वाराणसी: कार्तिक पूर्णिमा यानी देव दीपावली के पर्व पर काशी में आसमान से तारे जमीन पर उतर आते हैं. इस दृश्य को देखने और घाटों पर दीपदान करने के लिए बड़ी संख्या में देश-विदेश से सैलानी वाराणसी पहुंचते हैं. लेकिन इन सबके बीच कार्तिक पूर्णिमा से पहले की रात वाराणसी में विदेशी सैलानियों के लिए भी यादगार रही, क्योंकि बड़ी संख्या में बनारस पहुंचे बौद्ध धर्म के लोगों ने काशी के घाटों पर पहुंचकर दीपदान किया और विश्व शांति की कामना की.
बुद्ध ने दिया था अपना पहला उपदेश
वाराणसी के सारनाथ में भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था. इसी स्थान पर बनाए गए बौद्ध मंदिर में भगवान बुद्ध के दांत को भक्तों के दर्शनार्थ के लिए रखा जाता है. इसके लिए दूर-दूर से बौद्ध धर्म के लोग यहां आते हैं. कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही इस मंदिर का स्थापना दिवस मनाया जाता है. यही वजह है कि श्रीलंका, वियतनाम, म्यांमार समेत अन्य देशों से बड़ी संख्या में बौद्ध धर्म के लोग वाराणसी पहुंचते हैं. इस क्रम में कार्तिक पूर्णिमा से एक दिन पहले बौद्ध अनुयायियों ने घाटों पर दीपदान किया.
बौद्ध भिक्षुओं ने दीप दान कर विश्व शांति की कामना
दीपदान करने वाले बौद्ध भिक्षुओं का कहना था कि अपने धर्म के अनुरूप सारनाथ में दर्शन पूजन करने के लिए पहुंचे है और देव दीपावली की जानकारी होने पर वह बनारस के घाटों पर पहुंचे. जहां गीत संगीत के साथ तैयारियों को देखकर उनका मन खुश हुआ और उन्होंने भी दीप दानकर विश्व शांति की कामना की. गंगा घाटों पर बहुत विश्वास है दीपों की मदद से सत्य और अपने धर्म से जुड़े तमाम चिन्ह बनाए और तंत्र साधना कर अपनी मनोकामना भी मांगी.