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जो दूसरों के घरों को रौशन करते हैं, उनके घरों की रोशनी का कौन रखेगा खयाल ? - उत्तर प्रदेश

वाराणसी के फुलवरिया को कुम्हारों का गांव कहा जाता है. केंद्र सरकार ने कुम्हारों के व्यापार में बढ़ोतरी करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक चाक दी थी. वहीं किसानों का कहना है कि बुनकरों की तरह उनका भी बिजली बिल माफ किया जाए. कुम्हारों का कहना है कि बिजली बिल देने की वजह से खाने-पीने को दिक्कत हो रही है.

ईटीवी भारत ने कुम्हारों से की बीतचीत.
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Published : May 18, 2019, 1:18 PM IST

वाराणसी: देश में कुम्हारों के लिए कई सरकारी योजनाएं शुरू की गई, लेकिन उनकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है. कुछ ऐसा ही हाल पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में है. वाराणसी के फुलवरिया को कुम्हारों का गांव कहा जाता है. यहां के लोग मिट्टी के दीए, खिलौने और बर्तन बनाते हैं, जिससे उनके घरों में चूल्हा जल सके.

ईटीवी भारत ने कुम्हारों से की बीतचीत.
  • काशी के फुलवरिया को कुम्हारों का गांव कहा जाता है.
  • यहां के लोग मिट्टी के दीए, बर्तन इत्यादि बनाते हैं.
  • सरकार ने इन कुम्हारों का जीवन बेहतर करने के दावे के साथ बिजली के चाक दिए थे, जिससे इनके व्यापार में बढ़ोतरी हो सके.
  • वहीं इन बिजली के चाकों से घरों में बिजली का बिल इतना आने लगा है कि कुम्हारों के लिए अब राशन पानी की व्यवस्था करना भी मुश्किल हो गया है.

ईटीवी भारत ने कुम्हारों से की बातचीत-
कुम्हारों का कहना है कि बुनकरों को जब बिजली का बिल माफ किया जा सकता है तो उनकी तरफ ध्यान क्यों नहीं दिया जा रहा. कुम्हारों का कहना है कि बिजली का चाक तो मिल गया पर उसके इस्तेमाल करने की हिम्मत नहीं होती. इसलिए आज भी उसी पुराने तरीके से काम किया जा रहा है जिस तरह से सालों से होता आया है.

केंद्र सरकार ने व्यापार में बढ़ोतरी के लिए कुम्हारों को दी थी इलेक्ट्रॉनिक चॉक
केंद्र सरकार ने कुम्हारों को मॉडर्न चाक दी थी. सरकार ने यह दावा किया था इलेक्ट्रॉनिक चाक से आधी मेहनत में पहले से दुगने मिट्टी के दीपक और बर्तन तैयार हो जाएंगे. सरकार का कहना है कि जहां पहले 400 मिट्टी के बर्तन और दीए कुम्हार हाथ से बनाते थे. वहीं इलेक्ट्रॉनिक चौक से अब एक बार में 1200 दीपक बन सकेंगे. कुम्हारों का कहना है कि पहले बिजली बिल 1000 या 1200 आता था. वहीं अब 3000 से 4000 रुपये आ रहा है. हालात यह हो गये है कि अब तो खाने-पीने की और दिक्कत हो रही है.

वाराणसी: देश में कुम्हारों के लिए कई सरकारी योजनाएं शुरू की गई, लेकिन उनकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है. कुछ ऐसा ही हाल पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में है. वाराणसी के फुलवरिया को कुम्हारों का गांव कहा जाता है. यहां के लोग मिट्टी के दीए, खिलौने और बर्तन बनाते हैं, जिससे उनके घरों में चूल्हा जल सके.

ईटीवी भारत ने कुम्हारों से की बीतचीत.
  • काशी के फुलवरिया को कुम्हारों का गांव कहा जाता है.
  • यहां के लोग मिट्टी के दीए, बर्तन इत्यादि बनाते हैं.
  • सरकार ने इन कुम्हारों का जीवन बेहतर करने के दावे के साथ बिजली के चाक दिए थे, जिससे इनके व्यापार में बढ़ोतरी हो सके.
  • वहीं इन बिजली के चाकों से घरों में बिजली का बिल इतना आने लगा है कि कुम्हारों के लिए अब राशन पानी की व्यवस्था करना भी मुश्किल हो गया है.

ईटीवी भारत ने कुम्हारों से की बातचीत-
कुम्हारों का कहना है कि बुनकरों को जब बिजली का बिल माफ किया जा सकता है तो उनकी तरफ ध्यान क्यों नहीं दिया जा रहा. कुम्हारों का कहना है कि बिजली का चाक तो मिल गया पर उसके इस्तेमाल करने की हिम्मत नहीं होती. इसलिए आज भी उसी पुराने तरीके से काम किया जा रहा है जिस तरह से सालों से होता आया है.

केंद्र सरकार ने व्यापार में बढ़ोतरी के लिए कुम्हारों को दी थी इलेक्ट्रॉनिक चॉक
केंद्र सरकार ने कुम्हारों को मॉडर्न चाक दी थी. सरकार ने यह दावा किया था इलेक्ट्रॉनिक चाक से आधी मेहनत में पहले से दुगने मिट्टी के दीपक और बर्तन तैयार हो जाएंगे. सरकार का कहना है कि जहां पहले 400 मिट्टी के बर्तन और दीए कुम्हार हाथ से बनाते थे. वहीं इलेक्ट्रॉनिक चौक से अब एक बार में 1200 दीपक बन सकेंगे. कुम्हारों का कहना है कि पहले बिजली बिल 1000 या 1200 आता था. वहीं अब 3000 से 4000 रुपये आ रहा है. हालात यह हो गये है कि अब तो खाने-पीने की और दिक्कत हो रही है.

