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वाराणसी: विलुप्त होती जा रही गुलाबी मीनाकारी कला - गुलाबी मीनाकारी कला

यूपी के वाराणसी में गुलाबी मीनाकारी नाम की कला विलुप्त होती जा रही है. चांदी के गहनों और कलाकृतियां समेत सजावटी सामानों पर होने वाली इस बेहतरीन कलाकारी को कुछ परिवारों ने बचाकर रखा है, लेकिन कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन के बाद इस कलाकारी को बचाकर रखने वाले परिवारों की कमर टूट चुकी है. देखना यह होगा कि बनारस की शान और बनारस की आन कही जाने वाली गुलाबी मीनाकारी का वजूद कब तक कायम रह पाएगा.

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गुलाबी मीनाकारी कला.
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Published : Oct 16, 2020, 10:37 PM IST

वाराणसी: बनारस की पहचान तरह-तरह की चीजों से है. यहां का पान, साड़ियां, यहां की गलियां, खान-पान और यहां के घाट लोगों का मन मोह लेते हैं. बनारस गुलाबी मीनाकारी के नाम से जाना जाता है. चांदी के गहनों और कलाकृतियां समेत सजावटी सामानों पर होने वाली इस बेहतरीन कलाकारी को कुछ परिवारों ने बचाकर रखा है, लेकिन कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन के बाद इस कलाकारी को बचाकर रखने वाले परिवारों की कमर टूट चुकी है. सरकार ने भी हाथ खींच रखे हैं. अब सवाल यह उठता है कि बनारस की शान और बनारस की आन कही जाने वाली गुलाबी मीनाकारी का वजूद कब तक कायम रह पाएगा.

लॉकडाउन की वजह से विलुप्त हो रही गुलाबी मीनाकारी कला.

50 परिवार के 250 लोगों के सामने संकट
कुंज बिहारी गुलाबी मीनाकारी के आर्टिजन हैं. वे इस क्षेत्र में राष्ट्रपति सम्मान से नवाजे जा चुके हैं, लेकिन जिस सरकार ने उन्हें ये सम्मान दिया उसी सरकार की उपेक्षा अब उन पर भारी पड़ रही है. ये अकेले कुंज बिहारी की बात नहीं है. 50 परिवारों के 250 आर्टिजन जो गुलाबी मीनाकारी से जुड़े हैं, वे इस वक़्त भुखमरी के कगार पर हैं. काशी में चार सौ साल की परंपरा वाली मीनाकारी अब बचेगी या नहीं इसमें भी संशय है. इस काम को करने वालों का सरकारी उपेक्षा की वजह से मोह भंग हो रहा है. कभी पीएम मोदी ने बनारस की गुलाबी मीनाकारी को आसमान की बुलंदियों तक ले जाने का आश्वासन दिया था, लेकिन आज यह परंपरा अपनी जमीन खोजते नजर आ रही है.

नहीं मिली कोई सरकारी मदद
सबसे बड़ी बात यह है कि गुलाबी मीनाकारी से जुड़े कारीगरों के सामने और किसी काम को करने का विकल्प नहीं है. बचपन से इसी काम को सीखने के बाद उम्मीद थी कि स्थितियां बदल जाएंगी. अपने पारंपरिक पैतृक काम को बचाकर रखने के साथ इस कलाकारी को जीवंत रखने की जुगत में आज कारीगरों को दोहराए पर लाकर खड़ा कर दिया है. हालात यह हैं कि लॉकडाउन के बाद से आर्डर मिला है, लेकिन पुराने पैसे का भुगतान नहीं हुआ है. इस वजह से आर्थिक संकट गहराता जा रहा है. बच्चों के स्कूल की फीस भरने से लेकर खुद की दवाई करने तक की स्थिति नहीं है. कलाकारों को न आयुष्मान कार्ड मिले हैं, न ही कोई सरकारी मदद, जिसकी वजह से अब इनकी उम्मीद टूट रही है.

क्या है गुलाबी मीनाकारी
बनारस के पक्का महाल इलाके में मुगलों के दौर में करीब चार सौ साल पहले इसकी शुरुआत हुई थी. पर्शिया से आई इस कला को सवाई राजा जय सिंह ने बहुत प्रोत्साहित किया था. राजस्थान के कुछ इलाकों में भी इस कला को शुरू कराया गया. मीनाकारी से सोने-चांदी पर आकर्षक डिजाइन द्वारा आभूषण बनाए जाते थे. बनारस के कारीगरों ने विशेष तकनीक द्वारा गुलाबी रंग ईजाद किया. इस वजह से नाम गुलाबी मीनाकारी पड़ा, लेकिन आज यह सिर्फ बनारस के गायघाट इलाके के 50 परिवारों के करीब 250 कारीगरों तक सीमित है.

2014 में नरेंद्र मोदी के बनारस से सांसद बनने के बाद लगा कि स्थिति बदलेगी. इस कला को ऊंचाई दिलाने वाले कारीगर कुंज बिहारी को 2015 में राष्ट्रपति सम्मान मिलने के बाद तो लगा कि अब इस कला और इससे जुड़े अर्टिजंस के दिन बहुरने वाले हैं, लेकिन धीरे-धीरे जब छह साल बीत गए और हालात लगातार खराब होते गए.

