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नैमिषारण्य को मिला है नाभि गया का दर्जा, पिंडदान करने से पितरों को मिलता है मोक्ष

श्राद्ध पक्ष शुरू होते ही नैमिषारण्य में श्राद्ध करने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. यहां के काशीकुंड की मान्यता है कि यहां पितृपक्ष में श्राद्धकर्म और पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होती है.

नैमिषारण्य में श्राद्ध करने से मोक्ष की होती है प्राप्ति
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Published : Sep 23, 2019, 5:23 PM IST

सीतापुर: अष्टम वैकुण्ठ और 88 हज़ार ऋषियों की तपोभूमि नैमिषारण्य तीर्थ को नाभिगया के रूप में भी जाना जाता है. इसी नैमिषारण्य में एक काशीकुंड भी है, जहां की मान्यता है कि पितृपक्ष में श्राद्धकर्म और पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है. इस निमित्त बड़ी संख्या में लोग यहां आकर अपने पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए श्राद्धकर्म और पिंडदान करने आते हैं.

नैमिषारण्य में श्राद्ध करने से मोक्ष की होती है प्राप्ति.

88 हज़ार ऋषियों ने की थी तपस्या
सतयुग का यह वही नैमिषारण्य तीर्थ है जहां पर 88 हज़ार ऋषियों और आदिमानव मनु-सतरूपा ने तपस्या की थी. इस तीर्थ को नाभि गया भी कहा गया है. प्राचीन काल से तीन गया का उल्लेख किया गया है. चरण गया बिहार में,कपाल गया बद्रीनाथ और नाभि गया नैमिषारण्य में. इनमें ज्यादातर श्राद्ध कर्म और पिंडदान आदि गया बिहार में ही करना श्रेयस्कर माना गया है.

नैमिषारण्य में श्राद्ध करने से मोक्ष की होती है प्राप्ति
मान्यता है कि जब तक पितरो की उदरपूर्ति अर्थात भूख से तृप्ति नही मिलती है तब तक उन्हें मोक्ष की प्राप्ति नही होती है. चूंकि नैमिषारण्य को नाभिगया का दर्जा प्राप्त है और नाभि का सीधा संबंध पेट से होता है इसलिए जब यहां पितरो के लिए पिंडदान, षोडशी संस्कार या फिर श्राद्धकर्म किया जाता है तो उनकी क्षुधा शांत होती है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.

पढ़ें: काशी का पिशाच मोचन कुंड: यहां पिंडदान करने से अकाल मृत्यु से मिलती है मुक्ति

पुरोहित गिरवर शास्त्री ने बताया कि
यह काशीकुंड उन आर्थिक रूप से विपन्न लोगों के लिए वरदान है जो लोग धनाभाव के कारण गया जाकर अपने पितरों के कर्मकांड करने में समर्थ नहीं होते हैं. अकाल मृत्यु वाले या ऐसे लोग जिनकी मृत्यु की तिथि का ज्ञान नहीं होता है, उनके भी कर्मकांड यहां पितृपक्ष में किये जाते हैं.लखनऊ से आये एक श्रद्धालु ने भी बताया कि पितरो के मोक्ष की कामना से वे यहां सपरिवार पिंडदान करने आये हैं.

सीतापुर: अष्टम वैकुण्ठ और 88 हज़ार ऋषियों की तपोभूमि नैमिषारण्य तीर्थ को नाभिगया के रूप में भी जाना जाता है. इसी नैमिषारण्य में एक काशीकुंड भी है, जहां की मान्यता है कि पितृपक्ष में श्राद्धकर्म और पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है. इस निमित्त बड़ी संख्या में लोग यहां आकर अपने पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए श्राद्धकर्म और पिंडदान करने आते हैं.

नैमिषारण्य में श्राद्ध करने से मोक्ष की होती है प्राप्ति.

88 हज़ार ऋषियों ने की थी तपस्या
सतयुग का यह वही नैमिषारण्य तीर्थ है जहां पर 88 हज़ार ऋषियों और आदिमानव मनु-सतरूपा ने तपस्या की थी. इस तीर्थ को नाभि गया भी कहा गया है. प्राचीन काल से तीन गया का उल्लेख किया गया है. चरण गया बिहार में,कपाल गया बद्रीनाथ और नाभि गया नैमिषारण्य में. इनमें ज्यादातर श्राद्ध कर्म और पिंडदान आदि गया बिहार में ही करना श्रेयस्कर माना गया है.

