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निरक्षरों का पड़ेगा अक्षरों से पाला, जब बच्चे देंगे नानी-दादी को ज्ञान

उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में मुंशी प्रेमचन्द के गांव लमही को साक्षर बनाने का जिम्मा छोटे बच्चों ने उठाया है. गांव में छोटे बच्चे बुजुर्गों को पढ़ा-लिखाकर साक्षर बना रहे हैं. पढ़ें खास रिपोर्ट...

मुंशी प्रेमचन्द का गांव बनेगा साक्षर.
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Published : Sep 10, 2019, 12:46 PM IST

वाराणसी: कहते हैं कि बच्चे देश का भविष्य हैं. इस कहावत को धरातल पर उतारने का बीड़ा नन्हे-मुन्हे बच्चों ने उठाया है. जी हां, वाराणसी में मशहूर उपन्यासकार मुंशी प्रेमचन्द के गांव लमही में बच्चे बन बैठे हैं टीचर और बुजुर्ग बने हैं स्टूडेंट.

निरक्षर बनेंगे साक्षर
लमही गांव में कई व्यस्क और बुजुर्ग ऐसै हैं, जिनका शिक्षा से कोई लेना-देना नहीं है. गांव में विशाल भारत संस्थान के सहयोग से अक्षर नाम का एक स्कूल खोला गया है. अक्षर स्कूल का मिशन है कि 15 दिन में 50 से 100 साल के उन निरक्षर लोगों को साक्षर बनाना जो अपना नाम तक लिखना नहीं जानते हैं और न ही पढ़ना-लिखना जानते हैं.

मुंशी प्रेमचन्द का गांव बनेगा साक्षर.

बच्चे बने अध्यापक
80 वर्षीय बिटुना और 60 वर्षीय नगीना खातून जैसी कई बुजुर्ग महिलायें हैं, जिनका अक्षर से कभी पाला नहीं पड़ा है. अक्षर स्कूल बिटुना दादी और नगीना खातून को न सिर्फ साक्षर बनायेगा, बल्कि मोबाइल और इन्टरनेट चलाना भी सिखाएगा. यह सब कोई पेशेवर लोग नहीं करेंगे, बल्कि विशाल भारत संस्थान के 5 से 13 वर्ष के बच्चे कर दिखायेंगे. बिना सरकारी मदद के लमही गांव को सम्पूर्ण साक्षर बनाने का संकल्प विशाल भारत संस्थान के बच्चों ने लिया है.

15 दिन का क्रैश कोर्स
अक्षर स्कूल में 13 वर्षीय शालिनी भारतवंशी प्रधानाध्यापिका एवं 7 वर्षीय दक्षिता भारतवंशी उप प्रधानाध्यापिका नियुक्त की गईं है. प्रतिदिन सुभाष भवन में निरक्षर महिलाओं को साक्षर बनाने के लिए कक्षा चलाई जा रही हैं. जो बुजुर्ग महिलायें चलने-फिरने में असक्षम हैं, बच्चे उनके घर जाकर उन्हें साक्षर बना रहे हैं. बिना किसी सरकारी मदद के चलने वाला अक्षर स्कूल 15 दिन का क्रैश कोर्स चलाकर दादा-दादी को पढ़ाना और हस्ताक्षर करना सिखा रहा है.

जब बुजुर्ग महिलाओं को अक्षर का ज्ञान हो जायेगा तो बुजुर्ग महिलाओं को मोबाइल चलाने का भी प्रशिक्षण दिया जायेगा. विशाल भारत संस्थान एवं अक्षर स्कूल के संस्थापक डॉ. राजीव श्रीवास्तव ने कहा कि जल्द ही लमही गांव के प्रत्येक सदस्य को निरक्षता के कलंक से मुक्त करायेंगे. कुछ ही दिन में यह बनारस का पहला गांव होगा, जो सम्पूर्ण साक्षर होगा. पढ़ने में बुजुर्गों का मन लगे इसके लिये पूरी व्यवस्था की जा रही है. प्रतिदिन होमवर्क दिया जायेगा.

