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बीएचयू के पास है ऐसा रेल जो पूरा कर सकता है प्रधानमंत्री का सपना

वाराणसी में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के इलेक्ट्रिक डिपार्टमेंट ने एक मोनो रेल का मॉडल तैयार किया है. इस मॉडल का प्रदर्शन कई बार दिल्ली में किया गया और इस मॉडल को गोल्ड मेडल भी उस जमाने में मिला था.

मोनो रेल का यह मॉडल 80 के दशक में ही बना लिया गया था.
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Published : Mar 31, 2019, 4:32 PM IST

वाराणसी : काशी हिंदू विश्वविद्यालय के विभिन्न डिपार्टमेंटों ने शोध के माध्यम से ऐसी-ऐसी चीजें दुनिया के सामने पेश की हैं, जिससे भारत का नाम पूरे विश्व में रोशन हुआ है. इसी बीच मैकेनिकल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट ने एक ऐसे मोनो रेल को बनाया है, जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का देश में बुलेट ट्रेन चलाए जाने का सपना साकार हो सकता है.

मोनो रेल का यह मॉडल 80 के दशक में ही बना लिया गया था.

बीएचयू ने इस मोनो रेल का इजाद तो 80 के दशक में कर लिया था. इसका प्रदर्शन कई बार दिल्ली में किया गया, जिसके चलते इस मॉडल को गोल्ड मेडल भी उस जमाने में मिला था. इस मोनो रेल को चलता देख आप गौरवान्वित महसूस करेंगे क्योंकि यह मोनो रेल बनाने का मुख्य उद्देश्य है कि जिस तरीके से अन्य शहर तरक्की की ओर बढ़ते हुए मेट्रो से जुड़ गए हैं, लेकिन भौगोलिक दृष्टिकोण से वाराणसी इस तरीके से बसा है कि यहां मेट्रो चलाना बेहद ही मुश्किल है.

दरअसल 2014 में जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार पूरे भारत में पूर्ण बहुमत के साथ बनी जिसका नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया जा रहा था. 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी में मेट्रो चलाने के लिए विभिन्न कंपनियों के माध्यम से सर्वे करवाया, लेकिन जिस भी कंपनी ने यह सर्वे किया अंत तक उसका सर्वे यही बताता था कि काशी के शहर में मेट्रो चलाना बेहद ही मुश्किल है क्योंकि काशी गलियों का शहर कहा जाता है.

वहीं 1977 में प्रोफेसर सोमनाथ महिंद्रा ने यूजीसी फंड से इस पूरे प्रोजेक्ट को बनाया था और इसका प्रदर्शन भी कई बार किया गया. ढेर सारी बधाइयां भी बीएचयू को इस मॉडल पर मिली थी. हालांकि, यह पूरा जो मॉडल है यह बुलेट ट्रेन टेक्नोलॉजी के ऊपर निर्भर है. प्रोफेसर आर के श्रीवास्तव का कहना है कि बुलेट ट्रेन टेक्नोलॉजी को लेकर यह मोनो रेल बनाई गई है. यह बेहद ही खास है. यह वहां पर चलने के लिए अनुकूल है, जहां पर रेलवे की सुविधा उपलब्ध है.

वाराणसी : काशी हिंदू विश्वविद्यालय के विभिन्न डिपार्टमेंटों ने शोध के माध्यम से ऐसी-ऐसी चीजें दुनिया के सामने पेश की हैं, जिससे भारत का नाम पूरे विश्व में रोशन हुआ है. इसी बीच मैकेनिकल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट ने एक ऐसे मोनो रेल को बनाया है, जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का देश में बुलेट ट्रेन चलाए जाने का सपना साकार हो सकता है.

मोनो रेल का यह मॉडल 80 के दशक में ही बना लिया गया था.

बीएचयू ने इस मोनो रेल का इजाद तो 80 के दशक में कर लिया था. इसका प्रदर्शन कई बार दिल्ली में किया गया, जिसके चलते इस मॉडल को गोल्ड मेडल भी उस जमाने में मिला था. इस मोनो रेल को चलता देख आप गौरवान्वित महसूस करेंगे क्योंकि यह मोनो रेल बनाने का मुख्य उद्देश्य है कि जिस तरीके से अन्य शहर तरक्की की ओर बढ़ते हुए मेट्रो से जुड़ गए हैं, लेकिन भौगोलिक दृष्टिकोण से वाराणसी इस तरीके से बसा है कि यहां मेट्रो चलाना बेहद ही मुश्किल है.

