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बीएचयू के इस शिक्षक की है खास पहचान, जानें क्यों

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति रह चुके भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की आज जयंती है. इस अवसर पर भारत में शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है. वहीं उन्हीं की परम्परा को आगे ले जाने वाले एक और शिक्षक आज भी बीएचयू में हैं, जो खासकर अपनी पोशाक के लिए चर्चा में रहते हैं. देखें रिपोर्ट-

आचार्य भक्ति पुत्र रोहतम.
आचार्य भक्ति पुत्र रोहतम.
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Published : Sep 5, 2020, 1:37 PM IST

वाराणसी: सर्व विद्या की राजधानी कही जाने वाली काशी के बीएचयू में शिक्षक दिवस विशेष रूप से मनाया जाता है. क्योंकि यहीं के कुलपति रहे हैं डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन, जिनकी जयंती पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है. ईटीवी भारत आपको एक ऐसे आचार्य से मिलाएगा, जो इस आधुनिक दौर में भी बिल्कुल अलग हैं. अपने ज्ञान के साथ-साथ अपने पोशाक से भी अपनी पुराने संस्कृति सभ्यता को उन्होंने बचा कर रखा है. यह बीएचयू के सभी शिक्षक, प्रोफेसर और आचार्यों से बिल्कुल अलग हैं.

अपने परिधान के लिए विख्तात हैं आचार्य भक्ति पुत्र रोहतम.

महत्तवपूर्ण बातें-

  • पितांबर भेष धारण करते हैं आचार्य भक्ति पुत्र रोहतम.
  • अपने पोशाक के लिए बीएचयू में हैं विख्यात.
  • धर्मागम विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं आचार्य भक्ति पुत्र रोहतम.

हम बात कर रहे हैं संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के धर्मागम विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्त आचार्य भक्ति पुत्र रोहतम की. ऋषि-मुनियों की तरह भेष, पैर में खड़ाऊ, प्राचीन गुरुओं की तरह पितांबरी वस्त्र धारण किए महामना की बगिया में आज भी अपने आवास से पूरे परिसर में पैदल ही आवागमन करते हैं. छात्रों को वेद की शिक्षा देने वाले शिक्षक इसी धुन में रहते हैं और इस आधुनिकता के दौर में भी विश्वविद्यालय में सबसे अलग दिखते हैं. किसी भी डिपार्टमेंट का छात्र हो अगर इन्हें देखता है तो शिद्दत से इनके सामने सिर झुका देता है. परंपरा के साथ आधुनिकता के ज्ञान को भी वह जानते हैं और अपने कुछ कार्य जरूरत पड़ने पर वह लैपटॉप के माध्यम से भी करते हैं.

संक्षिप्त परिचय

आचार्य ने हाई स्कूल 1972 में मुख्य विषय गणित और संस्कृत से पास की. इसके बाद 1973 में इंटर करते हुए उन्होंने साधनात्मक जीवन का निर्णय लिया. उन्होने साधना करते हुए संस्कृत पढ़ने का निर्णय लिया. इसी संदर्भ में उनका काशी आगमन हुआ. संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से आचार्य में स्वर्ण पदक प्राप्त किया. इसके बाद काशी हिंदू विश्वविद्यालय में वेदांत और दर्शन में आचार्य की उपाधि ली. संकाय में उनका प्रथम स्थान रहा. वहीं उन्होंने तीन स्वर्ण पदक भी प्राप्त किया. जेआरएफ करने के बाद फिर उन्होंने संस्कृत यूनिवर्सिटी से पीएचडी किया. उसके बाद वर्ष 2006 से काशी हिंदू विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यभार संभाला.

असिस्टेंट प्रोफेसर आचार्य भक्ति पुत्र रोहतम ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया कि परंपरा से धार्मिक शिक्षा में पीत (पिला कपड़ा) वस्त्र का बहुत ही महत्व है. पीत वस्त्र सतोगुण का प्रतीक है. प्राचीन काल में हमारे विद्यार्थी जो ब्रह्मचारी कहे जाते थे, वह पीत वस्त्र धारण करके ही शिक्षा ग्रहण करते थे. अपनी प्राचीन परंपरा के भेष में रहकर आध्यात्मिक जीवन के साथ शिक्षा को स्पष्ट करने के लिए पीत वस्त्र धारण करते थे. क्योंकि हमारे यहां गुरु का यह भेष है. जो हमारे देव गुरु बृहस्पति हैं, उनका रंग पीत है. मैं भी एक गुरु के पद में हूं, इसलिए उसी भेष में रहना उचित मानता हूं और इसलिए पितांबर धारण करता हूं.

क्यों धारण करते हैं चरण पादुका

आचार्य ने बताया कि जो लकड़ी की चरण पादुका है, जिसे हम खड़ाऊ कहते हैं. वह हमेशा स्वच्छता रखने में लाभदायक है. जीवन को संयमित रखने पर एकाग्रता लाने के लिए यह पादुका बहुत ही उपयोगी होता है.

आचार्य ने बताया कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ने वाला हर छात्र, कर्मचारी, शिक्षक और प्रोफेसर की महामना के प्रति विशेष आस्था है. उनके प्रति यह आस्था जीवन पर्यंत उसके साथ रहती है. उन्होंने बताया कि महामना ने भारतीय संस्कृति को संपूर्ण रूप से पुनः स्थापित करने के लिए इस विश्वविद्यालय की स्थापना की थी.

