कुशीनगर: सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी कुशीनगर में रसूखदारों द्वारा किए जा रहे किसान क्रय केंद्रों (farmer purchasing centers) में फर्जीवाड़े पर कुछ खास असर नहीं दिख रहा है, क्योंकि अब गरीबों के नाम पर जिले के क्रय केन्द्रों पर ऐसे लोगों के नाम पर करोड़ों का अनाज बेचने का मामला सामने आया हैं, जिनके पास खाने भर का भी अनाज पैदा नहीं होता. उनकी जिंदगी मजदूरी करके चल रही है. वे अंत्योदय व पात्र गृहस्थी कार्ड धारक हैं.
शासन ने एनआईसी के बायोमेट्रिक मिलान के बाद जिले में ऐसे 900 से ज्यादा कार्ड धारकों को चिन्हित कर नोटिस भेजा है, जिनके नाम पर बीते खरीद सत्र 2020-21 में 3 लाख या उससे ज्यादा की गेहूं-धन की बिक्री की गई है. यदि जांच दायरा एक लाख रुपये और बड़े मिल वालों व गल्ला व्यवसाय से जुड़े लोगों को लाया जाए, तो गरीबों के नाम पर जिले में की गई गोलमाल की रकम अरब रुपये के आकड़ों को भी छू लेगी.
बता दें एनआईसी लखनऊ ने बायोमैट्रिक जांच के दौरान पाया कि कुशीनगर जनपद के 900 से ज्यादा अंत्योदय व पात्र गृहस्थी कार्डधारक ऐसे हैं, जो खरीद वर्ष 2020-21 में तीन लाख से लेकर 6.5 लाख रुपये से ज्यादा का धान-गेहूं न्यूनतम समर्थन योजना के तहत सरकारी क्रय केंद्रों पर बेचे हैं. यही नहीं यह कार्ड धारक वर्ष भर सार्वजनिक वितरण प्रणाली के कोटे की दुकानों से राशन भी उठाते रहे हैं.
एनआईसी लखनऊ द्वारा यह घालमेल पकड़े जाने के बाद 17 अगस्त को आयुक्त खाद्य एवं रसद, जवाहर भवन लखनऊ ने जिला पूर्ति अधिकारी कुशीनगर को पत्र भेज दिया. पूर्ति विभाग ने इन कार्ड धारकों को एक नोटिस भी भेज दिया है, लेकिन आयुक्त का पत्र आते ही सरकारी क्रय एजेंसियों व जिम्मेदारों के हाथ-पैर फूल गए हैं और मामले को किसी तरह से मैनेज करने का खेल शुरू हो गया है.
कारण यह जिन कार्ड धारकों का नाम एनआईसी लखनऊ ने भेजा है और जिनको पूर्ति विभाग ने कार्ड निरस्त करने का नोटिस दिया है, वह सभी गरीब तपके से आते हैं. किसी के पास 8 कट्ठा खेत है तो कोई रेहन-बटाई का खेत जोतकर अपने कुनबे का पेट भरता है. इनमें किसी-किसी के खेत में पूरे वर्ष खाने भर के लिए अनाज पैदा होता है. अधिकतर लोगों को सरकारी राशन के भरोसे या बाजार से अनाज खरीदने पर रोटी मिलती है. दुदही ब्लॉक के जंगल लुअठहा गांव के निवासी मुर्तुजा हुसेन के पास महज 8 कट्ठा खेत है और उनके नाम से वर्ष 2020-21 में 510337.60 रुपये का अनाज बेचा गया.
इसी गांव के त्रिभुवन बताते हैं कि उनके पास एक बीघा जमीन है और इनके नाम से 451308 रुपये का अनाज बेचा गया है. त्रिभुवन का कहना है कि उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है. यह बताने में त्रिभुवन सहम जाते हैं. बंधु के नाम से 501371.20 लाख का अनाज बेचा गया है, जबकि बंधु खुद बताते हैं कि दो बीघा रेहन और दो बीघा बटाई लेकर काम चलाते हैं.
अमीर के नाम से 464011.20 रुपये का अनाज बेचा गया है. अमीर के मुताबिक, उनके पास ढाई बीघा खेती है. किसी तरह से भोजन भर के लिए धान-गेहूं पैदा हो जाता है. अनाज बेचने के सवाल पर वह कुछ बात छिपाने की कोशिश करते हैं, लेकिन उनका लड़का वाहिद उनकी बात को काट देता है और साफ-साफ बताता है कि खाने भर के लिए अनाज नहीं होता है तो बेचेंगे कहां से.
जंगल लुअठहा की जैनुल नेशा के नाम से 674721.60 रुपये का अनाज बेचा गया है, जबकि जिले में शायद ही कोई ऐसा काश्तकार होगा, जो इतने रुपये का धान अथवा गेहूं पैदा करता होगा. कुल मिलाकर इस गांव के करीब एक दर्जन लोगों का नाम एनआईसी की सूची में है, जिनके नाम से 4 से 6.74 लाख रुपये से ज्यादा का अनाज बेचा गया है और यह सभी गरीबी रेखा के आस-पास जीवन यापन कर रहे हैं. यही हाल जिले के अन्य विकास खंडों का है, जहां गरीबों को मोहरा बनाकर बड़ा खेल-खेला गया है.
एनआईसी लखनऊ द्वारा केवल 3 लाख रुपये या इससे ऊपर धान-गेहूं बेचने वाले कार्ड धारकों का बायोमैट्रिक मिलान किया है, जिसमें 900 लोगों के नाम आए. जांच के दायरे में एक लाख से ऊपर गेहूं-धान बेचने वाले कार्ड धारकों को भी शामिल कर लिया जाय, तो गरीबों को मोहरा बनाकर बड़े मिलरों व रसूखदारों द्वारा खरीद वर्ष 2020-21 में खेले गए खेल की रकम एक अरब को छूने लगेगी. बता दें कुशीनगर जनपद के ज्यादातर किसान गन्ना, केला व सब्जी की खेती करते हैं. धान-गेहूं की खेती जरूरत भर के लिए करते हैं.
कुशीनगर जनपद के डिप्टी आरएमओ विनय प्रताप सिंह का कहना है कि ऐसा कतई सम्भव नहीं है कि जिसके पास खेत नहीं है. वह लाखों रुपये का धान-गेहूं बेच सके, इसके लिए नियम बनाए गये हैं. जांच चल रही है, नियम का उल्लंघन करके अनाज खरीदने व बेचने वालों के विरुद्ध कार्रवाई होगी, चाहे कोई हो.
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