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महामारी की मार: मजबूरी में किताबें भूल बच्चों ने मजदूरी को बनाया साथी - वाराणसी खबर

कोरोना का दंश तो हर कोई झेल रहा है. बच्चे भी इससे बड़े स्तर पर प्रभावित हुए हैं. जिन हाथों में किताबें हुआ करती थीं, आज वो मजदूरी करने को मजबूर हैं. कोरोना महामारी के कारण बच्चों की जिंदगियां कितनी प्रभावित हुई हैं, वर्तमान में उनकी क्या स्थिति है, इसको लेकर ईटीवी भारत की टीम ने बच्चों के अभिभावकों व एक्सपर्ट से बातचीत की है. देखिए हमारी ये स्पेशल रिपोर्ट...

महामारी की मार
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Published : Jun 22, 2021, 4:13 PM IST

वाराणसी : कोरोना महामारी ने लाखों जिंदगी तबाह कर दी है. कइयों के सपने बिखर गए हैं. उनमें नन्हें-नौनिहाल भी शामिल हैं. जिनके हाथों में किताबें हुआ करती थीं, आज वो मजदूरी करने के लिए मजबूर हैं. इस महामारी काल में फीस जमा करने में असमर्थ लगभग 40 फीसदी बच्चे स्कूलों से ड्रॉप आउट होकर मजदूरी करने को विवश हो गए हैं. तो वहीं दूसरी तरफ कई स्कूल भी बंद होने के कगार पर हैं. हालांकि समाज में कुछ ऐसे भी मसीहा हैं, जो ड्रॉप आउट हुए बच्चों की मदद कर उनके हाथों में किताब पकड़ाने का जिम्मा उठाए हुए हैं.

आर्थिक तंगी ने मजदूर बनने को कर दिया विवश

बातचीत में बच्चों के परिजनों ने बताया कि हम आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं. महामारी के कारण काम धंधा नहीं चल रहा है. हम दो वक्त की रोटी का भी बन्दोबस्त नहीं कर पा रहे हैं. इस वजह से हमे मजबूरीवश बच्चों का स्कूल छुड़ाना पड़ा. उन्होंने बताया कि हमारा बेटा एक परचून की दुकान पर काम करता है. हमारे बच्चे के कारण ही इन दिनों हमारे घर का चूल्हा जल रहा है. उनका कहना था कि आर्थिक तंगी तो पहले भी थी, लेकिन महामारी ने समस्या और अधिक बढ़ा दी है.

महामारी की मार

महामारी ने बच्चों से छीना स्कूल व किताब का साथ
इस बाबात विद्यालय के प्रधानाचार्य रामचरण यादव ने बताया कि महामारी ने समाज में बहुत परिवर्तन ला दिया है. इसमें एक बड़ा परिवर्तन बच्चों के भविष्य में भी देखने को मिल रहा है. जो गरीब तबके के बच्चे थे उनके हाथों से किताबें छिन गईं. स्कूल से उनका साथ छूट गया है. कारण यह है कि परिजन फीस का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं. और बच्चे घर में खाली बैठे हुए हैं तो उन्हें लग रहा है कि वह उसका सदुपयोग कर दो पैसा कमा सकें, जिससे उनके घर का खर्च चल सके. उन्होंने बताया कि यही नहीं महामारी के कारण बहुत सारे स्कूल बंद होने की कगार पर भी हैं, क्योंकि काफी संख्या में बच्चे स्कूल से ड्रॉपआउट हो रहे हैं. कई स्कूलों की आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो गई है.
ड्राप ऑउट बच्चों के लिए वैभव बन रहे हैं मसीहा
एक ओर जहां महामारी के कारण बच्चे शिक्षा से दूर हो रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर वाराणसी के वैभव ऐसे बच्चों के लिए मसीहा के रूप में मौजूद हैं. जी हां, वैभव एक फाउंडेशन के जरिए ड्रॉप आउट हुए बच्चों को पढ़ाते हैं और उन्हें सामान्य जीवन की ओर ले जाने का प्रयास कर रहे हैं. वैभव बताते हैं कि वह बीते कई सालों से इस काम में लगे हुए हैं और उनके इस कारवा में 1000 से ज्यादा बच्चे शामिल हैं. उन्होंने बताया कि वह बच्चों को पढ़ाते हैं, इसके साथ ही उनका एडमिशन स्कूल में भी कराते हैं, जिससे कि उनका साथ पढ़ाई से ना छूटे. उन्होंने बताया कि भविष्य में भी वह बच्चों के लिए इसी प्रकार से मदद करना चाहते हैं, जिससे समाज का हर बच्चा पढ़ सके और अपने सपने को पूरा कर सकें.

