वाराणसी: त्योहारों का सीजन बीतने के बाद वाराणसी से दिल्ली रूट पर हवाई जहाज का किराया काफी कम हो जाएगा. 25 नवंबर के बाद 1840 रुपये में दिल्ली से वाराणसी और 1666 रुपये में वाराणसी से दिल्ली के लिये टिकट बुक किये जा रहे हैं. फ्लेक्सी फेयर सिस्टम के चलते अभी टिकट बुक करने वालों को इसका लाभ मिल पायेगा.
कोरोना वायरस ने एविएशन सेक्टर को काफी नुकसान पहुंचाया है. समर सीजन बीतने के कगार पर पहुंच गया है और आलम यह है कि यात्रियों की संख्या काफी कम है. जिससे विमानन कंपनियां घाटे में चल रही हैं. एविएशन सेक्टर में विंटर सीजन को कमाई वाला सीजन कहा जाता है, क्योंकि सर्दियों के दिनों में विदेशों से काफी संख्या में पर्यटक भारत में भ्रमण करने के लिए आते हैं. कोरोना वायरस के चलते 22 मार्च से इंटरनेशनल विमान सेवाएं बंद थी. जिसके चलते विदेशी पर्यटकों का आगमन नहीं हो रहा था.
एविएशन से जुड़े जानकारों का कहना है कि विंटर सीजन में भी इस साल कमाई होने की बहुत कम ही संभावना है. लोगों ने यह भी बताया कि पर्यटकों का आवागमन न होने के चलते आने वाले समय में विमानों के किराए में भी काफी कमी आने वाली है. यही कारण है कि त्योहारों का सीजन बीतने के बाद घरेलू यात्रियों का भी आवागमन काफी कम हो जाएगा जिसके चलते 25 नवंबर के बाद के हवाई टिकट काफी सस्ते बुक हो रहे हैं.
वर्तमान रेट से आधे से कम किराया
वर्तमान समय में वाराणसी से दिल्ली का किराया 36 सौ रुपये से शुरू है. वहीं दिल्ली से बनारस का किराया 32 सौ रुपये शुरू है. हालांकि 25 नवंबर के बाद वाराणसी दिल्ली का किराया महज 1850 रुपये है. जबकि दिल्ली से वाराणसी का किराया 1666 रुपये है. एविएशन के जानकारों का कहना है कि इस हवाई मार्ग पर विमानों की संख्या अधिक है. वहीं यात्री धीरे-धीरे कम हो रहे हैं. यात्रियों की कम संख्या होने के चलते किराया इतना कम है. ऐसे में दिल्ली वाराणसी के बीच नवंबर या उसके बाद हवाई सफर करने के इच्छुक लोग अभी टिकट बुकिंग कर इसका फायदा उठा सकते हैं.
क्या होता है फ्लेक्सी फेयर सिस्टम
फ्लेक्सी फेयर सिस्टम का अर्थ है कि जिस तरह यात्रियों की संख्या बढ़ती है. उसी तरह विमान का किराया भी बढ़ता जाता है. इसे हम इस तरह भी समझ सकते हैं, महानगरों मैं नौकरी कर रहे वाराणसी समेत पूर्वांचल के अन्य जनपदों के लोग त्योहारों के सीजन में घर वापस लौटते हैं. ऐसे में उन महानगरों से वाराणसी आने का किराया अधिक होता है. जबकि जाने का किराया आधे से भी कम रहता है. त्योहारों का सीजन बीत जाने के बाद लोग वापस लौटने लगते हैं तो उस समय जाने का किराया अधिक हो जाता है और आने का किराया कम रहता है. यह सिस्टम मांग आपूर्ति पर निर्भर रहता है.