दरअसल 2014 में जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार पूरे भारत में पूर्ण बहुमत के साथ बनी जिसका नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया जा रहा था. 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी में मेट्रो चलाने के लिए विभिन्न कंपनियों के माध्यम से सर्वे करवाया, लेकिन जिस भी कंपनी ने यह सर्वे किया अंत तक उसका सर्वे यही बताता था कि काशी के शहर में मेट्रो चलाना बेहद ही मुश्किल है क्योंकि काशी गलियों का शहर कहा जाता है.

वहीं 1977 में प्रोफेसर सोमनाथ महिंद्रा ने यूजीसी फंड से इस पूरे प्रोजेक्ट को बनाया था और इसका प्रदर्शन भी कई बार किया गया. ढेर सारी बधाइयां भी बीएचयू को इस मॉडल पर मिली थी. हालांकि, यह पूरा जो मॉडल है यह बुलेट ट्रेन टेक्नोलॉजी के ऊपर निर्भर है. प्रोफेसर आर के श्रीवास्तव का कहना है कि बुलेट ट्रेन टेक्नोलॉजी को लेकर यह मोनो रेल बनाई गई है. यह बेहद ही खास है. यह वहां पर चलने के लिए अनुकूल है, जहां पर रेलवे की सुविधा उपलब्ध है.

Intro:एंकर: काशी हिंदू विश्वविद्यालय के विभिन्न डिपार्टमेंट ओने शोधु के माध्यम से ऐसी ऐसी चीजें दुनिया के सामने पेश की हैं जिससे भारत का नाम रोशन हुआ है इसी बीच बीजेपी के मैकेनिकल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के इलेक्ट्रिक डिपार्टमेंट ने एक ऐसे मोनो रेल को बनाया है जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का देश में बुलेट ट्रेन चलाए जाने का सपना साकार हो सकता है


Body:वीओ: बीएचयू ने इस मोनोरेल का इजाद तो 80 के दशक में कर लिया था और इसका प्रदर्शन कई बार दिल्ली में किया गया और इस मॉडल को गोल्ड मेडल भी उस जमाने में मिला था इस मोनोरेल को चलता देख आप गौरवान्वित महसूस करेंगे क्योंकि यह मोनोरेल बनाने का मुख्य उद्देश्य है कि जिस तरीके से अन्य शहर तरक्की की ओर बढ़ते हुए मेट्रो से जुड़ गए हैं लेकिन भौगोलिक दृष्टिकोण से वाराणसी इस तरीके से बसा है कि यहां मेट्रो चलाना बेहद ही मुश्किल है दरअसल 2014 में जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार पूरे भारत में पूर्ण बहुमत के साथ बनी जिसका नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया जा रहा था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी से चुनाव लड़ कर यह संदेश भेजने की कोशिश की कि अति प्राचीन काशी भी अपने नए स्वरूप में आ सके और जिस तरीके से अन्य राज्य तेजी से प्रगति की ओर बढ़ रहे हैं काशी भी इन प्रगति की दौड़ में शुमार हो जाए 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी में मेट्रो चलाने के लिए विभिन्न कंपनियों के माध्यम से सर्वे करवाया जो कंपनियां देशी और विदेशी दोनों प्रकार की थी लेकिन जिस भी कंपनी ने यह सर्वे किया अंत तक उसका सर्वे यही बताता था कि काशी के शहर में मेट्रो चलाना बेहद ही मुश्किल है क्योंकि काशी गलियों का शहर कहा जाता है


Conclusion:वीओ: वही आपको बताते चलें कि 1977 में प्रोफेसर सोमनाथ महिंद्रा ने यूजीसी फंड से इस पूरे प्रोजेक्ट को बनाया था और इसका प्रदर्शन भी कई बार किया गया और ढेर सारी बधाइयां भी बीएचयू को इस मॉडल पर मिली थी हालांकि यह पूरा जो मॉडल है और मैं मोनोरेल है यह बुलेट ट्रेन टेक्नोलॉजी के ऊपर निर्भर है और प्रोफेसर आरके श्रीवास्तव का कहना है कि जिस तरीके से बुलेट ट्रेन टेक्नोलॉजी को ले करके यह मोनोरेल बनाई गई है यह बेहद ही खास है और यह वहां पर चलने के लिए अनुकूल है जहां पर रेलवे की सुविधा उपलब्ध है
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