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दम तोड़ता बाध कारोबार, वन डिस्टिक वन प्रोडक्ट हुआ लाचार

सुलतानपुर में बाध कारोबार दशक भर बाद भी तकनीकी से नहीं जुड़ सका है. इन बाध निषाद समुदाय के कारोबारियों को सरकारी योजनाओं का लाभ तक नहीं मिल पा रहा है. कारीगरों का कहना है कि वह इस कारोबार से अपने बच्चों का पालन पोषण तक ठीक से नहीं कर पा रहे हैं.

वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट सुलतानपुर
वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट सुलतानपुर
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Published : Feb 19, 2021, 4:54 PM IST

सुलतानपुर: जिले में गोमती नदी की तलहटी पर बसे इन सैकड़ों परिवार के आगे आज भी लाचारी, बेकारी और बेरोजगारी मुंह फैलाए खड़ी हुई है. बाध कारोबार दशक भर बाद भी तकनीकी से नहीं जुड़ सका है. इनके पास न तो प्रधानमंत्री आवास योजना की आहट पहुंची है और न ही स्वच्छ भारत मिशन का पैगाम. सुल्तानपुर के बल्दीराय, सुलतानपुर, जयसिंहपुर विधानसभा क्षेत्र में निषाद समुदाय का बसेरा है. यह बड़े पैमाने पर इनके परिवार पल रहे हैं, लेकिन रोजगार का कोई सहारा नहीं है.

कारीगरों को नहीं मिल पा रहा सरकारी योजनाओं का लाभ

वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट आने के बाद इनकी आंखों में एक बार चमक तो आई थी, लेकिन वह चमक आज तक सपना ही बनी हुई है. न तो तकनीक मिली और न ही मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की अति महत्वकांक्षी आवास, सड़क और पेयजल योजनाओं का लाभ.


घर में तैयार होता कच्चा माल

कारीगर सुखराम निषाद जंगल से कच्चे मैट्रियल लाते हैं. उसे कूट कर तैयार करते हैं. कच्चे सामान को तैयार करने में लगभग एक महीना लग जाता है. यह किसी तरह जीवन यापन कर रहे हैं. इन्हें सरकार की योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है. कारीगर लूटा देवी कहती हैं कि आज तक किसी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है. बाध तैयार करके किसी तरह वह जीवन यापन कर रहे हैं.


15 सौ रुपए में बच्चे का खर्च निकाले या अपना
महिला कारीगर इंद्रावती नाम ने कहा कि "बाध ले जाने और लाने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है. बेचने में भी बड़ी परेशानियां होती हैं. हम बाध के अलावा अन्य कोई रोजगार करना चाहते हैं. रातभर जाग-जाग कर दो-तीन महीने में हम बाध तैयार करते हैं. इसके सिर्फ हजार से 15 सौ रुपए ही मिलते हैं. इससे अपने बच्चों का पालन पोषण करें या अपना खर्च निकाले." वहीं रीना देवी बतौर कारीगर कहती हैं कि "इसमें कोई फायदा नहीं है. हम लोग दूसरों की खेती करते हैं. दूसरों के घर जाकर मजदूरी करते हैं. बाध कारोबार में अब मुनाफा नहीं रह गया है."


छत्रिय स्कीम से खबर होंगे लाभार्थी

जिलाधिकारी रवीश गुप्ता ने बताया कि वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट के तहत छतरी स्कीम लागू की गई है, जिसके तहत सभी मिलकर यदि कोई मशीन लगाना चाहे तो लगा सकते हैं. उन्हें पूरा प्रोत्साहन और सहयोग दिया जाता है. इसमें मार्केटिंग और ब्रांडिंग की भी स्कीम शामिल है. हालांकि कोरोना काल में यह कार्य बेहतरीन ढंग से नहीं हो पाया था. तत्कालीन सांसद वरुण गांधी की तरफ से बाजार का निर्माण कराया गया. वहां पर कार्य तेजी से करने के प्रयास किए जा रहे हैं.