नैमिषारण्य में श्राद्ध करने से मोक्ष की होती है प्राप्ति
मान्यता है कि जब तक पितरो की उदरपूर्ति अर्थात भूख से तृप्ति नही मिलती है तब तक उन्हें मोक्ष की प्राप्ति नही होती है. चूंकि नैमिषारण्य को नाभिगया का दर्जा प्राप्त है और नाभि का सीधा संबंध पेट से होता है इसलिए जब यहां पितरो के लिए पिंडदान, षोडशी संस्कार या फिर श्राद्धकर्म किया जाता है तो उनकी क्षुधा शांत होती है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.

पढ़ें: काशी का पिशाच मोचन कुंड: यहां पिंडदान करने से अकाल मृत्यु से मिलती है मुक्ति

पुरोहित गिरवर शास्त्री ने बताया कि
यह काशीकुंड उन आर्थिक रूप से विपन्न लोगों के लिए वरदान है जो लोग धनाभाव के कारण गया जाकर अपने पितरों के कर्मकांड करने में समर्थ नहीं होते हैं. अकाल मृत्यु वाले या ऐसे लोग जिनकी मृत्यु की तिथि का ज्ञान नहीं होता है, उनके भी कर्मकांड यहां पितृपक्ष में किये जाते हैं.लखनऊ से आये एक श्रद्धालु ने भी बताया कि पितरो के मोक्ष की कामना से वे यहां सपरिवार पिंडदान करने आये हैं.

Intro:मातृनवमी पर विशेष-

सीतापुर: अष्टम वैकुण्ठ कहा जाने वाला 88 हज़ार ऋषियों की तपोभूमि नैमिषारण्य तीर्थ को नाभिगया के रूप में भी जाना जाता है. इसी नैमिषारण्य में एक काशीकुंड भी है जहां पर पितृपक्ष में श्राद्धकर्म और पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है.इस निमित्त बड़ी संख्या में लोग यहां आकर अपने पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए श्राद्धकर्म और पिंडदान कर रहे है.


Body:सतयुग का यह वही नैमिषारण्य तीर्थ है जहां पर 88 हज़ार ऋषियों और आदिमानव मनु-सतरूपा ने तपस्या की थी.इस तीर्थ को नाभि गया भी कहा गया है.प्राचीन काल से तीन गया का उल्लेख किया गया है चरण गया बिहार में,कपाल गया बदरीनाथ और नाभि गया नैमिषारण्य में.इनमें ज्यादातर श्राद्ध कर्म और पिंडदान आदि गया बिहार में ही करना श्रेयस्कर माना गया है लेकिन जैसा कि बताया जाता है कि जब तक पितरो की उदरपूर्ति अर्थात भूख से तृप्ति नही मिलती है तब तक उन्हें मोक्ष की प्राप्ति नही होती है चूंकि नैमिषारण्य को नाभिगया का दर्जा प्राप्त है और नाभि का सीधा संबंध पेट से होता है इसलिए जब यहां पितरो के लिए पिंडदान, षोडशी संस्कार या फिर श्राद्धकर्म किया जाता है तो उनकी क्षुधा शांत होती है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.


Conclusion:यहां पर इन कर्मकांडो को कराने वाले पुरोहित इसके महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि यह काशीकुंड उन आर्थिक रूप से विपन्न लोगो के लिए वरदान है जो लोग धनाभाव के कारण गया जाकर अपने पितरों के कर्मकांड करने में समर्थ नहीं होते हैं. अकाल मृत्यु वाले या ऐसे लोगो जिनकी मृत्यु की तिथि का ज्ञान नही होता है उनके भी कर्मकांड यहां पितृपक्ष में किये जाते हैं.लखनऊ से आये एक श्रद्धालु ने भी बताया कि पितरो के मोक्ष की कामना से वे यहां सपरिवार पिंडदान करने आये हैं.


बाइट-गिरवर शास्त्री (तीर्थ पुरोहित)
बाइट- बलदाऊ मिश्रा (श्रद्धालु)

सीतापुर से नीरज श्रीवास्तव की रिपोर्ट,9415084887

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