वाराणसी: संस्कृत जिसे देववाणी के नाम से जाना जाता है. काशी हिंदू विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग में एक मुस्लिम प्रोफेसर की नियुक्ति होने के बाद हंगामा शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा. इन सबके बीच हम आपको ऐसे शख्स से मिलाने जा रहे हैं, जो संस्कृत में वकालत करते हैं. आचार्य श्याम जी उपाध्याय 1978 से अब तक संस्कृत में वकालत करते आ रहे हैं. 42 सालों से संस्कृत में वकालत कर इन्होंने एक नया अध्याय लिख दिया है.
संस्कृत में करते हैं वकालत
आचार्य श्याम जी उपाध्याय ने 1978 में वकालत शुरू की थी. तब से उन्होंने देववाणी संस्कृत को ही कानूनी कामकाज में तवज्जो देने की ठान ली. इसके पीछे बड़ी वजह उनके पिताजी थे. श्याम जी ने बताया कि पिताजी का कहना था कि आज भी कोर्ट कचहरी के सारे काम उर्दू या इंग्लिश या हिंदी में होते हैं. अपनी सबसे पुरानी भाषा संस्कृत को कोई पूछता भी नहीं है.
जज भी हिंदी या संस्कृत में सुनाते हैं फैसला
उन्होंने बताया कि यही बात मेरे दिल में घर कर गई और मैंने अपना वकालत का कोर्स पूरा करने के बाद अपनी प्रैक्टिस संस्कृत में ही शुरू की. तब से लेकर आज तक सारे अदालती काम जैसे शपथ पत्र बनाना, प्रार्थना पत्र लिखना, दावा, वकालतनामा और यहां तक की कोर्ट में बहस भी संस्कृत में ही करते आ रहे हैं. इतना ही नहीं संस्कृत में वकालत के दौरान श्याम जी के पक्ष में जो भी फैसला और आदेश हुआ, उसे जज ने भी संस्कृत या हिंदी में ही सुनाया है.
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संस्कृत को बचाने की कवायद की करते हैं सराहना
श्याम जी उपाध्याय का कहना है कि संस्कृत भाषा कठिन नहीं है. कोर्ट रूम में इसे सरल शब्दों में तोड़-तोड़ कर इस्तेमाल करता हूं, ताकि जज और मेरे मुवक्किल के साथ अन्य लोग समझ सकें. यही वजह है कि कचहरी परिसर में बीते 42 सालों से श्याम जी को अन्य वकील इज्जत और सम्मान देते हैं. यहां तक की उनके मुवक्किल और अन्य जो लोग अपने मुकदमों में पैरवी करवाने आते हैं, वह भी श्याम जी के इस अलग अंदाज से बेहद खुश नजर आते हैं. संस्कृत को बचाए जाने के लिए किए जा रहे उनके प्रयास की सराहना भी करते हैं.