वाराणसी: देश में कुम्हारों के लिए कई सरकारी योजनाएं शुरू की गई, लेकिन उनकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है. कुछ ऐसा ही हाल पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में है. वाराणसी के फुलवरिया को कुम्हारों का गांव कहा जाता है. यहां के लोग मिट्टी के दीए, खिलौने और बर्तन बनाते हैं, जिससे उनके घरों में चूल्हा जल सके.
- काशी के फुलवरिया को कुम्हारों का गांव कहा जाता है.
- यहां के लोग मिट्टी के दीए, बर्तन इत्यादि बनाते हैं.
- सरकार ने इन कुम्हारों का जीवन बेहतर करने के दावे के साथ बिजली के चाक दिए थे, जिससे इनके व्यापार में बढ़ोतरी हो सके.
- वहीं इन बिजली के चाकों से घरों में बिजली का बिल इतना आने लगा है कि कुम्हारों के लिए अब राशन पानी की व्यवस्था करना भी मुश्किल हो गया है.
ईटीवी भारत ने कुम्हारों से की बातचीत-
कुम्हारों का कहना है कि बुनकरों को जब बिजली का बिल माफ किया जा सकता है तो उनकी तरफ ध्यान क्यों नहीं दिया जा रहा. कुम्हारों का कहना है कि बिजली का चाक तो मिल गया पर उसके इस्तेमाल करने की हिम्मत नहीं होती. इसलिए आज भी उसी पुराने तरीके से काम किया जा रहा है जिस तरह से सालों से होता आया है.
केंद्र सरकार ने व्यापार में बढ़ोतरी के लिए कुम्हारों को दी थी इलेक्ट्रॉनिक चॉक
केंद्र सरकार ने कुम्हारों को मॉडर्न चाक दी थी. सरकार ने यह दावा किया था इलेक्ट्रॉनिक चाक से आधी मेहनत में पहले से दुगने मिट्टी के दीपक और बर्तन तैयार हो जाएंगे. सरकार का कहना है कि जहां पहले 400 मिट्टी के बर्तन और दीए कुम्हार हाथ से बनाते थे. वहीं इलेक्ट्रॉनिक चौक से अब एक बार में 1200 दीपक बन सकेंगे. कुम्हारों का कहना है कि पहले बिजली बिल 1000 या 1200 आता था. वहीं अब 3000 से 4000 रुपये आ रहा है. हालात यह हो गये है कि अब तो खाने-पीने की और दिक्कत हो रही है.