेते क्योंकि हम अपने आश्रम का बाजारीकरण नहीं करना चाहते. आश्रम की उत्तराधिकारी हमारी गौ माता हैं और हम चाहते हैं कि यहां पर लोग सदैव प्रेमभाव और लोकसेवा की भावना से ही आएं. इसके ट्रस्ट बन जाने के बाद यह एक प्रकार से बाजारीकरण की ओर रुख करेगा, जिससे लोगों की सेवाभाव और भक्ति में कमी आएगी. उन्होंने बताया कि सेवा हमेशा नि:स्वार्थ भाव से करनी चाहिए, यदि उसमें कोई लालच आ गया तो सेवा का कोई मतलब नहीं रह जाता है. हमारे आश्रम का नियम ही है नि:स्वार्थ सेवा करना और लोग यही करने के लिए यहां आते हैं.

सेवादार बोलीं, अच्छा लगता है यहां काम करना

यहां साफ-सफाई और गायों की सेवा करने वाली सेवादार इंदु ने बताया कि वह अपने बचपन से ही इस आश्रम में आती हैं और यहां अपनी सेवा देती हैं. उनका कहना था कि यहां आकर उनको बहुत अच्छा लगता है. उन्होंने बताया कि मैं ही नहीं बल्कि गांव के सभी लोग यहां आते हैं और बारी-बारी से अपनी सेवा देकर पुण्य को अर्जित करते हैं. वहीं अनूप का कहना है कि संत वितरगानंद सरस्वती के आश्रम में जो कार्य किया जा रहा है, वह बेहद सराहनीय है. समाज में रहने वाले हम सभी लोगों को उनसे सीख लेनी चाहिए.

काशी में 2 तरह से होता है गोशालाओं का संचालन

वाराणसी की गोशालाओं के बारे में पशु चिकित्साधिकारी डॉ. वीबी सिंह ने बताया कि काशी में 2 तरीके से गोशालाओं का संचालन किया जाता है, एक उत्तर प्रदेश सरकार के पशुपालन विभाग द्वारा और दूसरा नगर निगम विभाग वाराणसी द्वारा. जिले में ग्रामीण क्षेत्रों में 76 जगहों का गौशाला निर्माण के लिए चयन किया गया है. इनमें से कुछ जगहों पर गोशाला में पशुपालन की गतिविधि शुरू हो गई और कुछ निर्माणाधीन हैं.

गोशालाओं में रखे जाते हैं गाय और सांड़

पशु चिकित्साधिकारी डॉ. वीबी सिंह ने बताया कि सरकार द्वारा संचालित गोशालाओं में सर्वप्रथम उन जानवरों रखा जाता है, जो असहाय और निर्बल हैं, जिससे ये खुद भी चोटिल न हों साथ ही दूसरों को भी चोटिल न करें. इसमें नगर निगम द्वारा अभियान चलाकर शहर में टहलने वाले जानवरों को कान्हा उपवन जोकि स्मार्ट सिटी के तहत है उसमें रखा जाता है. इसके अलावा जिले में प्राइवेट गोशालाएं भी हैं. वहीं नगर निगम में दो कांजी हाउस भी हैं, जिसमें पशुओं को पकड़कर रखा जाता है, उसके बाद उन्हें गोशाला में शिफ्ट किया जाता है. इसके साथ ही साथ गांवों में भी सड़क पर विचरण करने वाले जानवरों को स्थानीय प्रशासन और खंड विकास अधिकारी के सहयोग से गोशालाओं में रखा जाता है.

वाराणसी: वर्तमान दौर में लोग जहां अपनी रोजी-रोटी के लिए गौ का पालन करते हैं तो वहीं अपनी जरूरत पूरी होने के बाद उनको सड़क पर घूमने के लिए छोड़ देते हैं और सही ढंग से उनके चारे की व्यवस्था भी नहीं करते. ऐसे लोगों को वाराणसी का एक आश्रम नसीहत दे रहा है. जिले के रमना के टिकरी इलाके में स्थित आश्रम में 300 से ज्यादा संख्या में गाय और 200 से ज्यादा नंदी स्वरूप सांड़ का पालन-पोषण किया जाता है. यहां पर न किसी गाय को बेचा जाता है और न ही किसी गाय को खूंटे से बांधा जाता है. इस आश्रम में गाय और नंदी की नि:स्वार्थ सेवा की जाती है. इतना ही नहीं गांव के लोग ही इनके चारे-पानी की व्यवस्था करते हैं. ईटीवी भारत की टीम ने आश्रम में जाकर यहां के सेवादार एवं महंत से बातचीत की.

गायों के साथ सांड़ का भी होता है संरक्षण.