प्रतिनिधि सांसद रंजीत कुमार ने कहा कि कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही से सांसद मेनका गांधी की बातचीत हुई है. पत्र को उन्होंने संज्ञान लिया है. कार्रवाई शुरू की गई है. सचिव नवनीत सहगल से भी बात हुई है. पूरा स्टीमेट तैयार किया गया है. लाभार्थियों को भरपूर सहयोग देने का प्रयास किया जा रहा है.

सुलतानपुर: जिले में गोमती नदी की तलहटी पर बसे इन सैकड़ों परिवार के आगे आज भी लाचारी, बेकारी और बेरोजगारी मुंह फैलाए खड़ी हुई है. बाध कारोबार दशक भर बाद भी तकनीकी से नहीं जुड़ सका है. इनके पास न तो प्रधानमंत्री आवास योजना की आहट पहुंची है और न ही स्वच्छ भारत मिशन का पैगाम. सुल्तानपुर के बल्दीराय, सुलतानपुर, जयसिंहपुर विधानसभा क्षेत्र में निषाद समुदाय का बसेरा है. यह बड़े पैमाने पर इनके परिवार पल रहे हैं, लेकिन रोजगार का कोई सहारा नहीं है.

कारीगरों को नहीं मिल पा रहा सरकारी योजनाओं का लाभ

वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट आने के बाद इनकी आंखों में एक बार चमक तो आई थी, लेकिन वह चमक आज तक सपना ही बनी हुई है. न तो तकनीक मिली और न ही मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की अति महत्वकांक्षी आवास, सड़क और पेयजल योजनाओं का लाभ.


घर में तैयार होता कच्चा माल

कारीगर सुखराम निषाद जंगल से कच्चे मैट्रियल लाते हैं. उसे कूट कर तैयार करते हैं. कच्चे सामान को तैयार करने में लगभग एक महीना लग जाता है. यह किसी तरह जीवन यापन कर रहे हैं. इन्हें सरकार की योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है. कारीगर लूटा देवी कहती हैं कि आज तक किसी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है. बाध तैयार करके किसी तरह वह जीवन यापन कर रहे हैं.


15 सौ रुपए में बच्चे का खर्च निकाले या अपना
महिला कारीगर इंद्रावती नाम ने कहा कि "बाध ले जाने और लाने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है. बेचने में भी बड़ी परेशानियां होती हैं. हम बाध के अलावा अन्य कोई रोजगार करना चाहते हैं. रातभर जाग-जाग कर दो-तीन महीने में हम बाध तैयार करते हैं. इसके सिर्फ हजार से 15 सौ रुपए ही मिलते हैं. इससे अपने बच्चों का पालन पोषण करें या अपना खर्च निकाले." वहीं रीना देवी बतौर कारीगर कहती हैं कि "इसमें कोई फायदा नहीं है. हम लोग दूसरों की खेती करते हैं. दूसरों के घर जाकर मजदूरी करते हैं. बाध कारोबार में अब मुनाफा नहीं रह गया है."


छत्रिय स्कीम से खबर होंगे लाभार्थी

जिलाधिकारी रवीश गुप्ता ने बताया कि वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट के तहत छतरी स्कीम लागू की गई है, जिसके तहत सभी मिलकर यदि कोई मशीन लगाना चाहे तो लगा सकते हैं. उन्हें पूरा प्रोत्साहन और सहयोग दिया जाता है. इसमें मार्केटिंग और ब्रांडिंग की भी स्कीम शामिल है. हालांकि कोरोना काल में यह कार्य बेहतरीन ढंग से नहीं हो पाया था. तत्कालीन सांसद वरुण गांधी की तरफ से बाजार का निर्माण कराया गया. वहां पर कार्य तेजी से करने के प्रयास किए जा रहे हैं.

प्रतिनिधि सांसद रंजीत कुमार ने कहा कि कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही से सांसद मेनका गांधी की बातचीत हुई है. पत्र को उन्होंने संज्ञान लिया है. कार्रवाई शुरू की गई है. सचिव नवनीत सहगल से भी बात हुई है. पूरा स्टीमेट तैयार किया गया है. लाभार्थियों को भरपूर सहयोग देने का प्रयास किया जा रहा है.

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