शामली: यूं तो पूरे सावन मास में घेवर लोगों में मिठास घोलता नजर आता है, लेकिन हरियाली तीज और रक्षाबंधन पर्व तक इस मिठाई को सगे-संबंधियों में बांटने का प्रचलन भी है, जिसके चलते हर साल सावन का महीना शुरू होने के साथ ही घेवर बनाने की भट्टियां गली—कूचों में धधकने लगती हैं. लेकिन इस बार कोरोना की वजह से घेवर की मिठास भी किरकिरी हो गई है. जिसका सीधा असर इस व्यवसाय से जुड़े कामगारों पर देखने को मिल रहा है.
कोरोना ने छीनी घेवर की मिठास
पिछले साल तक सावन महीनें में मिष्ठान विक्रेताओं की दुकानों पर घेवर की अलग—अलग वैरायटी नजर आती थी. अगर बात यूपी के शामली की करें, तो यहां का घेवर अपनी अलग पहचान रखता है. लेकिन इस बार कोरोना महामारी ने घेवर के स्वाद को ही किरकिरा कर दिया है. इसके चलते घेवर बनाने के व्यवसाय से जुड़े लोग परेशान हैं. बाजारों में खरीददार नहीं होने के चलते मिष्ठान विक्रेता इस बार भट्टी पर तैयार होने वाले घेवर के कच्चे माल को भी सोच-समझकर ही भट्टियों से खरीद रहे हैं. ऐसे में भट्टियां लगाकर कच्चा घेवर तैयार करने वाले कारीगरों की मजदूरी और खर्चा तक भी नहीं निकल पा रहा है.
तीज भी फीकी, रक्षाबंधन से उम्मीद
सावन माह की शुरूआत से ही गली—कूचों में कच्चा घेवर तैयार करने के लिए भट्टियां सुलग उठती है. भट्टियां लगाकर घेवर बनाने के व्यवसाय से जुड़े लोगों की सावन की शुरूआत और हरियाली तीज तक ही अच्छी खासी कमाई हो जाती थी. इसके बावजूद भी भट्टियां रक्षाबंधन तक सुलगी रहती थी, लेकिन इस बार तो महाशिवरात्रि के साथ—साथ तीज का त्यौहार भी घेवर बनाने वाले कारीगरों के लिए फीका ही साबित हुआ है. ये लोग अब रक्षाबंधन तक जैसे—तैसे भट्टियां चलाकर अपना खर्चा निकालने की जुगत भिड़ा रहे हैं.
बाजार से खरीदते डर रहे लोग
शामली में घेवर की भट्टी लगाकर बाजारों में सप्लाई करने वाले नीरज बताते हैं कि इस बार घेवर का उठान बिल्कुल नहीं है. हम भट्टियों पर कच्चा माल तैयार करते हैं. जिसे बाजारों में हलवाईयों की दुकानों पर बेचा जाता है. हलवाई अपनी दुकानों पर इस कच्चे माल से कई वैरायटी का घेवर बनाकर बेचते हैं. लेकिन इस बार बाजार की डिमांड ही नही है. हरियाली तीज फीकी रहने के साथ ही अब रक्षाबंधन तक जैसे तैसे भट्टियां चलाकर खर्चा पूरा करने की कोशिशें की जा रही हैं.
कारीगर नीरज बताते हैं कि बाजार का हाल यह है कि घेवर के शौकीन लोग बाजार से माल खरीदने के बजाय भट्टियों से ही कच्चा घेवर घर ले जाकर घरों पर ही तैयार कर रहे हैं. लेकिन इन इक्का—दुक्का ग्राहकों से काम कहां चलता है. बाजार से माल की डिमांड आने के बाद ही मुनाफा हो पाता है.