वाराणसी : कोरोना महामारी ने लाखों जिंदगी तबाह कर दी है. कइयों के सपने बिखर गए हैं. उनमें नन्हें-नौनिहाल भी शामिल हैं. जिनके हाथों में किताबें हुआ करती थीं, आज वो मजदूरी करने के लिए मजबूर हैं. इस महामारी काल में फीस जमा करने में असमर्थ लगभग 40 फीसदी बच्चे स्कूलों से ड्रॉप आउट होकर मजदूरी करने को विवश हो गए हैं. तो वहीं दूसरी तरफ कई स्कूल भी बंद होने के कगार पर हैं. हालांकि समाज में कुछ ऐसे भी मसीहा हैं, जो ड्रॉप आउट हुए बच्चों की मदद कर उनके हाथों में किताब पकड़ाने का जिम्मा उठाए हुए हैं.
आर्थिक तंगी ने मजदूर बनने को कर दिया विवश
बातचीत में बच्चों के परिजनों ने बताया कि हम आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं. महामारी के कारण काम धंधा नहीं चल रहा है. हम दो वक्त की रोटी का भी बन्दोबस्त नहीं कर पा रहे हैं. इस वजह से हमे मजबूरीवश बच्चों का स्कूल छुड़ाना पड़ा. उन्होंने बताया कि हमारा बेटा एक परचून की दुकान पर काम करता है. हमारे बच्चे के कारण ही इन दिनों हमारे घर का चूल्हा जल रहा है. उनका कहना था कि आर्थिक तंगी तो पहले भी थी, लेकिन महामारी ने समस्या और अधिक बढ़ा दी है.
महामारी की मार: मजबूरी में किताबें भूल बच्चों ने मजदूरी को बनाया साथी - वाराणसी खबर
कोरोना का दंश तो हर कोई झेल रहा है. बच्चे भी इससे बड़े स्तर पर प्रभावित हुए हैं. जिन हाथों में किताबें हुआ करती थीं, आज वो मजदूरी करने को मजबूर हैं. कोरोना महामारी के कारण बच्चों की जिंदगियां कितनी प्रभावित हुई हैं, वर्तमान में उनकी क्या स्थिति है, इसको लेकर ईटीवी भारत की टीम ने बच्चों के अभिभावकों व एक्सपर्ट से बातचीत की है. देखिए हमारी ये स्पेशल रिपोर्ट...
वाराणसी : कोरोना महामारी ने लाखों जिंदगी तबाह कर दी है. कइयों के सपने बिखर गए हैं. उनमें नन्हें-नौनिहाल भी शामिल हैं. जिनके हाथों में किताबें हुआ करती थीं, आज वो मजदूरी करने के लिए मजबूर हैं. इस महामारी काल में फीस जमा करने में असमर्थ लगभग 40 फीसदी बच्चे स्कूलों से ड्रॉप आउट होकर मजदूरी करने को विवश हो गए हैं. तो वहीं दूसरी तरफ कई स्कूल भी बंद होने के कगार पर हैं. हालांकि समाज में कुछ ऐसे भी मसीहा हैं, जो ड्रॉप आउट हुए बच्चों की मदद कर उनके हाथों में किताब पकड़ाने का जिम्मा उठाए हुए हैं.
आर्थिक तंगी ने मजदूर बनने को कर दिया विवश
बातचीत में बच्चों के परिजनों ने बताया कि हम आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं. महामारी के कारण काम धंधा नहीं चल रहा है. हम दो वक्त की रोटी का भी बन्दोबस्त नहीं कर पा रहे हैं. इस वजह से हमे मजबूरीवश बच्चों का स्कूल छुड़ाना पड़ा. उन्होंने बताया कि हमारा बेटा एक परचून की दुकान पर काम करता है. हमारे बच्चे के कारण ही इन दिनों हमारे घर का चूल्हा जल रहा है. उनका कहना था कि आर्थिक तंगी तो पहले भी थी, लेकिन महामारी ने समस्या और अधिक बढ़ा दी है.