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संकट में है काशी के पुरातत्व संग्रहालय में रखी हजारों साल की विरासत

1960 में संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में संग्रहालय की स्थापना की गई. उस वक्त इस संग्रहालय को मेंटेन रखने के लिए 8000 रुपये वार्षिक खर्च को निर्धारित किया गया था, लेकिन 60 साल से ज्यादा बीत जाने के बाद भी इस खर्च में महज 2000 रुपये की बढ़ोतरी हुई है.

बदहाली पर आंसू बहा रहा संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय स्थित संग्रहालय.
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Published : Jun 24, 2019, 12:23 PM IST

वाराणसी: धर्मनगरी काशी में पुरातन काल की चीजों को सुरक्षित रखने के लिए मौजूद एक संग्रहालय आज भी अंग्रेजी हुकूमत के बाद बनी सरकार के खर्च पर संचालित हो रहा है. इस वजह से इस संग्रहालय में मौजूद कीमती चीजों को संरक्षित और सुरक्षित रखना अब मुश्किल होता जा रहा है. आजाद भारत के शुरुआती दौर में बने इस संग्रहालय में हजारों साल पुरानी कीमती चीजें हैं. वहीं अब सरकार की उदासीनता और विश्वविद्यालय प्रशासन की नजरअंदाजी की वजह से यह संग्रहालय बदहाली पर आंसू बहाने को मजबूर है.

बदहाली पर आंसू बहा रहा संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय स्थित संग्रहालय.


डॉक्टर संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना 1958 में हुई. विश्वविद्यालय में मौजूद पुरातत्व संग्रहालय की 1960 में स्थापना हुई. बिल्डिंग पहले बनी और संग्रहालय बाद में इसलिए संग्रहालय के हिसाब से इस बिल्डिंग में कोई भी चीज तैयार नहीं कराई गई थी.


पुरातत्व संग्रहालय के इंचार्ज और अध्यक्ष डॉ. विमल कुमार त्रिपाठी का कहना है मुगलकालीन, गुप्तकालीन के अलावा यहां हजारों साल पुरानी चीजों को यहां पर संजोकर रखा गया है, जो देश ही नहीं बल्कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से हासिल हुई है. इसके बाद भी संग्रहालय की तरफ किसी का ध्यान नहीं आ रहा है. इस वजह से यहां मौजूद पुरातन चीजों पर खतरा मंडराने लगा है.


संग्रहालय आज भी अंग्रेजी हुकूमत के बाद बनाई गई नई सरकारों के निर्धारित खर्च पर ही चल रहा है. क्योंकि 1960 में जब यह संग्रहालय बना तो उस वक्त इस संग्रहालय को मेंटेन रखने के लिए 8000 रुपये वार्षिक खर्च को निर्धारित किया गया था, लेकिन 60 साल से ज्यादा बीत जाने के बाद भी इस खर्च में महज 2000 रुपये की बढ़ोतरी हुई है.

वाराणसी: धर्मनगरी काशी में पुरातन काल की चीजों को सुरक्षित रखने के लिए मौजूद एक संग्रहालय आज भी अंग्रेजी हुकूमत के बाद बनी सरकार के खर्च पर संचालित हो रहा है. इस वजह से इस संग्रहालय में मौजूद कीमती चीजों को संरक्षित और सुरक्षित रखना अब मुश्किल होता जा रहा है. आजाद भारत के शुरुआती दौर में बने इस संग्रहालय में हजारों साल पुरानी कीमती चीजें हैं. वहीं अब सरकार की उदासीनता और विश्वविद्यालय प्रशासन की नजरअंदाजी की वजह से यह संग्रहालय बदहाली पर आंसू बहाने को मजबूर है.

बदहाली पर आंसू बहा रहा संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय स्थित संग्रहालय.


डॉक्टर संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना 1958 में हुई. विश्वविद्यालय में मौजूद पुरातत्व संग्रहालय की 1960 में स्थापना हुई. बिल्डिंग पहले बनी और संग्रहालय बाद में इसलिए संग्रहालय के हिसाब से इस बिल्डिंग में कोई भी चीज तैयार नहीं कराई गई थी.


पुरातत्व संग्रहालय के इंचार्ज और अध्यक्ष डॉ. विमल कुमार त्रिपाठी का कहना है मुगलकालीन, गुप्तकालीन के अलावा यहां हजारों साल पुरानी चीजों को यहां पर संजोकर रखा गया है, जो देश ही नहीं बल्कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से हासिल हुई है. इसके बाद भी संग्रहालय की तरफ किसी का ध्यान नहीं आ रहा है. इस वजह से यहां मौजूद पुरातन चीजों पर खतरा मंडराने लगा है.


संग्रहालय आज भी अंग्रेजी हुकूमत के बाद बनाई गई नई सरकारों के निर्धारित खर्च पर ही चल रहा है. क्योंकि 1960 में जब यह संग्रहालय बना तो उस वक्त इस संग्रहालय को मेंटेन रखने के लिए 8000 रुपये वार्षिक खर्च को निर्धारित किया गया था, लेकिन 60 साल से ज्यादा बीत जाने के बाद भी इस खर्च में महज 2000 रुपये की बढ़ोतरी हुई है.

