सीतापुर: बीती 6 मई को सम्पन्न हुआ सीतापुर का लोकसभा चुनाव कई मायनों में बेहद खास और अहम रहा. इस चुनाव में जनता ने स्थानीय मुद्दों को खास तवज्जो ने नहीं दी और राष्ट्रीय तथा जातिगत समीकरणों के आधार पर ही मतदान किया. इस चुनाव ने कई राजनीतिक परिवारों में विरोधाभासी स्थितियां पैदा कर दी, दलबदल की राजनीति ने पिता-पुत्र की राहें जुदा करके उन्हें एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा कर दिया.
दल-बदल की राजनीति ने रिश्तों को किया तार-तार:
- सूबे की राजधानी से सटे सीतापुर के लोकसभा चुनाव ने इस बार अहम किरदार निभाया है.
- यहां इस बार कई राजनीतिक परिवार बिखराव की स्थिति में पहुंच गए.
- कांग्रेस की सियासत में खासा दखल रखने वाले राजा महमूदाबाद के बेटे अली मियां इस बार अखिलेश यादव के हमराह दिखाई दिये.
- उन्होंने बाकायदा सपा-बसपा का मंच साझा किया और गठबंधन के प्रत्याशी को जिताने की अपील की.
- गौरतलब है कि अली मियां के पिता राजा महमूदाबाद कांग्रेस के टिकट पर सीतापुर से लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं.
सपा के कद्दावर नेता रहे बिसवां के पूर्व विधायक रामपाल यादव पहले सपा और फिर बसपा से निष्कासित होने के बाद कांग्रेस में दाखिल हुए और कांग्रेस को जिताने का बीड़ा उठाया तो उनके ज़िला पंचायत अध्यक्ष बेटे जितेंद्र यादव पिता से बगावत करके सपा की साइकिल पर सवार हो गए. पूर्व केंद्रीय मंत्री रामलाल राही पिछले विधानसभा चुनाव में पुत्रमोह में भाजपा में शामिल हुए थे, लेकिन इस लोकसभा चुनाव में पुत्रवधू को सांसद बनाने की ललक ने उन्हें कांग्रेस में घरवापसी करने पर विवश कर दिया.
वरिष्ठ पत्रकार सतीश शर्मा ने बताया क्यों खास रहा यह चुनाव
इस लोकसभा चुनाव लोगों ने या तो राष्ट्रीय मुद्दों को खास तवज्जों दी या फिर जातिगत समीकरणों को. तीसरा यह चुनाव गर्मी की तपिश के लिहाज से भी खास रहा. कड़ी धूप और गर्मी के कारण इस बार का मतदान पिछली बार के मतदान से कम रहा.यह लोकसभा चुनाव मुख्य रूप से दो ही राजनीतिक दलों के बीच सिमटा रहा. इस चुनाव में प्रत्याशी की अपेक्षा जनता ने राजनीतिक दल को ज्यादा महत्व दिया, जिसके चलते बीजेपी और गठबंधन के बीच ही मुख्य मुकाबला सिमटता दिखाई दिया.