सीतापुर: जिले की खास पहचान और राज्य सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट 'एक जिला एक उत्पाद' योजना के तहत चयनित दरी उद्योग को कोरोना संक्रमण काल में तगड़ा झटका लगा है. इस दौरान दरी उद्योग को करीब 100 करोड़ का नुकसान हुआ है. इस उद्योग से जुड़े कारोबारियों से लेकर बुनकरों को काफी दुश्वारियों का सामना करना पड़ा है. अनलॉक-1 के बाद दरी उद्योग का काम तो शुरू हो गया है, लेकिन इसकी रफ्तार काफी धीमी है. बाहर के ऑर्डर और कच्चा माल मिलने में कठिनाइयों के कारण अभी भी दरी उद्योग को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
1981 में शुरु हुई थी विदेशों में दरियों की सप्लाई
सीतापुर की बनी दरियों की विदेशों में भी काफी मांग है. कॉटनबेस की ये दरियां यहां के बुनकरों की कुशल दस्तकारी के कारण काफी पसंद की जाती हैं. इन्हें आर्डर के मुताबिक साइज, डिजाइन, मैटेरियल और कलर से तैयार किया जाता है. जानकारों के मुताबिक वर्ष 1981 में यहां की दरियों को बाहर सप्लाई करने का काम शुरू किया गया था. पहले देश के भीतर ही गैरप्रांतों में इनकी सप्लाई की जाती थी, लेकिन बाद में वर्ष 2000 में विदेशों में इनकी सप्लाई का सिलसिला शुरू किया गया, जो अभी भी चल रहा है. यहां की बनी दरियां अरब देशों के अलावा इजराइल, इटली, स्पेन, फ्रांस, पुर्तगाल, नार्वे, इंग्लैंड और अमेरिका आदि में सप्लाई की जाती हैं.
40 से 50 हजार लोग जुड़े हैं दरी उद्योग से
दरी निर्यातकों के अनुसार जिले में दरियों का वार्षिक टर्न ओवर डेढ़ से दो सौ करोड़ रुपये के आसपास है. जिले में इसका मुख्य केन्द्र खैराबाद कस्बा है और खैराबाद की करीब 75 फीसदी आबादी यानी कि 40 से 50 हजार लोग इस उद्योग से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़े हैं.
लॉकडाउन में लगा ग्रहण
दरी उद्योग से जुड़े कारोबारी कच्चा माल यानी कि सूत (धागा) मंगाकर उसे बुनकरों को देते हैं. इस कच्चे माल की बुनाई करके बुनकर दरियां तैयार करते हैं. जिले में यह व्यवसाय कुटीर उद्योग के रूप में भी संचालित किया जाता है. लॉकडाउन के बाद इस उद्योग पर पूरी तरह से ग्रहण लग गया. तैयार माल की सप्लाई विदेशों में बंद होने और फिर बाद में कच्चे माल की आमद ठप होने से इस उद्योग को करारा झटका लगा. कोरोना के मरीज मिलने के कारण खैराबाद इलाके को हॉटस्पॉट घोषित कर दिया गया जिससे इस उद्योग को पूरी तरह से बंद होना पड़ा.
नहीं मिल रहा कच्चा माल
जिले में दरी में मुख्य निर्यातक हाजी जलीस अंसारी ने ईटीवी भारत को बताया कि दरी उद्योग में चीन से भारत की प्रतिस्पर्धा रहती है. चीन की बनी दरियां सस्ती जरूर होती हैं, लेकिन भारत की बनी दरियां बेहतर क्वालिटी के कारण अधिक पसंद की जाती हैं. उन्होंने सरकार से डाईंग हाउस की स्थापना किये जाने की मांग की है ताकि बुनकरों को उसका लाभ मिल सके. उन्होंने यह भी बताया कि फिलहाल यूपी में कच्चा माल न मिलने के कारण उन्हें दूसरे प्रदेशों से ही माल मंगाना पड़ रहा है. वहां से रंगीन धागा मंगाकर उससे दरियां तैयार कराई जा रही हैं. उनका यह भी कहना है कि जिस तरह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन का विरोध हो रहा है उसके परिणास्वरूप भविष्य में यहां के दरी उद्योग को और बढ़ावा मिल सकता है.
बुनकरों की कमाई हुई आधी
ईटीवी भारत से बातचीत में बुनकरों ने बताया कि लॉकडाउन के पहले वे लोग इस काम से रोजाना तीन सौ रुपये की औसत कमाई करते थे. लेकिन लॉकडाउन में काम बंद होने से उनके परिवारों के सामने दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना भी मुश्किल हो गया है. मौजूदा समय में काम शुरू तो हो गया है, लेकिन आर्डर और कच्चे माल की कमी के कारण उनकी आय घटकर आधी रह गई है. हफ्ते में तीन दिन ही काम का औसत आ रहा है, जिससे उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
निर्यात रुकने से विदेशों के आर्डर हुए कैंसिल
लॉकडाउन के समय में दरी उद्योग में हुए घाटे को लेकर हैंडलूम दरी मैन्युफैक्चरिंग एंड एक्सपोर्ट वेलफेयर एसोसिएशन के प्रेसिडेंट हाजी इश्तियाक हुसैन ने बताया कि कोरोना के कारण इस उद्योग को करीब सौ करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचा है. निर्यात रुकने से विदेशों के ऑर्डर कैंसिल हो गए. मौजूदा समय में काम तो शुरू हो गया है लेकिन अभी ऑर्डर न के बराबर ही मिल रहे हैं. सरकार की 'एक जिला एक उत्पाद' योजना के तहत दरी उद्योग का चयन किए जाने की सराहना करते हुए उन्होंने बताया कि इससे उत्पादकों और बुनकरों को लाभ मिलेगा. उन्होंने कहा कि इस योजना के तहत अगर कॉमन फैसिलिटी सेंटर की स्थापना करा दी जाय तो इससे बुनकरों को और भी फायदा मिलेगा.