वाराणसी : धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी को भगवान महादेव की नगरी भी कही जाती है. मान्यता है यहां पर स्वयं बाबा श्री काशी विश्वनाथ विराजते हैं. इसी वजह से यह नगरी तीनों लोकों से न्यारी कही जाती है. बाबा विश्वनाथ से लाखों लोगों की आस्था जुड़ी है. बनारसिओं के साथ बाबा विश्वनाथ भी ठंडई का शौक रखते हैं. बीती कई पीढ़ियों से बाबा को ठंडई चढ़ाने की परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है. प्रत्येक दिन सप्त ऋषि आरती के दौरान एक निश्चित समय पर बाबा को ठंडई का भोग लगाया जाता है. मौसम के अनुसार मिलने फलों आम, बेल, अमरूद आदि के रस से ठंडाई बनाई जाती है.
बनारसी पान और चाट का भी लगता है भोग : भगवान भाव के भूखे होते हैं, यह काशीवासियों का भाव है जो उन्हें ठंडई प्रसाद के रूप में चढ़ाते हैं. इसके साथ ही बाबा को बनारसी पान और बनारसी चाट का भी भोग लगाया जाता है. पिछले कई पीढ़ियों से यह दुकानदार अपने इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं.
डॉ. कुलपति तिवारी ने बताया कि बाबा विश्वनाथ कैलाश पर निवास करते हैं. वह एकदम शीतलता की जगह है. इसीलिए बाबा को ठंडी चीज बहुत पसंद हैं. श्री काशी विश्वनाथ में जो ठंडाई चढ़ती है वह हाथ से बनी हुई होती है. सीजन के अनुसार ठंडाई बनाकर बाबा को भोग लगाया जाता है. बनारसी ठंडाई में पिस्ता, केसर, बादाम आदि मिलाकर ठंडाई बनाई जाती है. आदिकाल से बाबा विश्वनाथ को ठंडाई भोग लगाई जाती है, मंत्र पढ़कर, लेकिन वह मंत्र गुप्त होता है.
दुकानदार शंकर सरीन ने बताया ठंडाई बाबा विश्वनाथ का प्रसाद है. बाबा को चढ़ाया जाता है उसके बाद आम पब्लिक पीती है. ठंडाई को शुद्ध दूध से बनाया जाता है. दूध गर्म करने के बाद उसको ठंडा करके उसमें विभिन्न प्रकार के मेवे डाले जाते हैं. पिस्ता, केसर आदि मेवे डाले जाते हैं. हमारे पिताजी के समय से बाबा को ठंडाई चढ़ती है. उसके पहले से चढ़ती थी. 70 साल से तो मैं देख रहा हूं. सप्त ऋषि आरती में भांग का भोग लगाया जाता है और ठंडाई भी चढ़ाई जाती है.
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