सुल्तानपुर: कभी अवध क्षेत्र अयोध्या, प्रयाग, वाराणसी और लखनऊ जैसे महानगरों को बाध की आपूर्ति करने में अव्वल रहे सुल्तानपुर में यह लघु उद्योग आज अंतिम सांसे गिन रहा है. सांसद मेनका गांधी और पूर्व सांसद वरुण गांधी की पहल पर बाधमंडी का ढांचा तो तैयार हो गया, लेकिन इसे संचालित करने का प्रयास विधायक और स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों में नहीं दिख रहा है. कामगीर बेरोजगार हो चले हैं. फुटपाथ पर अपनी बाधमंडी लगाने को मजबूर हैं.
भुखमरी की कगार पर लघु उद्योग के कारीगर बाध कारोबार के लिए सुल्तानपुर की पुरानी पहचान रही है. यहां का निषाद परिवार रेलवे पथ और राजमार्ग के किनारे होने वाले सरपत से मूंज की निकासी करता था, उसे तैयार करता रहा और बाध का निर्माण करता रहा. लेकिन स्थानीय जनप्रतिनिधि जिसमें विधायक, जिला पंचायत सदस्य, प्रधान समेत अन्य लोग शामिल रहे. आज तक इनके कारोबार के जीर्णोद्धार के लिए सार्थक प्रयास नहीं किए.कारीगर लखराजी कहती हैं कि बाध मंडी शुरू हो जाए तो हम लोगों को बड़ी राहत मिल जाएगी. वहीं दूसरी कारीगर सुखलली का कहना है कि सांसद की तरफ से एक बार पहल की गई. इसके बाद हम लोगों को न शौचालय मिला, न आवास मिला और न ही सरकार की तरफ से लागू किसी योजना का फायदा. मैं विधवा तीन बच्चों को लेकर किसी तरह खा कमा रही हूं. पांचोपीरन गांव के पूर्व प्रधान जुबेर अहमद कहते हैं कि मेनका गांधी की पहल पर बाध मंडी का निर्माण हुआ है. इसे चलना चाहिए. गरीब मजलूम लोगों को इसका लाभ मिलना चाहिए.वन डिस्टिक वन प्रोडक्ट के तहत बाध मूंज कारोबार को शामिल किया गया है. इसके तहत लोन योजना है. सेंट्रलाइज फैसिलिटी योजना, मार्केटिंग एंड ब्रांडिंग स्कीम है. यह सारी स्कीम इस काम करने वाले लोगों के लिए ही सरकार की तरफ से लागू किए हैं. अन्य उत्पादन करने वाली सामग्रियों को मिलने वाली सहायता की तरह इस कारोबार को भी इसी पहल में शामिल किया गया है. समीक्षा के दौरान भी इस पर विचार विमर्श होता है. बैंक या अन्य कहीं पर आ रही समस्या का प्रमुखता से समाधान किया जाता है.यही स्थिति प्रशासनिक अधिकारियों की भी देखी गई. मेनका गांधी के हस्तक्षेप पर जिला उद्योग केंद्र को इसकी जिम्मेदारी दी गई. आसानी से लोन उपलब्ध कराने को कहा गया. सरल किस्तों में लोन देने की व्यवस्था की गई, लेकिन यह सब फाइलों से आज तक निकल नहीं सकी. हकीकत की पड़ताल जब ईटीवी भारत ने की तो किसी भी कामगीर ने लोन नहीं मिलने की बात कही.सुल्तानपुर शहर के आसपास के इलाके में 50000 की ऐसी आबादी है, जो बाध और मूंज का कारोबार करती है दिन भर यह कच्ची सामग्री एकत्र करते हैं. सड़क पर गट्ठर बिछाते हैं. गाड़ियों से कुचलकर रेशा तैयार करते हैं. इसके बाद बाद बनाने की प्रक्रिया शुरू होती है, लेकिन सरकारी सहूलियत और मंडी स्थल नहीं होने से 2 तिहाई से अधिक लोगों ने कारोबार से तोबा कर लिया है.