शाहजहांपुरः आज पूरा देश में आजादी के महानायक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की जयंती मना रहा है. राम प्रसाद बिस्मिल ने देश में क्रांति की ऐसी अलख जगाई थी कि अंग्रेजों के दांत खट्टे हो गए. देश की आजादी में बड़ा योगदान निभाने वाले पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का पुश्तैनी घर आज तक ऐतिहासिक धरोहर नहीं बनाया जा सका है. इसे लेकर कई बार मांग उठाई जा चुकी है, लेकिन हर बार मांग को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है.
आर्थिक तंगी के चलते मां को बेचना पड़ा था मकान
शहर के मोहल्ला खिरनी बाग की तंग गलियों में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का पुश्तैनी घर है. जिसको बिस्मिल की फांसी (19 दिसंबर 1927) के बाद बदहाली की स्थिति में उनकी मां मूलमती ने बेच दिया था. आर्थिक तंगी इतनी हो गई थी कि बिस्मिल की मां मूलमती देवी को लोगों के घरों पर काम करके बमुश्किल अपना गुजारा करना पड़ता था. इस घर के रहने वाले कश्यप परिवार का दावा हैं कि उन्होंने यह मकान कटरा के एक छोटेलाल दर्जी से खरीदा था. इससे पहले यह मकान किसी विद्याराम के पास था, जो उन्होंने बिस्मिल जी की बहन शास्त्रीदेवी से खरीदा था.
इलाज के अभाव में हुई थी छोटे भाई की मौत
बिस्मिल जी के बलिदान के बाद उनके परिवार का जीवन बेहद गरीबी में बिता था. कहा जाता है कि उनके छोटे भाई का देहांत दवा और इलाज के अभाव में हो गया था. मां मूलमती देवी और बहन शास्त्री देवी को दूसरों के घरों में बर्तन मांजने पड़े. कालीबाड़ी मंदिर के बाहर फूल भी बेचकर गुजर बसर करना पड़ा था. बताया जाता है कि किसी इस बात की जानकारी तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु को दी, तब इनकी मां को प्रधानमंत्री ने 500 रुपये भेजे थे.
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मकान को संग्रहालय बनाने की होती रही है मांग
जिले के बाशिंदों ने कई बार बिस्मिल जी के मकान को संग्रहालय बनाने की मांग उठाई, लेकिन उनको सिर्फ अभी तक आश्वासन ही मिला है. कांग्रेस के बड़े नेता रहे जितिन प्रसाद से लेकर भारतीय जनता पार्टी के वित्त मंत्री सुरेश कुमार खन्ना तक जनपद वासियों ने अपनी मांग रखी थी, लेकिन उनकी मांग ठंडे बस्ते में डाल दी जाती है. शहरवासियों को उम्मीद है कि जितिन प्रसाद के भाजपा में शामिल होने पर शायद संग्रहालय बनने का रास्ता निकल सके.
बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान की दोस्ती दी जाती है मिशाल
दरअसल में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खान की जन्मस्थली है. यहां के आर्य समाज मंदिर से काकोरी कांड की रूपरेखा रची गई थी. जिसको 9 अगस्त 1927 को अंजाम तक पहुंचाया गया था. काकोरी कांड के बाद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खान को अंग्रेजी हुकूमत ने जेल में डाल दिया था और 19 दिसंबर 1927 को तीनों क्रांतिकारियों को अलग-अलग जेलों में फांसी दे दी गई थी.
पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान अटूट दोस्ती के लोग कसमें खाते हैं. दोनों क्रांतिकारी यहां के मिशन स्कूल में पढ़ते थे. उसके बाद आर्य समाज मंदिर में बैठकर देश की आजादी के लिए कार्य योजना तैयार करते थे. दोनों क्रांतिक्रारियों की दोस्ती इतनी गहरी दोस्ती थी, दोनों एक ही थाली में खाना खाते और आर्य समाज मंदिर में अपना ज्यादा से ज्यादा समय बिताते थे.