वाराणसी : कोरोना महामारी ने लाखों जिंदगी तबाह कर दी है. कइयों के सपने बिखर गए हैं. उनमें नन्हें-नौनिहाल भी शामिल हैं. जिनके हाथों में किताबें हुआ करती थीं, आज वो मजदूरी करने के लिए मजबूर हैं. इस महामारी काल में फीस जमा करने में असमर्थ लगभग 40 फीसदी बच्चे स्कूलों से ड्रॉप आउट होकर मजदूरी करने को विवश हो गए हैं. तो वहीं दूसरी तरफ कई स्कूल भी बंद होने के कगार पर हैं. हालांकि समाज में कुछ ऐसे भी मसीहा हैं, जो ड्रॉप आउट हुए बच्चों की मदद कर उनके हाथों में किताब पकड़ाने का जिम्मा उठाए हुए हैं.

आर्थिक तंगी ने मजदूर बनने को कर दिया विवश

बातचीत में बच्चों के परिजनों ने बताया कि हम आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं. महामारी के कारण काम धंधा नहीं चल रहा है. हम दो वक्त की रोटी का भी बन्दोबस्त नहीं कर पा रहे हैं. इस वजह से हमे मजबूरीवश बच्चों का स्कूल छुड़ाना पड़ा. उन्होंने बताया कि हमारा बेटा एक परचून की दुकान पर काम करता है. हमारे बच्चे के कारण ही इन दिनों हमारे घर का चूल्हा जल रहा है. उनका कहना था कि आर्थिक तंगी तो पहले भी थी, लेकिन महामारी ने समस्या और अधिक बढ़ा दी है.

महामारी की मार

महामारी ने बच्चों से छीना स्कूल व किताब का साथ
इस बाबात विद्यालय के प्रधानाचार्य रामचरण यादव ने बताया कि महामारी ने समाज में बहुत परिवर्तन ला दिया है. इसमें एक बड़ा परिवर्तन बच्चों के भविष्य में भी देखने को मिल रहा है. जो गरीब तबके के बच्चे थे उनके हाथों से किताबें छिन गईं. स्कूल से उनका साथ छूट गया है. कारण यह है कि परिजन फीस का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं. और बच्चे घर में खाली बैठे हुए हैं तो उन्हें लग रहा है कि वह उसका सदुपयोग कर दो पैसा कमा सकें, जिससे उनके घर का खर्च चल सके. उन्होंने बताया कि यही नहीं महामारी के कारण बहुत सारे स्कूल बंद होने की कगार पर भी हैं, क्योंकि काफी संख्या में बच्चे स्कूल से ड्रॉपआउट हो रहे हैं. कई स्कूलों की आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो गई है.
ड्राप ऑउट बच्चों के लिए वैभव बन रहे हैं मसीहा
एक ओर जहां महामारी के कारण बच्चे शिक्षा से दूर हो रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर वाराणसी के वैभव ऐसे बच्चों के लिए मसीहा के रूप में मौजूद हैं. जी हां, वैभव एक फाउंडेशन के जरिए ड्रॉप आउट हुए बच्चों को पढ़ाते हैं और उन्हें सामान्य जीवन की ओर ले जाने का प्रयास कर रहे हैं. वैभव बताते हैं कि वह बीते कई सालों से इस काम में लगे हुए हैं और उनके इस कारवा में 1000 से ज्यादा बच्चे शामिल हैं. उन्होंने बताया कि वह बच्चों को पढ़ाते हैं, इसके साथ ही उनका एडमिशन स्कूल में भी कराते हैं, जिससे कि उनका साथ पढ़ाई से ना छूटे. उन्होंने बताया कि भविष्य में भी वह बच्चों के लिए इसी प्रकार से मदद करना चाहते हैं, जिससे समाज का हर बच्चा पढ़ सके और अपने सपने को पूरा कर सकें.
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