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उन्नाव: सिर्फ भूखे-प्यासे रहना ही नहीं है रमजान, जानिए इसका असली पैगाम

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Published : May 17, 2019, 10:56 PM IST

Updated : May 17, 2019, 11:47 PM IST

शहर काजी के मुताबिक, अगर कोई इंसान सिर्फ भूखा-प्यासा रहकर बुरे कामों को नहीं छोड़ता तो उसका रोजा नहीं रहता, वह फाका कहलाता है. भूखे-प्यासे रहकर अपने शरीर को तकलीफ पहुंचाना भी अल्लाह के नजदीक जुर्म है.

अल्लाह की इबादत के लिए माहे रमजान

उन्नाव: अल्लाह की इबादत के लिए माहे रमजान को बरकतों का महीना माना जाता है. अल्लाह की इबादत में सिर्फ भूखा रहना ही रोजा नहीं होता. यह हर बुराई से दूर रहकर अल्लाह के बताए गए नेक रास्ते पर चलने और इंसानियत के दर्द को महसूस कर मजदूरों और गरीबों की मदद की सीख देता है. इफ्तार में भाईचारा की मिसाल कायम होती है. यह जानकारी जामा मस्जिद के इमाम मोहम्मद वसीक ने दी.

जानिए रमजान में रोजों का असली पैगाम.

जामा मस्जिद के इमाम मोहम्मद वसीक ने रोजों को लेकर कही ये बातें-

  • उन्होंने बताया कि इस्लाम के मुताबिक रमजान के दिनों का एक-एक मिनट बहुत कीमती होता है.
  • इस महीने को रहमत-बरकत और मगफिरत का महीना माना जाता है.
  • इस पूरे महीने के दिन-दिनभर मुसलमान भूख-प्यास को बर्दाश्त करते हुए हर बुरे काम से बचते हुए अल्लाह के हुक्म को मानते हुए उसे राजी करने की कोशिश करते हैं.
  • अल्लाह ने मुसलमानों पर रोजे इसलिए फर्ज फरमाए हैं, जिससे इंसान के अंदर तक वह पैदा हो सके.

क्या बोले शहर के काजी

  • शहर काजी के मुताबिक, अगर कोई इंसान सिर्फ भूखा-प्यासा रहकर बुरे कामों को नहीं छोड़ता तो उसका रोजा नहीं रहता, वह फाका कहलाता है.
  • भूखे-प्यासे रहकर अपने शरीर को तकलीफ पहुंचाना भी अल्लाह के नजदीक जुर्म है.
  • अल्लाह को ऐसे लोगों के रोजे पसंद नहीं, जो बुरे काम न छोड़ें और उनके हुक्म को तोड़ें.
  • ऐसे लोगों से अल्लाह नाराज होते हैं.
  • अल्लाह की इबादत में बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक कोई पीछे नहीं है.
  • नियम के साथ सहरी और इफ्तार से लेकर नमाज तरावीह तकरीर में सभी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं.

उन्नाव: अल्लाह की इबादत के लिए माहे रमजान को बरकतों का महीना माना जाता है. अल्लाह की इबादत में सिर्फ भूखा रहना ही रोजा नहीं होता. यह हर बुराई से दूर रहकर अल्लाह के बताए गए नेक रास्ते पर चलने और इंसानियत के दर्द को महसूस कर मजदूरों और गरीबों की मदद की सीख देता है. इफ्तार में भाईचारा की मिसाल कायम होती है. यह जानकारी जामा मस्जिद के इमाम मोहम्मद वसीक ने दी.

जानिए रमजान में रोजों का असली पैगाम.

जामा मस्जिद के इमाम मोहम्मद वसीक ने रोजों को लेकर कही ये बातें-

  • उन्होंने बताया कि इस्लाम के मुताबिक रमजान के दिनों का एक-एक मिनट बहुत कीमती होता है.
  • इस महीने को रहमत-बरकत और मगफिरत का महीना माना जाता है.
  • इस पूरे महीने के दिन-दिनभर मुसलमान भूख-प्यास को बर्दाश्त करते हुए हर बुरे काम से बचते हुए अल्लाह के हुक्म को मानते हुए उसे राजी करने की कोशिश करते हैं.
  • अल्लाह ने मुसलमानों पर रोजे इसलिए फर्ज फरमाए हैं, जिससे इंसान के अंदर तक वह पैदा हो सके.

क्या बोले शहर के काजी

  • शहर काजी के मुताबिक, अगर कोई इंसान सिर्फ भूखा-प्यासा रहकर बुरे कामों को नहीं छोड़ता तो उसका रोजा नहीं रहता, वह फाका कहलाता है.
  • भूखे-प्यासे रहकर अपने शरीर को तकलीफ पहुंचाना भी अल्लाह के नजदीक जुर्म है.
  • अल्लाह को ऐसे लोगों के रोजे पसंद नहीं, जो बुरे काम न छोड़ें और उनके हुक्म को तोड़ें.
  • ऐसे लोगों से अल्लाह नाराज होते हैं.
  • अल्लाह की इबादत में बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक कोई पीछे नहीं है.
  • नियम के साथ सहरी और इफ्तार से लेकर नमाज तरावीह तकरीर में सभी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं.
Intro:अल्लाह की इबादत के लिए माहे रमजान को बरकतों का महीना माना जाता है अल्लाह की इबादत में सिर्फ भूखा रहना ही रोजा नहीं होता रोजा हर बुराई से दूर रहकर अल्लाह के बताए गए नेक रास्ते पर चलने और इंसानियत के दर्द को महसूस कर मजदूरों और गरीबों की मदद की सीख देता है इफ्तार में भाईचारा की मिसाल कायम हो रही है।


Body:यह जानकारी जामा मस्जिद के इमाम मोहम्मद वसीक ने नमाज के बाद दी उन्होंने बताया कि इस्लाम के मुताबिक रमजान के दिनों का एक-एक मिनट बहुत कीमती होता है इस महीने को रहमत बरकत और मगफिरत का महीना माना जाता है इस पूरे महीने के दिन दिनभर में मुसलमान भूख प्यास को बर्दाश्त करते हुए हर बुरे काम से बचते हुए अल्लाह के हुक्म को मानते हुए उसे राजी करने की कोशिश करता है अल्लाह ने मुसलमानों पर रोजे इसलिए फर्ज फरमाए हैं जिससे इंसान के अंदर तक वह पैदा हो सके।


बाइट:--मोहम्मद वसीक इमाम ज़ामा मस्जिद उन्नाव

शहर काजी के मुताबिक अगर कोई इंसान सिर्फ भूखा प्यासा रहकर बुरे कामों को नहीं छोड़ता तो उसका रोजा नहीं रहता वह फाका कहलाता है थका यानी भूखे प्यासे रहकर अपने शरीर को तकलीफ पहुंचाना खुद को तकलीफ पहुंचाना भी अल्लाह के नजदीक जुर्म है अल्लाह को ऐसे लोगों के रोजे पसंद नहीं जो बुरे काम ना छोड़े और उसके हुक्म को तोड़े ऐसे लोगों से अल्लाह नाराज होता है अल्लाह की इबादत में बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक कोई पीछे नहीं है नियम के साथ सहरी और इफ्तार से लेकर नमाज तरावीह तकरीर में सभी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं बच्चे हो या बुजुर्ग सभी का कहना है कि अल्लाह की इबादत में सहनशक्ति इतनी बढ़ जाती है कि भूख प्यास का अहसास ही नहीं होता।

बाइट :---शहर काजी जामा मस्जिद उन्नाव


Conclusion:
Last Updated : May 17, 2019, 11:47 PM IST
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