Intro:वाराणसी। चिराग तले अंधेरा होने की कहावत काफी पुरानी है लेकिन अगर आज भी अपने अगल-बगल समाज में देखा जाए तो यह कहावत कई जगह सच का रूप लेती नजर आती है। सरकारी योजनाएं जब शुरू की जाती है तो जनता के लिए उसे वही चिराग बताया जाता है जिसकी सच्चाई सामने आने पर उसके तले अंधेरा ही होता नजर आता है। कुछ ऐसी ही सरकारी योजनाएं गरीब तबके के लोगों के लिए भी शुरू की जाती हैं लेकिन योजना शुरू होने के बाद उस पर अमल किया जा रहा है या नहीं या कहीं उससे परेशानी दूर करने के बजाय परेशानी बढ़ तो नहीं रही इस बात पर ध्यान देने के लिए ना ही प्रशासन को होश आता है ना ही सरकार को। कुछ ऐसा ही हाल है प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में बसे कुम्हारों के गांव फुलवरिया में कुम्हारों का यह गांव जो लोगों के घरों के लिए मिट्टी के दिए बनाता है, खिलौने बनाता है, बर्तन बनाता है, जिससे उनके घरों के बच्चे खेल सके चूल्हा जल सके और त्योहारों पर कहीं अंधेरा ना रहे। पर इनके घरों में अगर अंधेरा रह जाए तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा यह बताने वाला आज भी कोई नहीं है।


Body:VO1: काशी के फुलवरिया गांव में जवाब जाएंगे तुम मिट्टी के घर और घरों के बाहर मिट्टी के खिलौने दिए और बर्तन हर जगह ही नजर आ जाएंगे। इन मिट्टी के घरों में काम भी होता है तो मिट्टी का। यह वह लोग हैं जो अपने देश की मिट्टी से पूरी तरह से जुड़े हुए हैं। इन्होंने सपने भी देखे थे कि एक दिन अच्छे दिन जरूर आएंगे। बेहतर भविष्य का सपना अपने बच्चों के लिए संजोय यह परिवार आज भी उसी स्थिति में जी रहे हैं जैसे स्थिति में पिछले कई सालों से इनके पूर्वज रहते आए हैं। सरकार ने इन कुम्हारों का जीवन बेहतर करने का दावे के साथ बिजली के चेक दिए जिससे इन के व्यापार में बढ़ोतरी हो सके। पर इन बिजली के चाकों को देने से घरों में बिजली का बिल इतना आने लगा है कि अब राशन पानी की व्यवस्था करना भी मुश्किल हो गया है। कुम्हारों का कहना है कि बुनकरों को जब बिजली का बिल माफ किया जा सकता है तो उनकी तरफ ध्यान क्यों नहीं दिया जा रहा। फुलवरिया गांव के कुम्हार बताते हैं कि बिजली का तो मिल गया है पर उसका इस्तेमाल करने की हिम्मत नहीं होती इसलिए आज भी उसी पुराने रवैए से काम किया जा रहा है जिस तरह से सालों से होता आया है। सरकार ने एक बार भी मुड़ कर नहीं देखा ना ही किसी सरकारी अधिकारी ने आकर के पूछा कि चाक देने के बाद की स्थिति कैसी है। 5 साल में एक बार जब चुनाव आए हैं तो लोग फिर आने लगे हैं हमारे दरवाजे वोट मांगने के लिए। लोगों का कहना है कि हाथ जोड़कर प्रत्याशी आते हैं और यह कहते हैं कि हमें वोट दे दीजिएगा पर कोई यह नहीं पूछता कि जिंदगी किस कठिनाई में बीत रही है।

बाइट: फुलवरिया गाओं के निवासी


Conclusion:VO2: गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने कुम्हार की भलाई का दावा करते हुए उनको मॉडर्न चाक दी थी। इलेक्ट्रॉनिक चाक को देने पर सरकार ने यह दावा किया था कि अब आधी मेहनत में पहले से दुगने मिट्टी के दीपक और बर्तन तैयार हो जाएंगे। सरकार का कहना है कि जहां पहले 400 मिट्टी के बर्तन और दिए कुम्हार हाथ से बनाते थे वही इस इलेक्ट्रॉनिक चौक से अब एक बार में 12 सौ दीपक बन सकेंगे। चाक को इलेक्ट्रॉनिक मोटर से चलाने के कारण कुम्हार को शारीरिक आराम भी मिलेगा इस बात के भी दावे किए गए थे। लेकिन सरकार यह भूल गई कि जिसके पास खाने के लिए पैसों की कमी पड़ जाए वह इस इलेक्ट्रॉनिक को चलाकर बिजली का बिल कहां से भरेगा। कुम्हारों का कहना है कि पहले बिल अगर 1000 या 1200 आता था तो वहीं तीन से ₹4000 आ रहा है। हालात यह हो गए हैं कि अब तो खाने-पीने की और दिक्कत हो रही है। घर में अनाज नहीं आ पाता क्योंकि बिजली का बिल भरने में ही पूरी कमाई निकल जाती है।

Regards
Arnima Dwivedi
Varanasi
7523863236
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