वाराणसी: मां शक्ति की आराधना का महापर्व नवरात्रि 2 अप्रैल से शुरू हो चुका है. हिंदू धर्म में चैत्र नवरात्रि का बहुत महत्व है. इन 9 दिनों में देवी के 9 रूपों का पूजन होता है. दूसरे दिन देवी के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की मान्यता है. धर्मनगरी में देवी ब्रह्मचारिणी का मंदिर पक्का महाल के दुर्गा घाट पर स्थित है. जहां मां की दर्शन-पूजन के लिए देर रात तक भक्तों की लंबी लाइन लगी रही.
2 अप्रैल से शुरू हुई चैत्र नवरात्रि 11 अप्रैल तक मनाई जाएगी. इस दौरान भक्तगण मां भगवती की पूरी श्रद्धा भाव से पूजा अर्चना करते हैं. हिंदू धर्म में चैत्र व शारदीय नवरात्रि का काफी महत्व है. ब्रह्म का अर्थ तप से है और चारणी का अर्थ आचरण करने वाली. तप का आचरण करने वाली देवी के रूप में देवी दुर्गा के द्वितीय स्वरूप का नाम ब्रह्मचारिणी पड़ने की मान्यता है. मान्यता है कि भगवती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए घोर तप किया था. देवी दुर्गा के तपस्विनी स्वरूप के दर्शन पूजन से भक्तों और उनके साधकों को अनंत शुभ फल प्राप्त होते हैं. कोरोना संक्रमण के 2 साल बाद दर्शन पूजन करने से भक्तों में जोश एवं उत्साह देखने को मिला.
दर्शन करने आई पूनम यादव ने बताया की हम लोग बचपन से ही मां के दर्शन पूजन के लिए यहां आ रहे हैं. मां का दर्शन नवरात्रि के दूसरे दिन करने का विधान है. पूनम ने आगे बताया की यहां पूजन करने से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं.
ब्रह्मचारिणी मंदिर के महंत राजेश्वर ने बताया कि नवरात्र के दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी देवी के दर्शन पूजन करने की मान्यता है. मां के दर्शन करने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं. काशी में स्थापित नवदुर्गा स्वयंभू है जैसे कि भगवान भोलेनाथ के 12 ज्योतिर्लिंग स्वयंभू है. आगे राजेश्वर ने बताया भगवान ब्रह्मा के काफी प्रयत्न के बावजूद सृष्टि का निर्माण नहीं हो पा रहा था. इसके बाद ब्रह्मा जी ने भगवान भोले की आराधना की भगवान भोले ने कहा कि बिना शक्ति के स्थिति का निर्माण नहीं किया जा सकता है. भगवान ब्रह्मा ने शक्ति की आराधना की जिसके बाद ब्रह्मचारिणी देवी की उत्पत्ति हुई. इसी कारण इनका नाम ब्रह्मचारिणी देवी पड़ा है.
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