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वाराणसी: 476 साल पुराने ऐतिहासिक भरत मिलाप को देखने के लिए उमड़ी लाखों की भीड़ - वाराणसी ताजा खबर

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में विश्व प्रसिद्ध नाटी इमली के भरत मिलाप का आयोजन किया गया. इस आयोजन को देखने के लिए लाखों की भीड़ की मौजूद रही. 476 साल पहले शुरू हुए इस भरत मिलाप का आयोजन आज भी उसी तरह हो रहा है. मान्यता है कि तुलसीदास के मित्र मेघा भगत ने इस भरत मिलाप की शुरुआत की थी.

ऐतिहासिक भरत मिलाप को देखने के लिए उमड़ी लाखों की भीड़.
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Published : Oct 10, 2019, 3:21 AM IST

वाराणसी: काशी की विश्व प्रसिद्ध नाटी इमली के भरत मिलाप का आयोजन बुधवार को संपन्न हुआ. इस अद्भुत क्षण को देखने के लिए लाखों श्रद्धालु भी पहुंचे. चारों भाइयों का मिलन देख पूरी जनता भगवान राम और बाबा भोलेनाथ के जयकारे लगाने लगी. लीला के लिए क्या छत, गली, सड़क हर ओर भक्त अलौकिक छठा को नयनों में बसाने के लिए आतुर दिखे. लीला के अवसर पर राज परिवार के अनंत नारायण सिंह भी मौजूद रहे.

ऐतिहासिक भरत मिलाप को देखने के लिए उमड़ी लाखों की भीड़.

नाटी इमली का ऐतिहासिक भरत मिलाप
वैसे तो राम लीला देशभर में होती है, लेकिन काशी में चित्रकूट रामलीला समिति की तरफ से कराई जाने वाली रामलीला में अंतिम लीला जिसे भरत मिलाप कहा जाता है. वह बड़े ही भव्य तरीके से संपन्न होता है. क्योंकि इस लीला को बनारस के लक्खा मेले यानी लाखों की भीड़ की मौजूदगी में संपन्न होने वाले मेले के रूप में जाना जाता है. नाटी इमली का ऐतिहासिक भरत मिलाप जहां पर इस आयोजन को किया जाता है. वहां घरों की छतों से लेकर गलियों चौराहों तक सिर्फ भीड़ ही भीड़ नजर आती है.

तुलसीदास के मित्र मेघा भगत ने इस भरत मिलाप की थी शुरुआत
मान्यता है कि तुलसीदास के मित्र मेघा भगत ने इस भरत मिलाप की शुरुआत तुलसीदास के ही प्रेरणा से की और इसी स्थान पर उन्होंने अपना शरीर भी त्यागा. 476 साल पहले शुरू हुए इस भरत मिलाप का आयोजन आज भी उसी तरह हो रहा है. कहते हैं गोधूलि बेला यानी शाम 4:55 पर जब प्रभु राम, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न, आपस में गले मिलते हैं. उस वक्त स्वयं श्री रामचंद्र अपने चारों भाइयों के साथ इस स्थान पर मौजूद रहते हैं. सूर्य के अस्त होने और चंद्रमा के उदय होने का यह वक्त भगवान की मौजूदगी का एहसास कराता है. लोग हर-हर महादेव और जय श्रीराम के जयघोष के साथ प्रभु राम का दर्शन कर अपने आप को धन्य मानते हैं.

इस आयोजन में आज भी परंपराओं का होता है निर्वहन
इस पूरे आयोजन में आज भी परंपराओं का निर्वहन बखूबी हो रहा है. एक तरफ जहां इस भारी-भरकम रथ को उठाने का काम सिर्फ यादव समाज के लोग करते हैं. वही सदियों पुरानी परंपरा का निर्वहन करते हुए राजा बनारस भी इस आयोजन में हाथी पर सवार होकर पहुंचते हैं. कुंवर अनंत नारायण सिंह आज भी हाथी पर सवार होकर इस आयोजन में शिरकत करने पहुंचे. अपने राजा का स्वागत लोगों ने हर-हर महादेव के जयघोष के साथ किया. साथ ही में प्रभु श्री राम, भरत, शत्रुघ्न और लक्ष्मण का मिलाप होने के बाद उनका दर्शन कर खुद को भाग्यशाली माना.

