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बड़ी रोचक है रक्षाबंधन की कहानी, जानें क्यों मनाया जाता है त्योहार - hindus festival

भारतवर्ष को यूं ही त्‍योहारों का देश नहीं कहा जाता है, पूरे विश्‍व की तुलना में हमारे देश में सबसे अधिक त्‍योहार मनाए जाते हैं. इसी क्रम में रक्षाबंधन का त्योहार भी देश भर में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, इसे मनाने की वजह के पीछे की रोचक कहानी जानने के लिए पढ़िए हमारी ये खास रिपोर्ट...

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वामन धाम मंदिर सीतापुर
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Published : Aug 2, 2020, 7:14 PM IST

सीतापुर: यूपी की राजधानी लखनऊ से 40 किलोमीटर दूर वामन धाम मंदिर स्थित है. वामन धाम सीतापुर जिले के बौनाभारी गांव में मौजूद है. इस पावन धाम से लाखों लोगों की धार्मिक आस्था जुड़ी है. मान्यता है इस मंदिर में भगवान विष्णु के पांचवें अवतार वामन देव प्रतिमा स्थापित हैं. तथ्यों के आधार पर इस धाम का वर्णन वामन पुराण, विष्णु पुरण, स्कन्द पुराण, नरसिंह पुराण, देवी भागवती पुरण और श्रीमद्भागवत महापुराण आदि पुराणों में भी मिलता है.

जानें क्यों मनाया जाता है रक्षाबंधन का त्योहार.

पुराणों के अनुसार इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने त्रेता युग में देवमाता अदिति के गर्भ से वामन रूप में जन्म लिया था. इस स्थान पर हजारों वर्ष पुराना एक पंचवटी वृक्ष मौजूद है. इस पंचवटी वृक्ष की जड़ों के नीचे पांच फनों वाला शेषनाग आज भी निवास करते हैं. वामन धाम में प्रत्येक वर्ष में दो बार विशेष पूजन का आयोजन किया जाता है. इस दौरान लाखों की संख्या में दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं. इस विशेष पूजन के दौरान श्रद्धालुओं को पांच फनों वाले शेषनाग का मूर्त रूप में दर्शन होता है. मान्यता है कि इस धाम में आने वाले श्रद्धालुओं की हर मनोकामना पूरी होती है.

वामन धाम में कई देवताओं ने धारण किया था यज्ञोपवीत
उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में स्थित वामन धाम का वर्णन कई पुराणों में मिलता है. यह स्थान लाखों लोगों की आस्था का प्रतीक है. यहां दूर-दूर से लाखों की संख्या में श्रद्धालु आकर माथा टेकते हैं. मान्यता है कि इस पावन धाम में भगवान शंकर, ब्रम्हा, देवराज इन्द्र सहित समस्त देवताओं ने यज्ञोपवीत धारण किया था. यज्ञोपवीत धारण करने के बाद भगवान विष्णु वामन रूप में महादानी राजा बलि के द्वार पर भिक्षा मांगने गए थे.

भगवान विष्णु ने तीन पग में ही माप लिए थे तीनों लोक
पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु ने सीतापुर जिले में स्थित वामन धाम में यज्ञोपवीत धारण किया था, जिसके बाद भगवान विष्णु वामन रूप धारण करके दानवीर राजा बलि के राज्य सोनिकपुर पहुंचे गए थे. सोनिकपुर स्थान वर्तमान में हरदोई जनपद की सीमा में स्थित है. कथानक के अनुसार जब राजा बलि अश्वमेध यज्ञ की पूर्ण आहुति देने जा रहे थे. उसी समय वामन के अवतार में भगवान विष्णु ने राजा बलि के दरवाजे पर भिक्षा मांगने के लिए दस्तक दी. वामन की आवाज सुनकर राजा बलि बाहर निकल आए. राजा बलि से वामन ने तीन पग भूमि देने की बात कही, जिसके बाद वामन रूपी भगवान विष्णु ने ढाई पग में ही पृथ्वी, आकाश और पाताल लोक माप लिया था. वहीं बचे हुए आधे पग के लिए राजा बलि ने वामन के समक्ष अपने शरीर को प्रस्तुत कर दिया.

मां लक्ष्मी ने राजा बलि की कलाई पर बांधा था रक्षासूत्र
प्रचलित कथाओं के अनुसार राजा बलि की उदारता से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे एक वरदान मांगने को कहा, जिसके बाद राजा बलि ने भगवान विष्णु को अपने महल का द्वारपाल बनाने का वरदान प्राप्त कर लिया. कहा जाता है कि राजा बलि के महल में 52 दरवाजे थे, इन सभी दरवाजों पर भगवान विष्णु पहरा देते थे. काफी समय बाद जब भगवान विष्णु वापस नहीं पहुंचे तो मां लक्ष्मी विचलित हो गईं. उसके बाद महार्षि नारद ने मां लक्ष्मी को भगवान विष्णु के द्वारपाल बने होने की जानकारी दी. मां लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को मुक्त कराने के लिए राजा बलि की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा, जिसके बाद राजा बलि ने भगवान विष्णु को भेंट के रूप में मुक्त कर दिया. मान्यता है इसी घटना के बाद से रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है.

