शामली: सीएम योगी ने कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए उत्तर प्रदेश की सारी सीमाओं को सील करने का निर्देश दिया है. सीएम के निर्देश का सबसे ज्यादा असर प्रवासी मजदूरों पर पड़ता दिख रहा है. सामने दिखती है ये तस्वीर यूपी-हरियाणा बॉर्डर की है. बॉर्डर सील होने से रास्ते में फंसे मजदूर घर पहुंचने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं. जान को जोखिम में डालकर मजदूर यमुना नदी को पार कर रहे हैं, इसके लिए किसी नांव का नहीं बल्कि गाड़ी के टायर का उपयोग किया जा रहा है, जो कि काफी जोखिम भरा है. मजदूरों का कहना है कि लॉकडाउन में उन्हें किसी तरह की कोई मदद नहीं मिल रही है. इसलिए वे मजबूरन नदी पार कर रहे हैं.
साइकिल से तय किया 800 किलोमीटर का सफर
पटियाला में दिहाड़ी मजदूरी करने वाले गुरूप्रसाद और राजेश यूपी के सिद्धार्थ नगर के रहने वाले हैं. लॉकडाउन के चलते यें दोनों पटियाला में फंस गए. लॉकडाउन में मजदूरी न मिलने से इनके सामने खाने की समस्या खड़ी हो गई. तो इन्होंने पुरानी साइकिल से ही वापस अपने घर सिद्धार्थनगर लौटने की ठानी. पटियाला से सिद्धार्थनगर की दूरी तकरीबन 800 किलोमीटर है. अंबाला के रास्ते ये दोनों मजदूर यूपी-हरियाणा बॉर्डर तक पहुंच गए. पुलिस ने उन्हें यहां पकड़ लिया और वापस लौटने के लिए कहा, लेकिन मजदूरों ने वापस लौटाने की बजाए यमुना की गहराइयों को पार करके घर जाने का रास्ता चुना.
मजबूरी में मजदूर
सिर पर साइकिल और सामान उठाकर यमुना पार करते शामली जिले में दाखिल प्रवासी मजदूर गुरू प्रसाद ने बताया कि वो पटियाला से सिद्धार्थ नगर जाने के लिए साइकिल पर निकले थे, उन्हें बार्डर पर रोक लिया गया और आगे नहीं जाने दिया. इसलिए मजबूरन उन्हें नदी पार करनी पड़ रही है. प्रवासी मजदूर राजेश ने बताया कि पहले उन्होंने यमुना नदी के किनारे आराम किया और इसके बाद यमुना नदी को पार किया. मजदूरों ने बताया कि अगर वे वापस लौटते हैं तो वहां भी भूख उनका पीछा नहीं छोड़ती, इसलिए अब वे जैसे के तैसे घर पहुंचना चाहते हैं.
प्रवासी मजदूरों की घर वापसी
यूपी सरकार प्रवासी मजदूरों को वापस बुला रही है. इसके लिए कई नियम बनाए गए हैं. सरकार के इस फैसले में सिर्फ वे ही प्रवासी मजदूर शामिल हैं, जो गैर राज्यों में 14 दिन क्वारंटीन रह चुके हैं. वापस लाए जा रहे इन मजदूरों को भी घर भेजने से पहले स्थानीय जनपदों में 14 दिन क्वारंटीन में रखा जा रहा है. ऐसे में घर पहुंचने से पहले 28 दिनों की दूरी इन मजदूरों को सरकार के फैसले से किनारा करने को मजबूर कर रही है. ऐसे मजदूर अब क्वारंटीन होने के बजाय छिप कर घरों तक पहुंचने की कोशिश में जुटे हुए हैं.
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