वाराणसी : सनातन धर्म मे धार्मिक कृत्यों के लिए सौरमास तथा चान्द्रमासों में काल गणना की परिपाटी प्राचीनकाल से चली आ रही है. दर्शपौर्णमासादि योगों तथा कालों में चान्द्रमास एवं संक्रान्ति जैसे पुण्यकाल के लिए सौरमास का उपयोग होता आ रहा है. संकल्पादि धर्मकृत्यों में सौर तथा चान्द्रमास का समन्वयपूर्वक ऋतु, त्योहार एवं व्रत पर्वादि नियत रूप से होते रहें एवं इसकी एकरूपता बनी रहे इसलिए हिन्दू पंचांग के अनुसार, ज्योतिष विज्ञान में अधिक मास का विधान है. अधिक मास को कई नामों से जाना जाता है और इस मास में श्री हरि विष्णु के साथ भगवान शिव की विशेष आराधना विशेष फलदाई मानी जाती है और जब मौका सावन का हो और अधिक मास पड़ रहा हो तो फिर श्रीहरि के साथ भोलेनाथ की विशेष कृपा पाने का बड़ा अवसर मिल रहा है. अधिक मास की शुरुआत 18 जुलाई से होने जा रही है.
इस बारे में ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि 'सूर्य जितने समय में एक राशि पूर्ण करे, उतने समय को सौरमास कहते हैं, ऐसे बारह सौरमासों का एक वर्ष होता है, जो सूर्य सिद्धान्त के अनुसार, 365 दिन 15 घटी 31 पल और 30 विपल का होता है. शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर कृष्णपक्ष की अमावस्या तक के समय को चान्द्रमास कहते हैं. ऐसे बारह मासों का एक चान्द्रवर्ष होता है जो 354 दिन, 22 घटी, 1 पल और 24 विपल का होता है, जिसके अनुसार, एक सौर और चान्द्रवर्ष में प्रतिवर्ष 10 दिन 53 घंटी, 30 पल और 6 विपल का अंतर हो जाता है, यदि इस प्रकार चान्द्रमासों को लगातार पीछे होने दिया जाता तो वे 33 वर्षों में अपने चक्र को पूरे कर लिये होते एवं चान्द्र पंचांग से सम्बद्ध पर्व इस अवधि में सभी ऋतुओं में तितर-बितर हो गए होते. इस अनिच्छित घटना को रोकने के लिए मलमास (अधिमास) के नियम चालू किये गये. जिसके अनुसार सौर तथा चान्द्रमास के वर्षों में लगभग ग्यारह दिन का अन्तर पड़ता रहता है और यही अन्तर पौने तीन वर्षों में 30 दिन का हो जाता है. इसलिए यह कहा जाता है कि, 32 मास, 16 दिन और 4 घटी का समय बीत जाने पर 29 दिन 31 घटी, 50 पल, और 7 विपल का एक अधिशेष यानि अधिक (मल) मास आता है.'
कहा गया है की
द्वात्रिंशद्भिर्गतैर्मासैः दिनैः षोडशभिस्तथा
घटिकानां चतुष्केण पतति ह्यधिमासकः
इस वर्ष अधिक मास दिनांक 17 जुलाई, सोमवार को अर्द्धरात्रि 12 बजकर 02 मिनट से आरम्भ हो रहा है तथा 16 अगस्त, बुधवार को दिन में 3 बजकर 08 मिनट तक रहेगा. 'न पुरुषोत्तम समो मासः' ऐसा कहकर विद्वानों ने इसकी बार-बार प्रशंसा की है, न कुर्यादधिके मासि काम्यं कर्म कदाचन.'
ज्योतिषविद विमल जैन के अनुसार, अधिक मास में फल प्राप्ति की कामना से किये जाने वाले प्रायः सभी कार्य वर्जित हो जाते हैं, जैसे- कुआं, बावली तालाब एवं बाग बगीचे आदि लगाने का आरम्भ, प्रथम व्रतारम्भ व्रत उद्यापन देव प्रतिष्ठा वधू प्रवेश, भूमि, सोना एवं तुला आदि महादान विशिष्ट यज्ञ यागादि अष्टका श्राद्ध उपाकर्म, वेदारम्भ, वेदव्रत, गुरुदीक्षा, विवाह, उपनयन एवं चातुर्मासीय व्रतारम्भ आदि.
ज्योतिर्विद विमल जैन ने बताया कि 'पुरुषोत्तम मास में किये जाने वाले आवश्यक कर्म जैसे- प्राणघातक बीमारी आदि की निवृत्ति के लिए रुद्र मन्त्र जप, व्रतादि अनुष्ठान कपिल षष्ठी आदि व्रत, अनावृष्टि निवृत्ति के लिए पुरश्चरण-अनुष्ठानादि कार्य वषट्कार वर्जित हवन, ग्रहण संबंधी श्राद्ध, दान जपादि कार्य, पुत्रोत्पति के कर्म, गर्भाधान, पुंसवन, सीमंत-संस्कार तथा निश्चित अवधि पर समाप्त करने एवं पूर्वागत प्रयोगादि कार्य इस (अधिक) मास में किये जा सकते हैं.'
अधिक मास में क्या खायें, क्या ना खायें? : विमल जैन ने बताया कि 'इस मास में गेहूं, चावल, सफेद धान, मूंग, जौ, तिल, मटर, सतुआ, शहतूत, ककड़ी, केला, घी, कटहल, आम, पीपल, जीरा, सोंठ, सुपारी, आंवला तथा सेंधा नमक का सेवन करें. मांस, शहद, उड़द की दाल, चौलाई की साग, चावल की मांड़, उड़द, लहसून, प्याज, गाजर, मूली, राई, नशीले पदार्थ, तिल का तेल एवं दूषित अन्न का त्याग करना चाहिए. इस मास में जमीन पर शयन करना चाहिए. सायंकाल पूजा-अर्चना के पश्चात् एक समय अल्पाहार या भोजन करना चाहिए. इस मास में अपने परिवार के अतिरिक्त अन्यत्र कुछ भी खाने से बचना चाहिए.'
मलमास के 33 देवताओं के नाम
1. विष्णु, 2. जिष्णु, 3. महाविष्णु, 4. हरि, 5. कृष्ण, 6. अधोक्षज, 7. केशव, 8. माधव, 9. राम, 10. अच्युत, 11. पुरुषोत्तम, 12. गोविन्द, 13. वामन, 14. श्रीश, 15. श्रीकान्त, 16. विश्वसाक्षी, 17. नारायण, 18. मधुरिप, 19. अनिरुद्ध, 20. त्रिविक्रम, 21. वासुदेव, 22. जगद्योनि, 23. अनन्त, 24. शेषशायी, 25. संकर्षण, 26. प्रद्युम्न, 27. दैत्यारि, 28. विश्वतोमुख, 29. जनार्दन, 30. धारावास, 31. दामोदर, 32. अद्यादन, 33. श्रीपति.
करें इस मिठाई का ही दान : अधिक मास में तैंतीस कोटि देवी-देवताओं की प्रसन्नता के निमित्त पुरुषोत्तम भगवान के मन्दिर में तैंतीस मालपुआ अर्पित करने का विधान है. इस मास में प्रतिदिन भगवान पुरुषोत्तम का पूजन-अर्चन, कथा-श्रवण करना, व्रत नियम से रहना चाहिए तथा कांस्य पात्र में रखकर अन्न वस्वादि एवं तैंतीस मालपुआ का दान विशेष महत्वपूर्ण है.'