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भगवान बुद्ध की तपोस्थली श्रावस्ती में क्यों ध्यान लगाते हैं विदेशी पर्यटक ?

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Published : Feb 14, 2023, 1:24 PM IST

भले ही श्रीलंका, थाई, कोरिया, कंबोडिया, जापान में बौद्ध धर्म के कई चमचमाते मठ हों मगर बुद्ध तपोस्थली श्रावस्ती के जेतवन बिहार के प्रति बौद्ध धर्मावलंबियों की आस्था अद्वितीय है. इस कारण श्रावस्ती में देश-दुनिया के बौद्ध मतावलंबी भगवान बुद्ध की तपोस्थली पर जरूर आना चाहते हैं.

Shravasti the abode of Lord Buddha
बुद्ध तपोस्थली श्रावस्ती के जेतवन बिहार में ध्यान करते विदेशी बौद्ध पर्यटक.

श्रावस्ती : विदेशी मेहमानों से तथागत भगवान बुद्ध की तपोस्थली श्रावस्ती गुलजार है. जी हां! सहेट- महेट के झुरमुटों के बीच ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक भग्नावशेष की छटा विदेशी मेहमानों को सम्मोहित कर रही है. शहर के कोलाहल से दूर श्रावस्ती की माटी पर शांति देने वाला बोधि वृक्ष, चिंतन शिविर, ध्यान, भक्ति और योग के अलावा यहां खड़े कोरिया, थाईलैंड, श्रीलंका, तिब्बत, चीन, जापान, कंबोडिया आदि देशों के चमचमाते मठ- मंदिर दुनिया भर से आने वाले पर्यटकों को शांति का संदेश दे रहे हैं. श्रावस्ती का गौरवशाली अतीत महत्वपूर्ण रहा है.

Shravasti the abode of Lord Buddha
थाई संस्था डेन महामंकोल की ओर से स्थापित ध्यान केंद्र टूरिस्ट में काफी पॉपुलर है.

श्रावस्ती के इतिहास पर अध्ययन कर रहे पूर्व प्रवक्ता विजय नाथ द्विवेदी के अनुसार, महाकवि कालीदास ने रघुवंशम् में श्रावस्ती का विस्तृत वर्णन किया है. कहा गया है कि भगवान राम ने अपने पुत्र लव को श्रावस्ती का राजा बनाया था. श्रावस्ती क्षेत्र को सहेट-महेट के नाम से भी जाना जाता है. यहां प्रतिवर्ष श्रीलंका, जापान, कोरिया, कंबोडिया, वर्मा, तिब्बत, थाईलैंड, चीन, इंडोनेशिया, भूटान, म्यामांर, सिंगापुर, नेपाल समेत 36 देशों से तकरीबन एक लाख से अधिक पर्यटक आते हैं. इनमें 50 फीसदी से ज्यादा श्रीलंका, म्यामार और थाईलैंड के पर्यटक होते हैं.

महाप्रजापति गौतमी भिक्षुणी प्रशिक्षण केंद्र श्रावस्ती के संचालक बौद्ध भिक्षु देवेंद्र थेरो ने बताया कि अक्टूबर से मार्च तक विदेशी मेहमानों के आने का पीक सीजन होता है, क्योंकि इसी दौरान बौद्ध एवं जैन धर्मावलंबियों का अधिकांश पर्व यहां मनाए जाते हैं. देवेंद्र थेरो बताते हैं कि यहां स्थित अंगुलिमाल गुफा, दुर्दांत डाकू अंगुलिमाल के हृदय परिवर्तन की घटना वाली कथा पर्यटकों में भगवान बुद्ध के प्रति आस्था बढ़ाती है.

Shravasti the abode of Lord Buddha
श्रावस्ती के जेतवन विहार में बुद्ध का ध्यान करते विदेशी बौद्ध अनुयायी

श्रावस्ती वेलफेयर सोसाइटी के प्रबंधक शिवकुमार पाठक ने बताया कि थाई संस्था डेन महामंकोल की ओर से स्थापित ध्यान केंद्र और मंदिर मौजूदा समय में पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है. इस मंदिर में भगवान बुद्ध की लगभग 101 फीट ऊंची प्रतिमा तथा थाई शैली में बना ध्यान केंद्र विदेशी सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है. कोरिया मंदिर की निर्माण शैली के अलावा जेतवन में बैठ कर भगवान बुद्ध की साधना करने को पर्यटक नहीं भूलते हैं. शिवकुमार बताते हैं कि यह वही जेतवन भूमि है, जिसे 18 करोड़ स्वर्ण मुद्राओं को बिछाकर अनाथ पिंडक ने कुमार जेत से लिया था.

पुरातत्व विभाग के रंजीत ने बताया कि जनवरी में श्रीलंका, थाइलैंड, भूटान, मालद्वीप, म्यामार,अफगानिस्तान, बांग्लादेश, कोरिया आदि देशों के 4221 विदेशी मेहमान तथा 11223 भारत के पर्यटक भ्रमण पर आ चुके हैं. उन्होंने बताया कि नौ फरवरी तक 2000 के करीब देश विदेश के पर्यटक श्रावस्ती आए हैं.

