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काशी से अटल बिहारी वाजपेयी ने सीखा था पत्रकारिता का ककहरा

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Published : Dec 25, 2020, 9:29 PM IST

भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का 96वां जन्मदिवस पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. अटल जी का पूरे देश के विभिन्न स्थानों से एक अलग रिश्ता और लगाव रहा है.

काशी से अटल बिहारी वाजपेयी ने सीखा था पत्रकारिता का ककहरा
काशी से अटल बिहारी वाजपेयी ने सीखा था पत्रकारिता का ककहरा

वाराणसी: भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का 96वां जन्मदिवस पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. अटल जी का पूरे देश के विभिन्न स्थानों से एक अलग रिश्ता और लगाव रहा है. उन्हीं में से एक रिश्ता उनका काशी से रहा है. जब अटल जी की बात होती है तो काशी से उनका रिश्ता सहज ही जुड़ जाता है.

काशी से जुड़ा है अटूट नाता.

काशी की गलियों से हुआ कवि का विकास
राजनीति के बड़े मुकाम पर पहुंचने के बाद भी काशी और यहां के लोगों से अटल जी का रिश्ता अटूट रहा है. अपनी वाणी से लोगों को कायल बना देने वाले अटल जी ने पत्रकारिता का ककहरा बनारस से सीखा था और उनके अंदर कवि का विकास भी काशी की गलियों से ही हुआ है. आइये जानते हैं अटल जी का काशी से क्या नाता रहा है.

पत्रकारिता का सीखा था ककहरा
कहते हैं 'समाचार' अखबार के संपादक रहे मोहनलाल गुप्ता उर्फ भैया जी बनारसी और उनके परिवार से अटल जी का अटूट संबंध रहा है. भैया जी के नेतृत्व में ही अटल जी ने पत्रकारिता का ककहरा सीखा था. भैया जी के पुत्र राजेंद्र गुप्ता बताते हैं कि 1942 में वाराणसी से 'समाचार' नामक अखबार का प्रकाशन हुआ था. जो आधे पैसे की कीमत वाला अखबार था. उनके पिता भैया जी बनारसी समाचार अखबार के संपादक थे और अटल बिहारी वाजपेयी का संस्कृति और राजनीतिक संस्करण सबसे पहले समाचार अखबार में ही प्रकाशित हुआ था.

समाचार अखबार का दफ्तर हुआ करता था यह घर.
समाचार अखबार का दफ्तर हुआ करता था यह घर.

साप्ताहिक अंक में छपती थीं कविताएं
राजेंद्र गुप्ता ने बताया कि चेतगंज के हबीबपुरा इलाके में उनके मकान पर ही उनके पिताजी और अटल बिहारी वाजपेयी के साथ अन्य बड़े लोग बैठकर समाचार लिखा करते थे. यहीं से अटल जी ने अपने पत्रकारिता जीवन की शुरुआत की. उन्होंने बताया कि अटल बिहारी वाजपेयी ने स्वदेशी समाचार पत्र के संवाददाता के रूप में भी काम किया. यहीं से उनकी कविताओं को भी एक नई पहचान मिलनी शुरू हो गई. समाचार अखबार के साप्ताहिक अंक में अटल जी की कविताएं छपीं. जिसके बाद उन्हें मंच पर एक कवि के रूप में जाना जाने लगा.

भैया जी बनारसी के परिवार के साथ था अलग लगाव
अटल जी के साथ बिताए हुए पलों को याद करते हुए राजेश गुप्ता बताते हैं कि अटल जी और उनके परिवार का एक अलग संबंध रहा है. एक संस्मरण को साझा करते हुए उन्होंने बताया कि एक बार उनके चाचा के दोनों बच्चों को डिप्थीरिया की बीमारी हो गई थी. उन दिनों बनारस में डिप्थीरिया का इंजेक्शन भी उपलब्ध नहीं होता था और बिना इंजेक्शन के दोनों बच्चों की जान बचाना बेहद मुश्किल था.

