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बीएचयू की रिसर्च में खुलासा, दोनों वैक्सीन लगवाने वाले संक्रमित होने पर भी सुरक्षित...

काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के चिकित्सा विज्ञान संस्थान की एक रिसर्च में यह सामने आया कि दोनों वैक्सीन लगवाने वाले संक्रमित होने पर भी ज्यादा सुरक्षित रहते हैं.

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बीएचयू रिसर्च पूर्ण रूप से वैक्सिनेटिड लोग संक्रमित होने पर भी रहते हैं सुरक्षित.
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Published : Jan 23, 2022, 10:13 PM IST

वाराणसीः काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के चिकित्सा विज्ञान संस्थान की एक रिसर्च में यह सामने आया कि दोनों वैक्सीन लगवाने वाले लोग फिर से कोरोना संक्रमित होने पर अन्य़ की तुलना में ज्यादा सुरक्षित रहते हैं.

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संस्थान के एक्स-रे विभाग के चिकित्सक प्रो. आशीष वर्मा एवं डॉ. ईशान कुमार के नेतृत्व में प्रो. रामचन्द्र शुक्ला, डॉ. प्रमोद कुमार सिंह और डॉ. रितु ओझा की टीम ने यह अध्ययन किया. यह शोध यूरोपीय रेडियोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित भी हुआ. इस पत्र का उच्च प्रभाव कारक 5.3 है.

जांचकर्ताओं ने SARS-CoV-2 से संक्रमित व्यक्तियों के उच्च रिजाल्यूशन कंम्यूटेड टोमोग्राफी स्कैन का विश्लेषण किया और लक्षण दिखाते हुए उन्हें तीन समूहों में विभाजित किया. पहले समूह में ऐसे लोग थे जिन्हें वैक्सीन नहीं लगी थी, दूसरे समूह में आंशिक वैक्सीन वाले और तीसरे समूह में दोनों वैक्सीन लगवाने वाले लोग शामिल हुए. इनके अस्थायी सीटी गंभीरता स्कोर का विश्लेषण किया गया.

ये भी पढ़ेंः चंद्रशेखर आजाद बोले-अखिलेश यादव मेरे बड़े भाई, उनके खिलाफ नहीं उतारूंगा प्रत्याशी...

जिन रोगियों को टीकाकरण की दोनों खुराकें मिली, उनमें आंशिक रूप से टीका लगाए गए रोगियों और गैर-टीकाकरण वाले रोगियों की तुलना में औसत सीटी स्कैन स्कोर काफी कम था. उनके फेफड़ों में रोग के लक्षण न के बराबर रहे. 60 वर्ष से कम उम्र में पूरी तरह से टीकाकरण वाले रोगियों में औसत सीटी स्कोर काफी कम था. 60 वर्ष से अधिक के रोगियों ने टीकाकरण और गैर-टीकाकरण समूहों के बीच महत्वपूर्ण रूप से भिन्न सीटी स्कोर नहीं दिखाया.

यह एक नमूने के आकार के साथ एक प्रारंभिक अवलोकन संकलन हैं जो केवल लेवल 3 स्तर के COVID-केयर सेन्टर में रिपोर्ट करने वाले रोगियों पर आधारित है. यह भारत में वैक्सीन की प्रभावकारिता और टीकाकरण कार्यक्रम के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है. इस कार्य में वास्तविक रोगियों से उनके नियमित उपचार के दौरान एकत्र की गई जानकारी शामिल हैं.

इन अध्ययन के दौरान व्यक्तियों पर न ही कोई बाहरी हस्तक्षेप किया गया और न ही उनके रक्त आदि का नमूनाकरण जुटाया गया. समूह ने इस बात का भी अत्यधिक ध्यान रखा कि रोगी संबंधी नैतिकता और गोपनीयता का उल्लंघन न हो. इस अध्ययन को इस संस्थान की आचार समिति द्वारा भी अनुमोदित किया गया था.

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वाराणसीः काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के चिकित्सा विज्ञान संस्थान की एक रिसर्च में यह सामने आया कि दोनों वैक्सीन लगवाने वाले लोग फिर से कोरोना संक्रमित होने पर अन्य़ की तुलना में ज्यादा सुरक्षित रहते हैं.

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संस्थान के एक्स-रे विभाग के चिकित्सक प्रो. आशीष वर्मा एवं डॉ. ईशान कुमार के नेतृत्व में प्रो. रामचन्द्र शुक्ला, डॉ. प्रमोद कुमार सिंह और डॉ. रितु ओझा की टीम ने यह अध्ययन किया. यह शोध यूरोपीय रेडियोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित भी हुआ. इस पत्र का उच्च प्रभाव कारक 5.3 है.

जांचकर्ताओं ने SARS-CoV-2 से संक्रमित व्यक्तियों के उच्च रिजाल्यूशन कंम्यूटेड टोमोग्राफी स्कैन का विश्लेषण किया और लक्षण दिखाते हुए उन्हें तीन समूहों में विभाजित किया. पहले समूह में ऐसे लोग थे जिन्हें वैक्सीन नहीं लगी थी, दूसरे समूह में आंशिक वैक्सीन वाले और तीसरे समूह में दोनों वैक्सीन लगवाने वाले लोग शामिल हुए. इनके अस्थायी सीटी गंभीरता स्कोर का विश्लेषण किया गया.

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जिन रोगियों को टीकाकरण की दोनों खुराकें मिली, उनमें आंशिक रूप से टीका लगाए गए रोगियों और गैर-टीकाकरण वाले रोगियों की तुलना में औसत सीटी स्कैन स्कोर काफी कम था. उनके फेफड़ों में रोग के लक्षण न के बराबर रहे. 60 वर्ष से कम उम्र में पूरी तरह से टीकाकरण वाले रोगियों में औसत सीटी स्कोर काफी कम था. 60 वर्ष से अधिक के रोगियों ने टीकाकरण और गैर-टीकाकरण समूहों के बीच महत्वपूर्ण रूप से भिन्न सीटी स्कोर नहीं दिखाया.

यह एक नमूने के आकार के साथ एक प्रारंभिक अवलोकन संकलन हैं जो केवल लेवल 3 स्तर के COVID-केयर सेन्टर में रिपोर्ट करने वाले रोगियों पर आधारित है. यह भारत में वैक्सीन की प्रभावकारिता और टीकाकरण कार्यक्रम के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है. इस कार्य में वास्तविक रोगियों से उनके नियमित उपचार के दौरान एकत्र की गई जानकारी शामिल हैं.

इन अध्ययन के दौरान व्यक्तियों पर न ही कोई बाहरी हस्तक्षेप किया गया और न ही उनके रक्त आदि का नमूनाकरण जुटाया गया. समूह ने इस बात का भी अत्यधिक ध्यान रखा कि रोगी संबंधी नैतिकता और गोपनीयता का उल्लंघन न हो. इस अध्ययन को इस संस्थान की आचार समिति द्वारा भी अनुमोदित किया गया था.

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