वाराणसी: संस्कृत को बढ़ावा देने और उसके संरक्षण-संवर्धन की दिशा में वाराणसी में स्थित डॉ. संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय की तरफ से लंबे वक्त से प्रयास जारी है. यहां पढ़ने आने वाले छात्र एवं छात्राओं द्वारा संस्कृत का ज्ञान लेकर देश-विदेश में संस्कृत को मजबूत करने का प्रयास किया जा रहा है. इस क्रम में गुरुवार को यूनिवर्सिटी के 37वें दीक्षांत समारोह में शिरकत करने राज्यपाल आनंदीबेन पहुंचीं.
उन्होंने छात्र-छात्राओं को संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए धन्यवाद देकर इसे आगे बढ़ाए जाने की अपील की. इस मौके पर राज्यपाल के हाथों 32 छात्रों को विभिन्न नामों से कुल 57 पदक प्रदान किए गए. 10 पदक पाने वाले स्वामी अद्भुत बल्लभ दास ने अपनी इस उपलब्धि का श्रेय गुरुजन को दिया.
राज्यपाल ने छात्रों को किया पुरस्कृत
- संपूर्ण विश्व में संस्कृत के लिए अपनी एक अलग पहचान रखने वाले संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना 1971 में की गई थी.
- वर्तमान में इस विश्वविद्यालय से संबद्ध कई संस्कृत महाविद्यालय उत्तर प्रदेश सहित देश के अनेक राज्यों में संचालित किए जा रहे हैं.
- इस मौके पर गुरुवार को 37वें दीक्षांत समारोह में राज्यपाल आनंदीबेन ने शिरकत की.
- राज्यपाल की मौजूदगी में छात्र-छात्राओं को विभिन्न उपाधियां और मेडल प्रदान किए गए.
- इस समारोह में तीन दशक बाद महामहोपाध्याय की उपाधि संत स्वामी शरणानंद जी महाराज को दी गई.
- डीलिट की उपाधि विश्व में संस्कृत भाषा के पुनर्जागरण के लिए संस्कृत भारती के संस्थापक पद्मश्री चमू कृष्ण शास्त्री को दी गई.
मैं स्वामीनारायण संप्रदाय से जुड़ा हुआ हूं. इस उपलब्धि को हासिल करने के बाद इस समुदाय से जुड़े जो भी ग्रंथ व संस्कृत की अन्य कृतियां हैं, उन पर शोध कर उनके प्रकाशन का कार्य कर समाज में अपने संप्रदाय का प्रचार-प्रसार करना चाहता हूं.
-स्वामी अद्भटबल्लभदास, छात्र