सीतापुर: मुगल शासनकाल में अवध की कमिश्नरी रहे कस्बा खैराबाद का वैभवशाली अतीत रहा है. इस कस्बे को सूफियों की नगरी के रूप में पहचाना जाता है. वहीं सांस्कृतिक दृष्टि से भी इस कस्बे की खास पहचान बनी हुई है. इसे उर्दू अदब का मरकज भी कहा जाता है. खैराबाद को स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेजों के खिलाफ जेहाद का फतवा जारी करने वाले अल्लामा फजल-ए-हक खैराबादी की जन्मभूमि होने का भी गौरव हासिल है.
लखनऊ में स्थित इमामबाड़े से मिलता-जुलता है कस्बा खैराबाद का इमामबाड़ा
कस्बा खैराबाद की सबसे बड़ी पहचान नवाब आसफुद्दौला द्वारा तोहफे के तौर पर बनवाया गया इमामबाड़ा है. जो लखनऊ में स्थित इमामबाड़े की तरह ही दिखता है. इस इमामबाड़े के निर्माण की भी खास वजह है. नवाब आसफुद्दौला को एक विदेशी बेशकीमती कपड़ा उपहार में मिला था, जिसकी उन्होंने शेरवानी बनवाने की पेशकश रखी तो तमाम दर्जियों ने असमर्थता जाहिर की, लेकिन कस्बा खैराबाद के मशहूर दर्जी मक्का जमादार ने अपनी हुनरमंदी से न सिर्फ उस कपड़े से शेरवानी तैयार की बल्कि एक टोपी भी तैयार कर दी.
तोहफे में मांगा खैराबाद कस्बे में इमामबाड़ा बनवाने की मांग
मक्का दर्जी की काबिलियत से खुश होकर नवाब आसफुद्दौला ने उनसे मनचाहा तोहफा मांगने की बात कही, जिस पर मक्का दर्जी ने खैराबाद कस्बे में इमामबाड़ा बनवाने की मांग की. नवाब आसफुद्दौला ने उनकी मांग को स्वीकार करते हुए बेहद नक्काशीदार इमामबाड़ा तैयार करवाया, जो आज भी अपनी प्राचीन वैभवशाली पहचान की मिसाल पेश कर रहा है.
यह दीगर बात है कि राजधानी लखनऊ की हूबहू शक्ल वाले इस इमामबाड़े के संरक्षण पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है. वहीं लखनऊ के इमामबाड़े पर खास ध्यान दिया जाता है. जबकि पहले और आज भी अपनी नक्काशी और खूबसूरती के लिए खास पहचान रखने वाले इस इमामबाड़े को देखने के लिए दूर दराज के लोग यहां आते रहते हैं.
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खण्डहर में तब्दील हो रहा इमामबाड़ा
खैराबाद को खास पहचान देने वाला मक्का जमादार का इमामबाड़ा लगातार खण्डहर में तब्दील होता जा रहा है, लेकिन इस ओर कतई ध्यान नहीं दिया जा रहा है. कस्बे के तमाम लोगों ने इस स्थिति पर अफसोस भी जाहिर किया है. लोगों ने सरकार से इसके संरक्षण की भी मांग की है. नगर पालिका अध्यक्ष ने भी सरकार से इस इमामबाड़े के संरक्षण और सौंदर्यीकरण कराये जाने की मांग की है.
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