उस समय भैया जी बनारसी ने अटल जी से संपर्क किया तब अटल जी विदेश मंत्री हुआ करते थे और उसी समय अटल जी ने अपने करीबी से 10 इंजेक्शन विमान के द्वारा बनारस भेजा. जिसके बाद उनके दोनों बच्चे ठीक हो गए. उन्होंने कहा कि इन बातों को बीते जमाना हो गया है, लेकिन आज भी ऐसा लगता है कि अटलजी उनकी यादों में जिंदा है.

अटल जी के काशी के राजनीतिक किस्से
वहीं काशी से अटल जी के राजनीतिक संस्मरण को साझा करते हुए भारतीय जनता पार्टी के पूर्व विधायक ज्योत्सना श्रीवास्तव बताती हैं कि अटल जी के उनके पति हरी प्रसाद श्रीवास्तव के साथ अलग संबंध रहे हैं. उन्होंने बताया कि आपातकाल के समय जब अटल जी बनारस आए थे तो उस समय उनके बेटे सौरव का जन्म हुआ था. उस समय अटल जी ने उनका नाम आपातकालीन श्रीवास्तव रख दिया.

रात आठ बजे तक खाना खा लेते थे अटल जी
ज्योत्सना श्रीवास्तव ने बताया कि एक बार अटल जी काशी सम्मेलन में आए थे, उस समय सम्मेलन के बाद किसी को पता नहीं था कि अटल जी भोजन कहां करेंगे. अटल जी रात आठ बजे तक खाना खा लेते थे. उन्होंने बताया शाम का समय था अचानक निर्धारित हुआ कि अटल जी हमारे आवास पर भोजन करेंगे. उनके साथ कई सारे कार्यकर्ता भी थे. उन्होंने बताया कि वह शाम को दूध लेने गई थीं. जब दूध लेकर अचानक घर पहुंची तो देखा कि अटल जी के साथ काफी संख्या में लोग आए थे. उस समय 7:30 बजे थे. आधे घंटे का समय बचा था. कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अचानक से क्या बनाया जाए तो बाहर कुछ लोग मटर के दाने निकाल रहे थे. फिर हमने दाल रोटी और मटर की सब्जी बनाई. उन्होंने बताया कि यह बेहद रोचक और काफी यादगार रहा.

अटल जी ने कलुआ का किया था नामकरण
दूसरा किस्सा सुनाते हुए ज्योतसना श्रीवास्तव बताती हैं कि जब बाबरी विध्वंस का ढांचा रहा था तो हर जगह दंगे हो रहे थे. उस समय अटल जी वाराणसी आए थे और हम सभी लोग लोहता इलाके में जा रहे थे. जहां पर हरिजन बस्ती में काफी मारकाट हुई थी. जब हम वहां से गुजर रहे थे तभी एक हरिजन व्यक्ति हमारे पास आया और उसने कहा कि हमारी पत्नी को देख लीजिए. उनके स्थिति बेहद खराब है. अटल जी लोगों के साथ आगे-आगे चल रहे थे.

मैं जब उस व्यक्ति के पास पहुंची तो देखा कि उनकी पत्नी लेबर पेन से कराह रही हैं. उस समय हमारे पास पैसे नहीं थे मैंने पर्स खोला तो मात्र 100 रुपये थे. मैंने वो पैसे उन्हें दे दिए और गाड़ी दी. वह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र गए जहां पर उनकी पत्नी को बेटा हुआ. अटल जी लोगों को संबोधित कर रहे थे उसी समय लोग बच्चों को लेकर आए और मैंने उस बालक को अटल जी की गोद में दे दिया. अटल जी ने उसे गोद में लेते हुए उसका नाम कलुआ रख दिया. आज भी जब भी हम हरिजन बस्ती में जाते हैं तो वहां के लोग अटल जी को बेहद याद करते हैं. कलुआ भी अटल जी द्वारा दिए गए नाम से ही आज भी जाना जाता है.

आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं पूर्व पीएम
ऐसे तमाम किस्से अटल जी के काशी की गलियों से जुड़े हुए हैं .जो आज भी लोगों के जहन में जिंदा हैं. आज भी लोग बनारसी अंदाज में कहते हैं कि "इह बनारस हव जहां अटल जी पत्रकारिता सिखले रहलन" तो कोई कहता है "इमरजंसी के समय अटल जी एहि ठीहा फरारी कटले रहलन". आज भी काशीवासी इन बातों को बताते हुए गर्व महसूस करते हैं.

