सोनभद्र: जिले में अनुसूचित जाति और जनजाति की संख्या पूरी आबादी की लगभग 50 प्रतिशत है. सोनभद्र के पूरे भू-भाग का लगभग 47 प्रतिशत हिस्सा जंगल या वन से आच्छादित है. ऐसे में यह लाजमी है कि जंगलों के आस-पास निवास करने वाले गरीब आदिवासी लोग वनों उपज और वन उत्पाद पर ही निर्भर रहते हैं. सोनभद्र के ग्रामीण इलाकों के रहने वाले आदिवासी अपने उपज को बेचकर जीवन यापन करते हैं, लेकिन बाजार के अभाव में उन्हें अपने वन उत्पादों का उचित मूल्य नहीं मिल पाता. ग्रामीण आजीविका मिशन महिलाओं के समूहों को इन वन उपजों को बेचने के लिए बाजार उपलब्ध करा रहा है. महिला समूह इन औषधीय जड़ी-बूटियों का विक्रय ऑनलाइन भी करती हैं. इससे महिलाओं को आर्थिक लाभ ज्यादा मिल रहा है.
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में वन उपज को एकत्रित करने वाली वाले महिलाओं के स्वयं सहायता समूह को राष्ट्रीय बाजार उपलब्ध कराया जा रहा है. अजीब कमीशन ने इनके लिए सोन-बाजार नाम से राबर्ट्सगंज में एक शॉप उपलब्ध कराई है. आजीविका मिशन के जिला प्रबंधक ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों के वनों में मिलने वाले हर्रा, बहेरा, शतावर, मुलेठी, काली तुलसी, महुआ का बीज, चिचली आदि औषधीय जड़ी-बूटियों की बिक्री के लिए बाजार उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है. इसके लिए बाजार उपलब्ध कराया जा रहा है.
ऑनलाइन भी मिल रहा आर्डर
स्वयं सहायता महिला समूह की सदस्य ने बताया कि रॉबर्टसगंज स्थित सोन बाजार से महिलाएं जड़ी-बूटियों का विक्रय कर रही हैं और इसके साथ-साथ महिला समूह इन औषधीय जड़ी-बूटियों का विक्रय ऑनलाइन भी करती हैं. इससे महिलाओं को आर्थिक लाभ ज्यादा मिल रहा है.
महिला समूहों को वन निगम उपलब्ध करा है धनराशि
आजीविका मिशन के प्रबंधक ने बताया कि "वन निगम के सहयोग से दुद्धी और बभनी ब्लाक में जड़ी-बूटियों के संग्रह का काम महिला समूहों द्वारा किया जा रहा है. वन निगम ने महिला समूहों को इन जड़ी बूटियों को पाउडर फार्म में प्रोसेसिंग करने के लिए कई महिला समूहों को 50 हजार का अनुदान भी उपलब्ध कराया है और ट्राइफेड नाम की संस्था इन औषधीय उत्पादों का विपणन भी कर रही है. इससे महिला समूहों को लाभ मिल रहा है और महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन रही है.