जिला उद्योग केंद्र के जीएम वीरेंद्र कुमार ने कहा कि इस आर्ट को जीआई टैग मिला है. कई मंत्रालयों से इस विधा को जोड़ा गया है. निर्यात बढ़ाने पर हमारा जोर है. समय-समय पर वर्कशॉप कराते रहते हैं. प्रधानमंत्री कार्यालय इसकी निगरानी करता है. इनकी समस्याओं को दूर करने का प्रयास किया जाता है.

वाराणसी: बनारस की पहचान तरह-तरह की चीजों से है. यहां का पान, साड़ियां, यहां की गलियां, खान-पान और यहां के घाट लोगों का मन मोह लेते हैं. बनारस गुलाबी मीनाकारी के नाम से जाना जाता है. चांदी के गहनों और कलाकृतियां समेत सजावटी सामानों पर होने वाली इस बेहतरीन कलाकारी को कुछ परिवारों ने बचाकर रखा है, लेकिन कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन के बाद इस कलाकारी को बचाकर रखने वाले परिवारों की कमर टूट चुकी है. सरकार ने भी हाथ खींच रखे हैं. अब सवाल यह उठता है कि बनारस की शान और बनारस की आन कही जाने वाली गुलाबी मीनाकारी का वजूद कब तक कायम रह पाएगा.

लॉकडाउन की वजह से विलुप्त हो रही गुलाबी मीनाकारी कला.

50 परिवार के 250 लोगों के सामने संकट
कुंज बिहारी गुलाबी मीनाकारी के आर्टिजन हैं. वे इस क्षेत्र में राष्ट्रपति सम्मान से नवाजे जा चुके हैं, लेकिन जिस सरकार ने उन्हें ये सम्मान दिया उसी सरकार की उपेक्षा अब उन पर भारी पड़ रही है. ये अकेले कुंज बिहारी की बात नहीं है. 50 परिवारों के 250 आर्टिजन जो गुलाबी मीनाकारी से जुड़े हैं, वे इस वक़्त भुखमरी के कगार पर हैं. काशी में चार सौ साल की परंपरा वाली मीनाकारी अब बचेगी या नहीं इसमें भी संशय है. इस काम को करने वालों का सरकारी उपेक्षा की वजह से मोह भंग हो रहा है. कभी पीएम मोदी ने बनारस की गुलाबी मीनाकारी को आसमान की बुलंदियों तक ले जाने का आश्वासन दिया था, लेकिन आज यह परंपरा अपनी जमीन खोजते नजर आ रही है.

नहीं मिली कोई सरकारी मदद
सबसे बड़ी बात यह है कि गुलाबी मीनाकारी से जुड़े कारीगरों के सामने और किसी काम को करने का विकल्प नहीं है. बचपन से इसी काम को सीखने के बाद उम्मीद थी कि स्थितियां बदल जाएंगी. अपने पारंपरिक पैतृक काम को बचाकर रखने के साथ इस कलाकारी को जीवंत रखने की जुगत में आज कारीगरों को दोहराए पर लाकर खड़ा कर दिया है. हालात यह हैं कि लॉकडाउन के बाद से आर्डर मिला है, लेकिन पुराने पैसे का भुगतान नहीं हुआ है. इस वजह से आर्थिक संकट गहराता जा रहा है. बच्चों के स्कूल की फीस भरने से लेकर खुद की दवाई करने तक की स्थिति नहीं है. कलाकारों को न आयुष्मान कार्ड मिले हैं, न ही कोई सरकारी मदद, जिसकी वजह से अब इनकी उम्मीद टूट रही है.

क्या है गुलाबी मीनाकारी
बनारस के पक्का महाल इलाके में मुगलों के दौर में करीब चार सौ साल पहले इसकी शुरुआत हुई थी. पर्शिया से आई इस कला को सवाई राजा जय सिंह ने बहुत प्रोत्साहित किया था. राजस्थान के कुछ इलाकों में भी इस कला को शुरू कराया गया. मीनाकारी से सोने-चांदी पर आकर्षक डिजाइन द्वारा आभूषण बनाए जाते थे. बनारस के कारीगरों ने विशेष तकनीक द्वारा गुलाबी रंग ईजाद किया. इस वजह से नाम गुलाबी मीनाकारी पड़ा, लेकिन आज यह सिर्फ बनारस के गायघाट इलाके के 50 परिवारों के करीब 250 कारीगरों तक सीमित है.

2014 में नरेंद्र मोदी के बनारस से सांसद बनने के बाद लगा कि स्थिति बदलेगी. इस कला को ऊंचाई दिलाने वाले कारीगर कुंज बिहारी को 2015 में राष्ट्रपति सम्मान मिलने के बाद तो लगा कि अब इस कला और इससे जुड़े अर्टिजंस के दिन बहुरने वाले हैं, लेकिन धीरे-धीरे जब छह साल बीत गए और हालात लगातार खराब होते गए.

जिला उद्योग केंद्र के जीएम वीरेंद्र कुमार ने कहा कि इस आर्ट को जीआई टैग मिला है. कई मंत्रालयों से इस विधा को जोड़ा गया है. निर्यात बढ़ाने पर हमारा जोर है. समय-समय पर वर्कशॉप कराते रहते हैं. प्रधानमंत्री कार्यालय इसकी निगरानी करता है. इनकी समस्याओं को दूर करने का प्रयास किया जाता है.

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