शामलीः भारतीय किसान यूनियन चढूनी के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी बुधवार को जिले के दौरे पहुंंचे. यहां पर उन्होंने जलालाबाद और भैंसवाल में पहुंचकर किसानों से वार्ता की. इस दौरान उन्होंने मीडिया से भी बातचीत की. उन्होंने कहा कि यदि देश के किसानों को बचाना है, तो फिर 2 ही रास्ते हैं. पहला रास्ता आंदोलन है और दूसरा राजनीति. राजनीति में अच्छे लोगों को भेजकर किसान विरोधी कानून और पाॅलिसी बनाने वाले लोगों को बाहर करना होगा. चढूनी जिले की थानाभवन विधानसभा से रालोद के विधायक अशरफ अली की माता के निधन पर शोक संवेदना प्रकट करने उनके आवास भी गए.
भारतीय किसान यूनियन चढूनी अध्यक्ष ने कहा कि 1947 में जब देश आजाद हुआ, तब भारत की जीडीपी में खेती का हिस्सा 60 प्रतिशत था. लेकिन, अब यह कम होकर 6 प्रतिशत पर आ गया है. यह आंकड़ा दर्शा रहा है कि देश में किसानों की क्या हालत हुई है? उन्होंने कहा कि हमारी बदकिस्मती ये है कि हमारे देश में अमेरिका के इशारे पर सरकार बनती है. वो सरकार अमेरिका के पक्ष की पॉलिसी बनाती है.
चढूनी ने कहा, 'अभी जिन कानूनों के पीछे किसानों ने आंदोलन किया था, वह भी अमेरिका और उसके संगठन WTO (World Trade Organization) के दबाव में बनाए गए. चढूनी ने कहा कि हम कहते हैं कि हम आजाद है, तो फिर देश में अपनी पॉलिसी क्यों नही बनाई जाती? फिर अमेरिका के इशारे पर पॉलिसी क्यों बनाई जा रही है?
अमेरिका में सिर्फ 3 प्रतिशत किसानः उन्होंने कहा कि अमेरिका के अंदर जमीन ज्यादा है और आबादी कम है. वहां पर खाली खेत छोड़ने पड़ते हैं और खाली खेतों की भी सब्सिडी देनी पड़ती है. वहां का किसान खेती करना नहीं चाहता. वहां केवल 3 प्रतिशत किसान खेती करते हैं. इसलिए वे अपने किसान को 65 प्रतिशत सब्सिडी दे रहे हैं, ताकि अमेरिका को खाली जमीनों पर सब्सीडी न देनी पड़े. वो जो उत्पाद खरीदते हैं, उन्हें फेंकना न पड़े. इसलिए उन्होंने WTO जैसी स्कीम निकाली, जिसके तहत सारी दुनिया का व्यापार इकट्ठा हो.
डब्लूटीओ की शर्तें आपत्तिजनक: उन्होंने कहा, 'हमारे देश में 82 प्रतिशत किसानों के पास ढाई एकड़ से कम जमीन है. अमेरिका में छोटे से छोटे किसान के पास किसान 10 वर्ग किलोमीटर जमीन है. अब एक ढाई एकड़ का किसान 10 वर्ग किलोमीटर वाले किसान से कैसे मुकाबला कर सकता है? इसलिए वहां की पॉलिसी लागू करने में सबसे पहले एमएसपी पर अटैक किया जाता है. डब्लूटीओ की शर्तों में एक गंभीर शर्त यह है कि किसी भी देश की सरकार अपने देश के किसान को वर्ल्ड मार्किट से ज्यादा भाव नहीं दे सकती. वर्ल्ड मार्किट से ज्यादा भाव देना आपत्तिजनक सब्सीडी समझा जाता है और वो ही कारण है कि ये एमएसपी से भाग रहे हैं.'
किसानों को बेरोजगार करना चाहती है सरकारः चढूनी ने कहा कि अब सरकार ये कह रही है कि अगर हमें डब्लूटीओ से मुकाबला करना है, तो हमें सस्ती फसल पैदा करनी पड़ेगी. इसलिए इन्होंने खेती कंपनियों को दे दी. लेकिन यदि खेती कंपनियों को दे देते हैं, तो यहां का किसान जिनमें से देश के करीब 65 प्रतिशत लोग खेती पर निर्भर है और ऐसे करीब 40-45 प्रतिशत किसान जो जमीन के मालिक हैं और उनका कोई औरर रोजगार भी नहीं है, वे सब बेरोजगार हो जाएंगे.
हर रोज 21 किसान कर रहे आत्महत्याः उन्होंने बताया, 'आज रोजाना 38 बेरोजगार भारत में आत्महत्या कर रहे हैं. 21 किसान प्रतिदिन आत्महत्या कर रहे हैं. अगर ये खेती कंपनियों को चली गई, तो फिर यहां क्या हाल होगा, आप समझ सकते हैं. चढूनी ने बताया कि आज हमारे देश में 23 करोड़ की आबादी ऐसी है, जो 2 टाइम का खाना नहीं खा सकती. अगर खेती व्यापार बन गई तो जो अभी जीविका है, ये मानिए की जो व्यापारी और कंपनी हैं. वे निर्दयी बन जाएंगे और जनता भूखी मरेगी.'
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