गाय के साथ सांड़ का भी होता है पालन-पोषण

संत वितरगानंद सरस्वती आश्रम के बारे में बताते हुए स्वामी विशेश्वर आनंद सरस्वती ने कहा कि 1924 में यह आश्रम यहां पर स्थापित हुआ था. हमारे गुरु जी की तरफ से देव वाणी हुई थी कि गौ माता और नंदी भगवान की सेवा करनी है. हम लोग उसी को अपनी प्रेरणा मानकर हम तब से इनकी सेवा करते आए हैं. हमारे यहां 300 के लगभग गाय और 200 के लगभग में नंदी भगवान हैं. यहां पर उनका पालन-पोषण किया जाता है.

ट्रस्ट के नाम से रजिस्टर नहीं है आश्रम

स्वामी विशेश्वर आनंद सरस्वती ने बताया कि यह आश्रम किसी ट्रस्ट के नाम से रजिस्टर नहीं है. यहां की उत्तराधिकारी स्वयं गौ माता हैं. सेवादार और भक्त इनके खाने-पीने के लिए अनुदान देते हैं और वही लोग सुबह-शाम आकर इनको चारा डालते हैं, साथ ही यहां की साफ-सफाई की व्यवस्था करते हैं.

आश्रम का नियम है निस्वार्थ सेवा

उन्होंने बताया कि यहां पर गाय और सांड़ को बांधा नहीं जाता है. सरकार से मदद लेने के सवाल पर उन्होंने बताया कि हम सरकार की मदद इसलिए नहीं लेते क्योंकि हम अपने आश्रम का बाजारीकरण नहीं करना चाहते. आश्रम की उत्तराधिकारी हमारी गौ माता हैं और हम चाहते हैं कि यहां पर लोग सदैव प्रेमभाव और लोकसेवा की भावना से ही आएं. इसके ट्रस्ट बन जाने के बाद यह एक प्रकार से बाजारीकरण की ओर रुख करेगा, जिससे लोगों की सेवाभाव और भक्ति में कमी आएगी. उन्होंने बताया कि सेवा हमेशा नि:स्वार्थ भाव से करनी चाहिए, यदि उसमें कोई लालच आ गया तो सेवा का कोई मतलब नहीं रह जाता है. हमारे आश्रम का नियम ही है नि:स्वार्थ सेवा करना और लोग यही करने के लिए यहां आते हैं.

सेवादार बोलीं, अच्छा लगता है यहां काम करना

यहां साफ-सफाई और गायों की सेवा करने वाली सेवादार इंदु ने बताया कि वह अपने बचपन से ही इस आश्रम में आती हैं और यहां अपनी सेवा देती हैं. उनका कहना था कि यहां आकर उनको बहुत अच्छा लगता है. उन्होंने बताया कि मैं ही नहीं बल्कि गांव के सभी लोग यहां आते हैं और बारी-बारी से अपनी सेवा देकर पुण्य को अर्जित करते हैं. वहीं अनूप का कहना है कि संत वितरगानंद सरस्वती के आश्रम में जो कार्य किया जा रहा है, वह बेहद सराहनीय है. समाज में रहने वाले हम सभी लोगों को उनसे सीख लेनी चाहिए.

काशी में 2 तरह से होता है गोशालाओं का संचालन

वाराणसी की गोशालाओं के बारे में पशु चिकित्साधिकारी डॉ. वीबी सिंह ने बताया कि काशी में 2 तरीके से गोशालाओं का संचालन किया जाता है, एक उत्तर प्रदेश सरकार के पशुपालन विभाग द्वारा और दूसरा नगर निगम विभाग वाराणसी द्वारा. जिले में ग्रामीण क्षेत्रों में 76 जगहों का गौशाला निर्माण के लिए चयन किया गया है. इनमें से कुछ जगहों पर गोशाला में पशुपालन की गतिविधि शुरू हो गई और कुछ निर्माणाधीन हैं.

गोशालाओं में रखे जाते हैं गाय और सांड़

पशु चिकित्साधिकारी डॉ. वीबी सिंह ने बताया कि सरकार द्वारा संचालित गोशालाओं में सर्वप्रथम उन जानवरों रखा जाता है, जो असहाय और निर्बल हैं, जिससे ये खुद भी चोटिल न हों साथ ही दूसरों को भी चोटिल न करें. इसमें नगर निगम द्वारा अभियान चलाकर शहर में टहलने वाले जानवरों को कान्हा उपवन जोकि स्मार्ट सिटी के तहत है उसमें रखा जाता है. इसके अलावा जिले में प्राइवेट गोशालाएं भी हैं. वहीं नगर निगम में दो कांजी हाउस भी हैं, जिसमें पशुओं को पकड़कर रखा जाता है, उसके बाद उन्हें गोशाला में शिफ्ट किया जाता है. इसके साथ ही साथ गांवों में भी सड़क पर विचरण करने वाले जानवरों को स्थानीय प्रशासन और खंड विकास अधिकारी के सहयोग से गोशालाओं में रखा जाता है.

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