इसे भी पढ़ें- शिक्षक दिवस विशेष: शिक्षक सत्यपाल बने नजीर, जटिल गणित को बनाया सरल

वाराणसी: सर्व विद्या की राजधानी कही जाने वाली काशी के बीएचयू में शिक्षक दिवस विशेष रूप से मनाया जाता है. क्योंकि यहीं के कुलपति रहे हैं डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन, जिनकी जयंती पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है. ईटीवी भारत आपको एक ऐसे आचार्य से मिलाएगा, जो इस आधुनिक दौर में भी बिल्कुल अलग हैं. अपने ज्ञान के साथ-साथ अपने पोशाक से भी अपनी पुराने संस्कृति सभ्यता को उन्होंने बचा कर रखा है. यह बीएचयू के सभी शिक्षक, प्रोफेसर और आचार्यों से बिल्कुल अलग हैं.

अपने परिधान के लिए विख्तात हैं आचार्य भक्ति पुत्र रोहतम.

महत्तवपूर्ण बातें-

  • पितांबर भेष धारण करते हैं आचार्य भक्ति पुत्र रोहतम.
  • अपने पोशाक के लिए बीएचयू में हैं विख्यात.
  • धर्मागम विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं आचार्य भक्ति पुत्र रोहतम.

हम बात कर रहे हैं संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के धर्मागम विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्त आचार्य भक्ति पुत्र रोहतम की. ऋषि-मुनियों की तरह भेष, पैर में खड़ाऊ, प्राचीन गुरुओं की तरह पितांबरी वस्त्र धारण किए महामना की बगिया में आज भी अपने आवास से पूरे परिसर में पैदल ही आवागमन करते हैं. छात्रों को वेद की शिक्षा देने वाले शिक्षक इसी धुन में रहते हैं और इस आधुनिकता के दौर में भी विश्वविद्यालय में सबसे अलग दिखते हैं. किसी भी डिपार्टमेंट का छात्र हो अगर इन्हें देखता है तो शिद्दत से इनके सामने सिर झुका देता है. परंपरा के साथ आधुनिकता के ज्ञान को भी वह जानते हैं और अपने कुछ कार्य जरूरत पड़ने पर वह लैपटॉप के माध्यम से भी करते हैं.

संक्षिप्त परिचय

आचार्य ने हाई स्कूल 1972 में मुख्य विषय गणित और संस्कृत से पास की. इसके बाद 1973 में इंटर करते हुए उन्होंने साधनात्मक जीवन का निर्णय लिया. उन्होने साधना करते हुए संस्कृत पढ़ने का निर्णय लिया. इसी संदर्भ में उनका काशी आगमन हुआ. संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से आचार्य में स्वर्ण पदक प्राप्त किया. इसके बाद काशी हिंदू विश्वविद्यालय में वेदांत और दर्शन में आचार्य की उपाधि ली. संकाय में उनका प्रथम स्थान रहा. वहीं उन्होंने तीन स्वर्ण पदक भी प्राप्त किया. जेआरएफ करने के बाद फिर उन्होंने संस्कृत यूनिवर्सिटी से पीएचडी किया. उसके बाद वर्ष 2006 से काशी हिंदू विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यभार संभाला.

असिस्टेंट प्रोफेसर आचार्य भक्ति पुत्र रोहतम ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया कि परंपरा से धार्मिक शिक्षा में पीत (पिला कपड़ा) वस्त्र का बहुत ही महत्व है. पीत वस्त्र सतोगुण का प्रतीक है. प्राचीन काल में हमारे विद्यार्थी जो ब्रह्मचारी कहे जाते थे, वह पीत वस्त्र धारण करके ही शिक्षा ग्रहण करते थे. अपनी प्राचीन परंपरा के भेष में रहकर आध्यात्मिक जीवन के साथ शिक्षा को स्पष्ट करने के लिए पीत वस्त्र धारण करते थे. क्योंकि हमारे यहां गुरु का यह भेष है. जो हमारे देव गुरु बृहस्पति हैं, उनका रंग पीत है. मैं भी एक गुरु के पद में हूं, इसलिए उसी भेष में रहना उचित मानता हूं और इसलिए पितांबर धारण करता हूं.

क्यों धारण करते हैं चरण पादुका

आचार्य ने बताया कि जो लकड़ी की चरण पादुका है, जिसे हम खड़ाऊ कहते हैं. वह हमेशा स्वच्छता रखने में लाभदायक है. जीवन को संयमित रखने पर एकाग्रता लाने के लिए यह पादुका बहुत ही उपयोगी होता है.

आचार्य ने बताया कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ने वाला हर छात्र, कर्मचारी, शिक्षक और प्रोफेसर की महामना के प्रति विशेष आस्था है. उनके प्रति यह आस्था जीवन पर्यंत उसके साथ रहती है. उन्होंने बताया कि महामना ने भारतीय संस्कृति को संपूर्ण रूप से पुनः स्थापित करने के लिए इस विश्वविद्यालय की स्थापना की थी.

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