सीतापुर: यूपी की राजधानी लखनऊ से 40 किलोमीटर दूर वामन धाम मंदिर स्थित है. वामन धाम सीतापुर जिले के बौनाभारी गांव में मौजूद है. इस पावन धाम से लाखों लोगों की धार्मिक आस्था जुड़ी है. मान्यता है इस मंदिर में भगवान विष्णु के पांचवें अवतार वामन देव प्रतिमा स्थापित हैं. तथ्यों के आधार पर इस धाम का वर्णन वामन पुराण, विष्णु पुरण, स्कन्द पुराण, नरसिंह पुराण, देवी भागवती पुरण और श्रीमद्भागवत महापुराण आदि पुराणों में भी मिलता है.

जानें क्यों मनाया जाता है रक्षाबंधन का त्योहार.

पुराणों के अनुसार इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने त्रेता युग में देवमाता अदिति के गर्भ से वामन रूप में जन्म लिया था. इस स्थान पर हजारों वर्ष पुराना एक पंचवटी वृक्ष मौजूद है. इस पंचवटी वृक्ष की जड़ों के नीचे पांच फनों वाला शेषनाग आज भी निवास करते हैं. वामन धाम में प्रत्येक वर्ष में दो बार विशेष पूजन का आयोजन किया जाता है. इस दौरान लाखों की संख्या में दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं. इस विशेष पूजन के दौरान श्रद्धालुओं को पांच फनों वाले शेषनाग का मूर्त रूप में दर्शन होता है. मान्यता है कि इस धाम में आने वाले श्रद्धालुओं की हर मनोकामना पूरी होती है.

वामन धाम में कई देवताओं ने धारण किया था यज्ञोपवीत
उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में स्थित वामन धाम का वर्णन कई पुराणों में मिलता है. यह स्थान लाखों लोगों की आस्था का प्रतीक है. यहां दूर-दूर से लाखों की संख्या में श्रद्धालु आकर माथा टेकते हैं. मान्यता है कि इस पावन धाम में भगवान शंकर, ब्रम्हा, देवराज इन्द्र सहित समस्त देवताओं ने यज्ञोपवीत धारण किया था. यज्ञोपवीत धारण करने के बाद भगवान विष्णु वामन रूप में महादानी राजा बलि के द्वार पर भिक्षा मांगने गए थे.

भगवान विष्णु ने तीन पग में ही माप लिए थे तीनों लोक
पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु ने सीतापुर जिले में स्थित वामन धाम में यज्ञोपवीत धारण किया था, जिसके बाद भगवान विष्णु वामन रूप धारण करके दानवीर राजा बलि के राज्य सोनिकपुर पहुंचे गए थे. सोनिकपुर स्थान वर्तमान में हरदोई जनपद की सीमा में स्थित है. कथानक के अनुसार जब राजा बलि अश्वमेध यज्ञ की पूर्ण आहुति देने जा रहे थे. उसी समय वामन के अवतार में भगवान विष्णु ने राजा बलि के दरवाजे पर भिक्षा मांगने के लिए दस्तक दी. वामन की आवाज सुनकर राजा बलि बाहर निकल आए. राजा बलि से वामन ने तीन पग भूमि देने की बात कही, जिसके बाद वामन रूपी भगवान विष्णु ने ढाई पग में ही पृथ्वी, आकाश और पाताल लोक माप लिया था. वहीं बचे हुए आधे पग के लिए राजा बलि ने वामन के समक्ष अपने शरीर को प्रस्तुत कर दिया.

मां लक्ष्मी ने राजा बलि की कलाई पर बांधा था रक्षासूत्र
प्रचलित कथाओं के अनुसार राजा बलि की उदारता से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे एक वरदान मांगने को कहा, जिसके बाद राजा बलि ने भगवान विष्णु को अपने महल का द्वारपाल बनाने का वरदान प्राप्त कर लिया. कहा जाता है कि राजा बलि के महल में 52 दरवाजे थे, इन सभी दरवाजों पर भगवान विष्णु पहरा देते थे. काफी समय बाद जब भगवान विष्णु वापस नहीं पहुंचे तो मां लक्ष्मी विचलित हो गईं. उसके बाद महार्षि नारद ने मां लक्ष्मी को भगवान विष्णु के द्वारपाल बने होने की जानकारी दी. मां लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को मुक्त कराने के लिए राजा बलि की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा, जिसके बाद राजा बलि ने भगवान विष्णु को भेंट के रूप में मुक्त कर दिया. मान्यता है इसी घटना के बाद से रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है.

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