बच्चों द्वारा पढ़ाये जाने पर उनको संकोच भी नहीं होगा. हर घर साक्षर बनेगा तभी विशाल भारत संस्थान का संकल्प पूरा होगा. अक्षर स्कूल की प्रधानाध्यापिका शालिनी भारतवंशी ने कहा कि अक्षर स्कूल में 15 बच्चे प्रतिदिन पढ़ायेंगे. अक्षर स्कूल में अब तक 21 बुजुर्ग महिलाओं ने एसमिशन लिया है.

वाराणसी: कहते हैं कि बच्चे देश का भविष्य हैं. इस कहावत को धरातल पर उतारने का बीड़ा नन्हे-मुन्हे बच्चों ने उठाया है. जी हां, वाराणसी में मशहूर उपन्यासकार मुंशी प्रेमचन्द के गांव लमही में बच्चे बन बैठे हैं टीचर और बुजुर्ग बने हैं स्टूडेंट.

निरक्षर बनेंगे साक्षर
लमही गांव में कई व्यस्क और बुजुर्ग ऐसै हैं, जिनका शिक्षा से कोई लेना-देना नहीं है. गांव में विशाल भारत संस्थान के सहयोग से अक्षर नाम का एक स्कूल खोला गया है. अक्षर स्कूल का मिशन है कि 15 दिन में 50 से 100 साल के उन निरक्षर लोगों को साक्षर बनाना जो अपना नाम तक लिखना नहीं जानते हैं और न ही पढ़ना-लिखना जानते हैं.

मुंशी प्रेमचन्द का गांव बनेगा साक्षर.

बच्चे बने अध्यापक
80 वर्षीय बिटुना और 60 वर्षीय नगीना खातून जैसी कई बुजुर्ग महिलायें हैं, जिनका अक्षर से कभी पाला नहीं पड़ा है. अक्षर स्कूल बिटुना दादी और नगीना खातून को न सिर्फ साक्षर बनायेगा, बल्कि मोबाइल और इन्टरनेट चलाना भी सिखाएगा. यह सब कोई पेशेवर लोग नहीं करेंगे, बल्कि विशाल भारत संस्थान के 5 से 13 वर्ष के बच्चे कर दिखायेंगे. बिना सरकारी मदद के लमही गांव को सम्पूर्ण साक्षर बनाने का संकल्प विशाल भारत संस्थान के बच्चों ने लिया है.

15 दिन का क्रैश कोर्स
अक्षर स्कूल में 13 वर्षीय शालिनी भारतवंशी प्रधानाध्यापिका एवं 7 वर्षीय दक्षिता भारतवंशी उप प्रधानाध्यापिका नियुक्त की गईं है. प्रतिदिन सुभाष भवन में निरक्षर महिलाओं को साक्षर बनाने के लिए कक्षा चलाई जा रही हैं. जो बुजुर्ग महिलायें चलने-फिरने में असक्षम हैं, बच्चे उनके घर जाकर उन्हें साक्षर बना रहे हैं. बिना किसी सरकारी मदद के चलने वाला अक्षर स्कूल 15 दिन का क्रैश कोर्स चलाकर दादा-दादी को पढ़ाना और हस्ताक्षर करना सिखा रहा है.

जब बुजुर्ग महिलाओं को अक्षर का ज्ञान हो जायेगा तो बुजुर्ग महिलाओं को मोबाइल चलाने का भी प्रशिक्षण दिया जायेगा. विशाल भारत संस्थान एवं अक्षर स्कूल के संस्थापक डॉ. राजीव श्रीवास्तव ने कहा कि जल्द ही लमही गांव के प्रत्येक सदस्य को निरक्षता के कलंक से मुक्त करायेंगे. कुछ ही दिन में यह बनारस का पहला गांव होगा, जो सम्पूर्ण साक्षर होगा. पढ़ने में बुजुर्गों का मन लगे इसके लिये पूरी व्यवस्था की जा रही है. प्रतिदिन होमवर्क दिया जायेगा.

बच्चों द्वारा पढ़ाये जाने पर उनको संकोच भी नहीं होगा. हर घर साक्षर बनेगा तभी विशाल भारत संस्थान का संकल्प पूरा होगा. अक्षर स्कूल की प्रधानाध्यापिका शालिनी भारतवंशी ने कहा कि अक्षर स्कूल में 15 बच्चे प्रतिदिन पढ़ायेंगे. अक्षर स्कूल में अब तक 21 बुजुर्ग महिलाओं ने एसमिशन लिया है.