वाराणसी: भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का 96वां जन्मदिवस पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. अटल जी का पूरे देश के विभिन्न स्थानों से एक अलग रिश्ता और लगाव रहा है. उन्हीं में से एक रिश्ता उनका काशी से रहा है. जब अटल जी की बात होती है तो काशी से उनका रिश्ता सहज ही जुड़ जाता है.

काशी से जुड़ा है अटूट नाता.

काशी की गलियों से हुआ कवि का विकास
राजनीति के बड़े मुकाम पर पहुंचने के बाद भी काशी और यहां के लोगों से अटल जी का रिश्ता अटूट रहा है. अपनी वाणी से लोगों को कायल बना देने वाले अटल जी ने पत्रकारिता का ककहरा बनारस से सीखा था और उनके अंदर कवि का विकास भी काशी की गलियों से ही हुआ है. आइये जानते हैं अटल जी का काशी से क्या नाता रहा है.

पत्रकारिता का सीखा था ककहरा
कहते हैं 'समाचार' अखबार के संपादक रहे मोहनलाल गुप्ता उर्फ भैया जी बनारसी और उनके परिवार से अटल जी का अटूट संबंध रहा है. भैया जी के नेतृत्व में ही अटल जी ने पत्रकारिता का ककहरा सीखा था. भैया जी के पुत्र राजेंद्र गुप्ता बताते हैं कि 1942 में वाराणसी से 'समाचार' नामक अखबार का प्रकाशन हुआ था. जो आधे पैसे की कीमत वाला अखबार था. उनके पिता भैया जी बनारसी समाचार अखबार के संपादक थे और अटल बिहारी वाजपेयी का संस्कृति और राजनीतिक संस्करण सबसे पहले समाचार अखबार में ही प्रकाशित हुआ था.

समाचार अखबार का दफ्तर हुआ करता था यह घर.
समाचार अखबार का दफ्तर हुआ करता था यह घर.

साप्ताहिक अंक में छपती थीं कविताएं
राजेंद्र गुप्ता ने बताया कि चेतगंज के हबीबपुरा इलाके में उनके मकान पर ही उनके पिताजी और अटल बिहारी वाजपेयी के साथ अन्य बड़े लोग बैठकर समाचार लिखा करते थे. यहीं से अटल जी ने अपने पत्रकारिता जीवन की शुरुआत की. उन्होंने बताया कि अटल बिहारी वाजपेयी ने स्वदेशी समाचार पत्र के संवाददाता के रूप में भी काम किया. यहीं से उनकी कविताओं को भी एक नई पहचान मिलनी शुरू हो गई. समाचार अखबार के साप्ताहिक अंक में अटल जी की कविताएं छपीं. जिसके बाद उन्हें मंच पर एक कवि के रूप में जाना जाने लगा.

भैया जी बनारसी के परिवार के साथ था अलग लगाव
अटल जी के साथ बिताए हुए पलों को याद करते हुए राजेश गुप्ता बताते हैं कि अटल जी और उनके परिवार का एक अलग संबंध रहा है. एक संस्मरण को साझा करते हुए उन्होंने बताया कि एक बार उनके चाचा के दोनों बच्चों को डिप्थीरिया की बीमारी हो गई थी. उन दिनों बनारस में डिप्थीरिया का इंजेक्शन भी उपलब्ध नहीं होता था और बिना इंजेक्शन के दोनों बच्चों की जान बचाना बेहद मुश्किल था.

उस समय भैया जी बनारसी ने अटल जी से संपर्क किया तब अटल जी विदेश मंत्री हुआ करते थे और उसी समय अटल जी ने अपने करीबी से 10 इंजेक्शन विमान के द्वारा बनारस भेजा. जिसके बाद उनके दोनों बच्चे ठीक हो गए. उन्होंने कहा कि इन बातों को बीते जमाना हो गया है, लेकिन आज भी ऐसा लगता है कि अटलजी उनकी यादों में जिंदा है.

