सुलतानपुर: ईंट-भट्ठा व्यवसायियों को कोयले के पीछे मिलने वाली सरकारी मदद ने जिम्मेदारी तय किए गए अफसरों के चेहरे पर ही कालिख पोत दी है. 327 के सापेक्ष महज 26 कारोबारियों को सब्सिडी दिए जाने के प्रकरण ने योजना के क्रियान्वयन और विश्वसनीयता पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं. प्रचार-प्रसार के अभाव में येन केन प्रकरण योजना में चंद व्यवसायियों को शामिल कर उसकी इतिश्री कर दी गई और दो तिहाई से अधिक व्यवसायी प्रदेश सरकार की इस पहल से वंचित रह गए.
यह थी योजना
ईंट-भट्ठा कारोबार व्यवसायियों के लिए घाटे का सौदा बनता जा रहा है. बे-मौसम बरसात, श्रमिकों के काम करने के दौरान सख्त हुए नियम-कायदे और इंटरलॉकिंग के सापेक्ष ईंट की घटी मांग ने ईंट-भट्ठा कारोबार को धराशाई कर दिया है. इस कारोबार को बचाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने सत्र 2019-20 में कोयले के पीछे 30 प्रतिशत की सब्सिडी देने का निर्णय लिया था. इसके लिए मालगाड़ी के जरिए से स्टॉक मंगाकर उसे ट्रकों के जरिए भट्ठे तक पहुंचाने की व्यवस्था यूपी कोऑपरेटिव फेडरेशन लिमिटेड को दी गई थी.
पीसीएफ के सिर था दारोमदार
यूपी कोऑपरेटिव फेडरेशन लिमिटेड को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई थी. पंजीकरण कराने के लिए प्रचार-प्रसार अभियान चलाने को कहा गया, लेकिन 327 पंजीकृत ईंट-भट्ठा कारोबारियों में से महज 26 का रजिस्ट्रेशन सब्सिडी प्रक्रिया में किया जा सका. ऐसे में 301 कारोबारी इस सरकारी कवायद से वंचित रह गए.