Intro:स्पेशल:

रैप से भेजी है।

वाराणसी: बच्चे देश का भविष्य है और अगर यह कुछ करने पर अड़ जाएं तो फिर इनके लिए कोई काम भी नामुमकिन नहीं है और कुछ ऐसे ही नामुमकिन काम को मुमकिन करने का बीड़ा उठाया है प्रधानमंत्री मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी के उन नन्हे मुन्ने बच्चों ने जो अभी खुदई पढ़ रहे हैं कक्षा 2 से लेकर हाई स्कूल इंटर तक 10 बच्चों ने विशाल भारत संस्थान के सहयोग से शुरू किया है. अक्षर स्कूल जिस स्कूल का मिशन है 15 दिन में 50 से 100 साल के उन निरक्षर लोगों को साक्षर बनाने का जोना ही अपना नाम लिखना जानते हैं और ना ही कुछ पढ़ना लिखना.Body:वीओ-01 महान उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द के गांव लमही में 88 वर्षीय बिटुना और 60 वर्षीय नगीना खातून जैसी कई बुजुर्ग महिलायें हैं जिनका अक्षर से कभी पाला नहीं पड़ा. दुनिया के पटल पर साहित्य के लिये जाना जाने वाला लमही गांव अभी भी निरक्षरता से जूझ रहा है, लेकिन अब अक्षर स्कूल बिटुना दादी और नगीना खातून को न सिर्फ साक्षर बनायेगा, बल्कि मोबाइल और इन्टरनेट चलाना भी सिखाएगा और यह सब कोई पेशेवर लोग नहीं करेंगे, बल्कि विशाल भारत संस्थान के 5 से 13 वर्ष के बच्चे कर दिखायेंगे. बिना सरकारी मदद के लमही गांव को सम्पूर्ण साक्षर बनाने का संकल्प विशाल भारत संस्थान के बच्चों ने लिया है.

इस स्कूल में 13 वर्षीय शालिनी भारतवंशी प्रधानाध्यापिका एवं 7 वर्षीय दक्षिता भारतवंशी उप प्रधानाध्यापिका नियुक्त की गयीं. अब प्रतिदिन सुभाष भवन में निरक्षर महिलाओं को साक्षर बनाने के लिए कक्षा चलायी जा रही हैं, जो बुजुर्ग महिलायें चलने-फिरने में असक्षम हैं, बच्चे उनके घर जाकर साक्षर बना रहे हैं. बिना सरकारी मदद के चलने वाला अक्षर स्कूल 15 दिन का क्रैष कोर्स चलाकर दादा-दादी को पढ़ाना और हस्ताक्षर करना सिखा रहा है. जब अक्षर ज्ञान हो जायेगा तो बुजुर्ग महिलाओं को मोबाइल चलाने का भी प्रशिक्षण भी दिया जायेगा.

Conclusion:वीओ-02 विशाल भारत संस्थान एवं अक्षर स्कूल के संस्थापक डॉ राजीव श्रीवास्तव ने कहा कि जल्द ही लमही गांव के प्रत्येक सदस्य को निरक्षता के कलंक से मुक्त करायेंगे. कुछ ही दिन में यह बनारस का पहला गांव होगा, जो सम्पूर्ण साक्षर होगा. पढ़ने में बुजुर्गों का मन लगे इसके लिये पूरी व्यवस्था की जा रही है. प्रतिदिन होमवर्क दिया जायेगा. बच्चों के द्वारा पढ़ाये जाने से उनको संकोच भी नहीं होगा. हर घर साक्षर बनेगा तभी विशाल भारत संस्थान का संकल्प पूरा होगा. अक्षर स्कूल की प्रधानाध्यापिका शालिनी भारतवंशी ने कहा कि अक्षर स्कूल में 15 बच्चे प्रतिदिन पढ़ायेंगे. अक्षर स्कूल में अबतक 21 बुजुर्ग महिलाओं ने एसमिशन लिया है.

बाईट- डॉ राजीव श्रीवास्तव, संस्थापक, विशाल भारत संस्थान
बाईट- शालिनी भारतवंशी, प्रधानाध्यापिका, अक्षर स्कूल

गोपाल मिश्र

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