अटल जी के काशी के राजनीतिक किस्से
वहीं काशी से अटल जी के राजनीतिक संस्मरण को साझा करते हुए भारतीय जनता पार्टी के पूर्व विधायक ज्योत्सना श्रीवास्तव बताती हैं कि अटल जी के उनके पति हरी प्रसाद श्रीवास्तव के साथ अलग संबंध रहे हैं. उन्होंने बताया कि आपातकाल के समय जब अटल जी बनारस आए थे तो उस समय उनके बेटे सौरव का जन्म हुआ था. उस समय अटल जी ने उनका नाम आपातकालीन श्रीवास्तव रख दिया.

रात आठ बजे तक खाना खा लेते थे अटल जी
ज्योत्सना श्रीवास्तव ने बताया कि एक बार अटल जी काशी सम्मेलन में आए थे, उस समय सम्मेलन के बाद किसी को पता नहीं था कि अटल जी भोजन कहां करेंगे. अटल जी रात आठ बजे तक खाना खा लेते थे. उन्होंने बताया शाम का समय था अचानक निर्धारित हुआ कि अटल जी हमारे आवास पर भोजन करेंगे. उनके साथ कई सारे कार्यकर्ता भी थे. उन्होंने बताया कि वह शाम को दूध लेने गई थीं. जब दूध लेकर अचानक घर पहुंची तो देखा कि अटल जी के साथ काफी संख्या में लोग आए थे. उस समय 7:30 बजे थे. आधे घंटे का समय बचा था. कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अचानक से क्या बनाया जाए तो बाहर कुछ लोग मटर के दाने निकाल रहे थे. फिर हमने दाल रोटी और मटर की सब्जी बनाई. उन्होंने बताया कि यह बेहद रोचक और काफी यादगार रहा.

अटल जी ने कलुआ का किया था नामकरण
दूसरा किस्सा सुनाते हुए ज्योतसना श्रीवास्तव बताती हैं कि जब बाबरी विध्वंस का ढांचा रहा था तो हर जगह दंगे हो रहे थे. उस समय अटल जी वाराणसी आए थे और हम सभी लोग लोहता इलाके में जा रहे थे. जहां पर हरिजन बस्ती में काफी मारकाट हुई थी. जब हम वहां से गुजर रहे थे तभी एक हरिजन व्यक्ति हमारे पास आया और उसने कहा कि हमारी पत्नी को देख लीजिए. उनके स्थिति बेहद खराब है. अटल जी लोगों के साथ आगे-आगे चल रहे थे.

मैं जब उस व्यक्ति के पास पहुंची तो देखा कि उनकी पत्नी लेबर पेन से कराह रही हैं. उस समय हमारे पास पैसे नहीं थे मैंने पर्स खोला तो मात्र 100 रुपये थे. मैंने वो पैसे उन्हें दे दिए और गाड़ी दी. वह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र गए जहां पर उनकी पत्नी को बेटा हुआ. अटल जी लोगों को संबोधित कर रहे थे उसी समय लोग बच्चों को लेकर आए और मैंने उस बालक को अटल जी की गोद में दे दिया. अटल जी ने उसे गोद में लेते हुए उसका नाम कलुआ रख दिया. आज भी जब भी हम हरिजन बस्ती में जाते हैं तो वहां के लोग अटल जी को बेहद याद करते हैं. कलुआ भी अटल जी द्वारा दिए गए नाम से ही आज भी जाना जाता है.

आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं पूर्व पीएम
ऐसे तमाम किस्से अटल जी के काशी की गलियों से जुड़े हुए हैं .जो आज भी लोगों के जहन में जिंदा हैं. आज भी लोग बनारसी अंदाज में कहते हैं कि "इह बनारस हव जहां अटल जी पत्रकारिता सिखले रहलन" तो कोई कहता है "इमरजंसी के समय अटल जी एहि ठीहा फरारी कटले रहलन". आज भी काशीवासी इन बातों को बताते हुए गर्व महसूस करते हैं.

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