वाराणसी: काशी की विश्व प्रसिद्ध नाटी इमली के भरत मिलाप का आयोजन बुधवार को संपन्न हुआ. इस अद्भुत क्षण को देखने के लिए लाखों श्रद्धालु भी पहुंचे. चारों भाइयों का मिलन देख पूरी जनता भगवान राम और बाबा भोलेनाथ के जयकारे लगाने लगी. लीला के लिए क्या छत, गली, सड़क हर ओर भक्त अलौकिक छठा को नयनों में बसाने के लिए आतुर दिखे. लीला के अवसर पर राज परिवार के अनंत नारायण सिंह भी मौजूद रहे.

ऐतिहासिक भरत मिलाप को देखने के लिए उमड़ी लाखों की भीड़.

नाटी इमली का ऐतिहासिक भरत मिलाप
वैसे तो राम लीला देशभर में होती है, लेकिन काशी में चित्रकूट रामलीला समिति की तरफ से कराई जाने वाली रामलीला में अंतिम लीला जिसे भरत मिलाप कहा जाता है. वह बड़े ही भव्य तरीके से संपन्न होता है. क्योंकि इस लीला को बनारस के लक्खा मेले यानी लाखों की भीड़ की मौजूदगी में संपन्न होने वाले मेले के रूप में जाना जाता है. नाटी इमली का ऐतिहासिक भरत मिलाप जहां पर इस आयोजन को किया जाता है. वहां घरों की छतों से लेकर गलियों चौराहों तक सिर्फ भीड़ ही भीड़ नजर आती है.

तुलसीदास के मित्र मेघा भगत ने इस भरत मिलाप की थी शुरुआत
मान्यता है कि तुलसीदास के मित्र मेघा भगत ने इस भरत मिलाप की शुरुआत तुलसीदास के ही प्रेरणा से की और इसी स्थान पर उन्होंने अपना शरीर भी त्यागा. 476 साल पहले शुरू हुए इस भरत मिलाप का आयोजन आज भी उसी तरह हो रहा है. कहते हैं गोधूलि बेला यानी शाम 4:55 पर जब प्रभु राम, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न, आपस में गले मिलते हैं. उस वक्त स्वयं श्री रामचंद्र अपने चारों भाइयों के साथ इस स्थान पर मौजूद रहते हैं. सूर्य के अस्त होने और चंद्रमा के उदय होने का यह वक्त भगवान की मौजूदगी का एहसास कराता है. लोग हर-हर महादेव और जय श्रीराम के जयघोष के साथ प्रभु राम का दर्शन कर अपने आप को धन्य मानते हैं.

इस आयोजन में आज भी परंपराओं का होता है निर्वहन
इस पूरे आयोजन में आज भी परंपराओं का निर्वहन बखूबी हो रहा है. एक तरफ जहां इस भारी-भरकम रथ को उठाने का काम सिर्फ यादव समाज के लोग करते हैं. वही सदियों पुरानी परंपरा का निर्वहन करते हुए राजा बनारस भी इस आयोजन में हाथी पर सवार होकर पहुंचते हैं. कुंवर अनंत नारायण सिंह आज भी हाथी पर सवार होकर इस आयोजन में शिरकत करने पहुंचे. अपने राजा का स्वागत लोगों ने हर-हर महादेव के जयघोष के साथ किया. साथ ही में प्रभु श्री राम, भरत, शत्रुघ्न और लक्ष्मण का मिलाप होने के बाद उनका दर्शन कर खुद को भाग्यशाली माना.

