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मनोज मुंतशिर ने किया अजमल को याद, जानिए क्यों दी दाद - अनहद कार्यक्रम का आगाज

यूपी के सुलतानपुर जिले में संवाद लेखक मनोज मुंतशिर ने अनहद कार्यक्रम का आगाज किया. रोटरी क्लब की तरफ से अनहद कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. मनोज मुंतशिर ने कहा कि 27 फरवरी को प्रख्यात साहित्यकार अजमल सुलतानपुरी के नाम से जाना जाएगा.

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मनोज मुंतशिर ने अनहद कार्यक्रम का आगाज किया
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Published : Feb 28, 2021, 8:56 PM IST

सुलतानपुर: बाहुबली फिल्म के संवाद लेखक मनोज मुंतशिर ने अनहद कार्यक्रम का आगाज किया. उन्होंने कहा है कि 27 फरवरी प्रख्यात साहित्यकार अजमल सुलतानपुरी के नाम से जाना जाएगा. इस दिन उनकी याद में साहित्यकारों का सम्मान होगा. उन्होंने कहा कि जब मास्टर मुझे ड से डर पढ़ा रहे थे, उस समय मैं पेड़ पर चढ़कर अ से अमरूद खा रहा था.

मनोज मुंतशिर ने अनहद कार्यक्रम का आगाज किया

रोटरी क्लब ने किया था चैरिटी कार्यक्रम
वीर अब्दुल हमीद निःशुल्क चिकित्सालय संचालन के लिए रोटरी क्लब की तरफ से अनहद कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम का मकसद चैरिटी के जरिए हॉस्पिटल का निःशुल्क संचालन बनाए रखना था. इससे आर्थिक तंगी से जूझ रहे लोगों को इलाज दिया जा सके. साथ ही यह प्रेरणा एक सामाजिक सरोकार की दिशा में आगे बढ़ाई जा सके.

'शेर को नहीं दिखाया जाता चाबुक'
मनोज मुंतशिर ने कहा कि सुलतानपुर से मेरा हिंदी के लिए स्नेह और प्यार शुरू. मेघा से अपनी पहचान सुनिश्चित करने का उद्धरण करते हुए मनोज मुंतशिर ने कहा कि हम जानते हैं कि तुम मुझे पत्थर कहोगे, लेकिन अपनी प्रतिभा से हम चमक कर रहेंगे. शेर के बच्चे को चाबुक दिखा रहे हो और भय पैदा कर रहे हो. जब मास्टर ड से डर पढ़ा रहे थे, उस समय मैं पेड़ पर चढ़कर अ से अमरूद खा रहा था.

सुलतानपुर: बाहुबली फिल्म के संवाद लेखक मनोज मुंतशिर ने अनहद कार्यक्रम का आगाज किया. उन्होंने कहा है कि 27 फरवरी प्रख्यात साहित्यकार अजमल सुलतानपुरी के नाम से जाना जाएगा. इस दिन उनकी याद में साहित्यकारों का सम्मान होगा. उन्होंने कहा कि जब मास्टर मुझे ड से डर पढ़ा रहे थे, उस समय मैं पेड़ पर चढ़कर अ से अमरूद खा रहा था.

मनोज मुंतशिर ने अनहद कार्यक्रम का आगाज किया

रोटरी क्लब ने किया था चैरिटी कार्यक्रम
वीर अब्दुल हमीद निःशुल्क चिकित्सालय संचालन के लिए रोटरी क्लब की तरफ से अनहद कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम का मकसद चैरिटी के जरिए हॉस्पिटल का निःशुल्क संचालन बनाए रखना था. इससे आर्थिक तंगी से जूझ रहे लोगों को इलाज दिया जा सके. साथ ही यह प्रेरणा एक सामाजिक सरोकार की दिशा में आगे बढ़ाई जा सके.

'शेर को नहीं दिखाया जाता चाबुक'
मनोज मुंतशिर ने कहा कि सुलतानपुर से मेरा हिंदी के लिए स्नेह और प्यार शुरू. मेघा से अपनी पहचान सुनिश्चित करने का उद्धरण करते हुए मनोज मुंतशिर ने कहा कि हम जानते हैं कि तुम मुझे पत्थर कहोगे, लेकिन अपनी प्रतिभा से हम चमक कर रहेंगे. शेर के बच्चे को चाबुक दिखा रहे हो और भय पैदा कर रहे हो. जब मास्टर ड से डर पढ़ा रहे थे, उस समय मैं पेड़ पर चढ़कर अ से अमरूद खा रहा था.

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