Intro:summary: 1960 में जब यह संग्रहालय बना तो उस वक्त इस संग्रहालय को मेंटेन रखने के लिए 8000 रुपये वार्षिक खर्च को निर्धारित किया गया था, लेकिन 60 साल से ज्यादा बीत जाने के बाद भी इस खर्च में महज 2000 रुपये की बढ़ोतरी हुई है.


वाराणसी स्पेशल स्टोरी-

वाराणसी: संग्रहालय जिसका नाम सामने आने के बाद पुरातन चीजों को संरक्षित और सुरक्षित रखने के हो रहे प्रयासों की बात हर कोई सोचता सरकारें भी संग्रहालय और संग्रहालय में मौजूद कीमती चीजों की सुरक्षा के लिए लंबा चौड़ा खर्च करती है लेकिन धर्मनगरी वाराणसी में पुरातन काल की चीजों को सुरक्षित और संरक्षित रखने के लिए मौजूद एक संग्रहालय आज भी अंग्रेजी हुकूमत के बाद बनी सरकार के खर्च पर संचालित हो रहा है जिसकी वजह से इस संग्रहालय में मौजूद कीमती चीजों को संरक्षित और सुरक्षित रखना अब मुश्किल होता जा रहा है आजाद भारत के शुरुआती दौर में बने इस संग्रहालय में हजारों साल पुरानी कीमती चीजें हैं लेकिन अब सरकारों की उदासीनता और विश्वविद्यालय प्रशासन की नजरअंदाजी की वजह से यह संग्रहालय बदहाली पर आंसू बहाने पर मजबूर है.

ओपनिंग पीटीसी- गोपाल मिश्र


Body:वीओ-01 हम बात कर रहे हैं डॉक्टर संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में मौजूद पुरातत्व संग्रहालय की 1958 में जब यूनिवर्सिटी की स्थापना हुई उसके बाद 1960 में इस संग्रहालय की शुरुआत हो गई सबसे बड़ी बात यह है कि बिल्डिंग पहले बनी और संग्रहालय बाद में इसलिए संग्रहालय के हिसाब से इस बिल्डिंग में कोई भी चीज तैयार नहीं कराई गई थी पुरातत्व संग्रहालय के इंचार्ज और अध्यक्ष डॉ विमल कुमार त्रिपाठी का कहना है किस संग्रहालय का निर्माण पहले उसकी स्थिति को देखते हुए किया जाता है लेकिन यहां संग्रहालय बाद में बनाओ बिल्डिंग पहले बनने की वजह से मौसम में अतिथियों के हिसाब से यह संग्रहालय बेहतर नहीं है. जबकि यहां पर मुगलकालीन गुप्तकालीन के अलावा तीसरी और चौथी शती की चीजें भी मौजूद हैं यानी हजारों साल पुरानी चीजों को यहां पर संजोकर रखा गया है जो देश ही नहीं बल्कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से हासिल हुई है इसके बाद भी संग्रहालय की तरफ किसी का ध्यान नहीं आ रहा है कोई सरकार या यूनिवर्सिटी प्रशासन में आने वाला कोई भी नया अधिकारी संग्रहालय के उद्धार के बारे में नहीं सोच रहा जिसकी वजह से यहां मौजूद पुरातन चीजों पर खतरा मंडराने लगा है क्योंकि मौसम अन्य स्थितियों के आधार पर इस संग्रहालय में मौजूद चीजों को सुरक्षित रख पाना अब संभव नहीं हो रहा है.

बाईट- डॉ विमल त्रिपाठी, अध्यक्ष, पुरातत्व संग्रहालय डॉक्टर संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय


Conclusion:वीओ-02 संग्रहालय की बदहाली की वजह एक तरफ जहां सरकारों और विश्वविद्यालय प्रशासन के लोगों का ध्यान ना दिया जाना है वही सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है कि यह संग्रहालय आज भी अंग्रेजी हुकूमत के बाद बनाई गई नई सरकारों के निर्धारित खर्च पर ही चल रहा है. सुनकर चौकने वाली बात नहीं है, यह सच है क्योंकि 1960 में जब यह संग्रहालय बना तो उस वक्त इस संग्रहालय को मेंटेन रखने के लिए 8000 रुपये वार्षिक खर्च को निर्धारित किया गया था, लेकिन 60 साल से ज्यादा बीत जाने के बाद भी इस खर्च में महज 2000 रुपये की बढ़ोतरी हुई है. जिसके बाद अब यह सवाल उठने लगा है कि क्या कितने खर्च में आज के दौर में इस संग्रहालय को मेंटेन रख पाना संभव हो पाएगा.

बाईट- डॉ विमल त्रिपाठी, अध्यक्ष, पुरातत्व संग्रहालय डॉक्टर संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय

क्लोजिंग पीटीसी- गोपाल मिश्र

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