Shravasti the abode of Lord Buddha
श्रावस्ती में भ्रमण करता कोरिया से आया बौद्ध पर्यटकों का दल.

पढ़ें : Human Chain बनाकर प्रदेश में इस जिले की डीएम ने पाया पहला स्थान, जानें कौन हैं ये जिलाधिकारी

श्रावस्ती : विदेशी मेहमानों से तथागत भगवान बुद्ध की तपोस्थली श्रावस्ती गुलजार है. जी हां! सहेट- महेट के झुरमुटों के बीच ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक भग्नावशेष की छटा विदेशी मेहमानों को सम्मोहित कर रही है. शहर के कोलाहल से दूर श्रावस्ती की माटी पर शांति देने वाला बोधि वृक्ष, चिंतन शिविर, ध्यान, भक्ति और योग के अलावा यहां खड़े कोरिया, थाईलैंड, श्रीलंका, तिब्बत, चीन, जापान, कंबोडिया आदि देशों के चमचमाते मठ- मंदिर दुनिया भर से आने वाले पर्यटकों को शांति का संदेश दे रहे हैं. श्रावस्ती का गौरवशाली अतीत महत्वपूर्ण रहा है.

Shravasti the abode of Lord Buddha
थाई संस्था डेन महामंकोल की ओर से स्थापित ध्यान केंद्र टूरिस्ट में काफी पॉपुलर है.

श्रावस्ती के इतिहास पर अध्ययन कर रहे पूर्व प्रवक्ता विजय नाथ द्विवेदी के अनुसार, महाकवि कालीदास ने रघुवंशम् में श्रावस्ती का विस्तृत वर्णन किया है. कहा गया है कि भगवान राम ने अपने पुत्र लव को श्रावस्ती का राजा बनाया था. श्रावस्ती क्षेत्र को सहेट-महेट के नाम से भी जाना जाता है. यहां प्रतिवर्ष श्रीलंका, जापान, कोरिया, कंबोडिया, वर्मा, तिब्बत, थाईलैंड, चीन, इंडोनेशिया, भूटान, म्यामांर, सिंगापुर, नेपाल समेत 36 देशों से तकरीबन एक लाख से अधिक पर्यटक आते हैं. इनमें 50 फीसदी से ज्यादा श्रीलंका, म्यामार और थाईलैंड के पर्यटक होते हैं.

महाप्रजापति गौतमी भिक्षुणी प्रशिक्षण केंद्र श्रावस्ती के संचालक बौद्ध भिक्षु देवेंद्र थेरो ने बताया कि अक्टूबर से मार्च तक विदेशी मेहमानों के आने का पीक सीजन होता है, क्योंकि इसी दौरान बौद्ध एवं जैन धर्मावलंबियों का अधिकांश पर्व यहां मनाए जाते हैं. देवेंद्र थेरो बताते हैं कि यहां स्थित अंगुलिमाल गुफा, दुर्दांत डाकू अंगुलिमाल के हृदय परिवर्तन की घटना वाली कथा पर्यटकों में भगवान बुद्ध के प्रति आस्था बढ़ाती है.

Shravasti the abode of Lord Buddha
श्रावस्ती के जेतवन विहार में बुद्ध का ध्यान करते विदेशी बौद्ध अनुयायी

श्रावस्ती वेलफेयर सोसाइटी के प्रबंधक शिवकुमार पाठक ने बताया कि थाई संस्था डेन महामंकोल की ओर से स्थापित ध्यान केंद्र और मंदिर मौजूदा समय में पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है. इस मंदिर में भगवान बुद्ध की लगभग 101 फीट ऊंची प्रतिमा तथा थाई शैली में बना ध्यान केंद्र विदेशी सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है. कोरिया मंदिर की निर्माण शैली के अलावा जेतवन में बैठ कर भगवान बुद्ध की साधना करने को पर्यटक नहीं भूलते हैं. शिवकुमार बताते हैं कि यह वही जेतवन भूमि है, जिसे 18 करोड़ स्वर्ण मुद्राओं को बिछाकर अनाथ पिंडक ने कुमार जेत से लिया था.

पुरातत्व विभाग के रंजीत ने बताया कि जनवरी में श्रीलंका, थाइलैंड, भूटान, मालद्वीप, म्यामार,अफगानिस्तान, बांग्लादेश, कोरिया आदि देशों के 4221 विदेशी मेहमान तथा 11223 भारत के पर्यटक भ्रमण पर आ चुके हैं. उन्होंने बताया कि नौ फरवरी तक 2000 के करीब देश विदेश के पर्यटक श्रावस्ती आए हैं.

Shravasti the abode of Lord Buddha
श्रावस्ती में भ्रमण करता कोरिया से आया बौद्ध पर्यटकों का दल.

पढ़ें : Human Chain बनाकर प्रदेश में इस जिले की डीएम ने पाया पहला स्थान, जानें कौन हैं ये जिलाधिकारी

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