Intro:स्पेशल:

वाराणसी: सात वार और नौ त्यौहार का शहर बनारस जिस बनारस के रस को चखने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग पहुंचते हैं. इस शहर की खासियत यह है कि यहां कोई दिखावा नहीं सब सच्चाई है यहां होने वाला छोटा-छोटा आयोजन भी लोगों को इस कदर भाता है कि लोग अपना कामकाज छोड़ इन छोटे-छोटे आयोजनों में शरीक होने पहुंच जाते हैं. मान्यता यह भी है कि खुद भगवान भी कुछ ऐसे आयोजनों में शिरकत करते हैं जिनका संबंध सैकड़ों सालों पहले का है. ऐसा ही एक आयोजन आज शहर बनारस में था यह आयोजन है ना टीमली मैदान में होने वाला विश्व प्रसिद्ध भरत मिलाप चित्रकूट रामलीला समिति की तरफ से आयोजित होने वाले इस भरत मिलाप के यह 476 वां साल था जिसे देखने के लिए उमड़ी लाखों की भीड़.


Body:वीओ-01 वैसे तो नाम लीला देशभर में होती है लेकिन काशी में चित्रकूट रामलीला समिति की तरफ से कराई जाने वाली रामलीला में अंतिम लीला जिसे भरत मिलाप कहा जाता है वह बड़े ही भव्य तरीके से संपन्न होती है क्योंकि इस लीला को बनारस के लक्खा मेले यानी लाखों की भीड़ की मौजूदगी में संपन्न होने वाले मेले के रूप में जाना जाता है ना टीमली का ऐतिहासिक भरत मिलाप जहां पर इस आयोजन को किया जाता है वहां घरों की छतों से लेकर गलियों चौराहों तक सिर्फ भीड़ ही भीड़ नजर आती है और आज भी नजारा कुछ ऐसा था मान्यता है कि तुलसीदास के मित्र मेघा भगत ने इस भरत मिलाप की शुरुआत तुलसीदास के ही प्रेरणा से की और इसी स्थान पर उन्होंने अपना शरीर भी त्यागा. 476 साल पहले शुरू हुए इस भरत मिलाप का आयोजन आज भी उसी तरह हो रहा है कहते हैं गोधूलि बेला यानी शाम 4:55 पर जब प्रभु राम भरत लक्ष्मण शत्रुघ्न आपस में गले मिलते हैं. उस वक्त स्वयं श्री रामचंद्र अपने चारों भाइयों के साथ इस स्थान पर मौजूद रहते हैं सूर्य के अस्त होने और चंद्रमा के उदय होने का यह वक्त भगवान की मौजूदगी का एहसास कराता है और लोग हर हर महादेव और जय श्रीराम के जयघोष के साथ प्रभु राम का दर्शन कर अपने आप को धन्य मानते हैं.


Conclusion:वीओ-02 इस पूरे आयोजन में आज भी परंपराओं का निर्वहन यह बखूबी हो रहा है. एक तरफ जहां इस भारी-भरकम रथ को उठाने का काम सिर्फ यादव समाज के लोग करते हैं. वही सदियों पुरानी परंपरा का निर्वहन करते हुए राजा बनारस भी इस आयोजन में हाथी पर सवार होकर पहुंचते हैं कुंवर अनंत नारायण सिंह आज भी हाथी पर सवार होकर इस आयोजन में शिरकत करने पहुंचे और प्रभु राम को अर्पित की सोने की गिन्नी और प्रसाद स्वरूप माला और पेड़ा पाकर उन्होंने अपने आप को धन्य माना. अपने राजा का स्वागत लोगों ने हर-हर महादेव के जयघोष के 7 को किया ही साथ ही में प्रभु श्री राम भरत शत्रुघ्न और लक्ष्मण का मिला होने के बाद उनका दर्शन कर खुद को भाग्यशाली माना.

बाईट- खुशबू गुप्ता, दर्शनार्थी
बाईट- गोविंद यादव, रथ उठाने वाले
बाईट- मुकुंद उपाध्याय, लीला व्यवस्थापक

गोपाल मिश्र

9839809074
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