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बलिदान दिवस: 'मेरे ये हाथ इंसानी खून से नहीं रंगे, खुदा के यहां मेरा इंसाफ होगा' - शहीद अशफाक उल्ला खां पुण्यतिथि

काकोरी कांड में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले भारत के वीर क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खाान की आज पुण्यतिथि है. महज 27 साल की उम्र में उन्हें काकोरी कांड के लिए फैजाबाद जेल में 19 दिसंबर 1927 को फांसी पर चढ़ा दिया गया था. 19 दिसंबर को बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है.

स्पेशल रिपोर्ट.
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Published : Dec 18, 2020, 5:16 PM IST

Updated : Dec 19, 2020, 7:41 AM IST

शाहजहांपुर: 'शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का बस यही बाकी निशां होगा.' यह चंद लाइनें शाहजहांपुर के अमर शहीद अशफाक उल्ला खां पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं. देश को आजादी दिलाने के लिए उन्होंने अपने जान की कुर्बानी दे दी. उन्हीं की याद में 19 दिसंबर को बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है.

देश के लिए कुछ करने का था जज्बा
दरअसल, शाहजहांपुर को शहीदों की नगरी के रूप में जाना जाता है. यह स्थान काकोरी कांड के महानायक क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खां, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह की जन्मस्थली है. शाहजहांपुर से ही काकोरी कांड की रूपरेखा तैयार की गई थी, जिसके बाद काकोरी कांड को अंजाम तक पहुंचाया गया. इसके बाद अंग्रेजों ने इन तीनों क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करके अलग-अलग जेलों में डाल दिया और 19 दिसंबर 1927 को इन महानायकों को फांसी दे दी गई.

स्पेशल रिपोर्ट.

शहीद अशफाक उल्ला खां का जन्म शहर के मोहल्ला एमनजई जलालनगर में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था. उन्होंने शाहजहांपुर के एवी रिच इंटर कॉलेज में पढ़ाई की. यहां राम प्रसाद बिस्मिल उनके सहपाठी थे. दोनों कॉलेज में पढ़ने के बाद आर्य समाज मंदिर में देश की आजादी की रूपरेखा तैयार करते थे. इसी वजह से आज भी यह आर्य समाज मंदिर हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है.

इस मंदिर में राम प्रसाद बिस्मिल के पिता पुजारी थे. जबकि, अशफाक उल्ला खां कट्टर मुसलमान थे. लेकिन, दोनों दोस्त एक ही थाली में खाना खाया करते थे. इन दोनों महान क्रांतिकारियों की दोस्ती आज भी हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है. अशफाक उल्ला खां आर्य समाज मंदिर में अपना ज्यादा से ज्यादा समय बिताते थे.

काकोरी कांड से बौखला गई थी अंग्रेजी हुकूमत
दोनों मित्र देश की आजादी के लिए इसी मंदिर में नई-नई योजनाएं बनाया करते थे. इन दोनों की अमर दोस्ती ने काकोरी कांड में अंग्रेजों से लोहा लिया था. शहीद अशफाक उल्ला खां के प्रपौत्र अशफाक उल्ला का कहना है कि शहीद अशफाक उल्ला खां, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और राजेंद्र लहरी इन सभी क्रांतिकारियों को ब्रिटिश हुकूमत ने काकोरी कांड को अंजाम देने वाला मानते हुए 19 दिसंबर 1927 को अलग-अलग जिलों में फांसी दे दी थी.

शहीद के नाम से बना है पार्क.
शहीद के नाम से बना है पार्क.

हिंदुस्तान की आजादी के लिए इन क्रांतिकारियों ने अपना बलिदान दिया. 19 दिसंबर को देश के अलग-अलग कोनों में इन्हीं शहीदों याद किया जाता है. शाहजहांपुर जिला शहीदों को याद करने में अग्रणी है, क्योंकि यहां काकोरी कांड के तीन शहीद अशफाक उल्ला खां, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह की जन्मस्थली है.

मजार में हर वर्ष होता है कार्यक्रम
19 दिसंबर को शाहजहांपुर में अमर शहीद अशफाक उल्ला खां की मजार पर विशेष कार्यक्रम करके उन्हें याद किया जाता है. शहीद अशफाक उल्ला खां के प्रपौत्र अशफाक उल्ला का यह भी कहना है कि शहीद अशफाक उल्ला खान की फांसी से पहले परिवार उनसे मिलने गया था. उन्होंने खुशी जाहिर की थी कि वे देश की आजादी के लिए अपनी जान दे रहे हैं.

शहीद अशफाक उल्ला खां की प्रतिमा.
शहीद अशफाक उल्ला खां की प्रतिमा.

शहीद अशफाक उल्ला खां ने मां को लिखा था आखिरी खत
अमर शहीद अशफाक उल्ला खां ने फांसी से पहले अपनी मां को एक खत भी लिखा था, जिसमें लिखा था कि 'ऐ दुखिया मां, मेरा वक्त बहुत करीब आ गया है, मैं फांसी के फंदे पर जाकर आपसे रुखसत हो जाऊंगा, लेकिन आप पढ़ी-लिखी मां हैं. ईश्वर ने और कुदरत ने मुझे आपकी गोद में दिया था. लोग आपको मुबारकबाद देते थे. मेरी पैदाइश पर आप लोगों से कहा करती थे कि यह अल्लाह ताला की अमानत है. अगर मैं उसकी अमानत था तो वो अब इस देश के लिए अपनी अमानत मांग रहे हैं. आपको अमानत में खयानत नहीं करनी चाहिए और इस देश को सौंप देना चाहिए.' अशफाक उल्ला खान ने फांसी से पहले एक आखरी श्येर भी कहा था, 'कुछ आरजू नहीं है, है आरजू तो ये है कि रख दे कोई जरा सी खाक-ए-वतन कफन में.'

शाहजहांपुर: 'शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का बस यही बाकी निशां होगा.' यह चंद लाइनें शाहजहांपुर के अमर शहीद अशफाक उल्ला खां पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं. देश को आजादी दिलाने के लिए उन्होंने अपने जान की कुर्बानी दे दी. उन्हीं की याद में 19 दिसंबर को बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है.

देश के लिए कुछ करने का था जज्बा
दरअसल, शाहजहांपुर को शहीदों की नगरी के रूप में जाना जाता है. यह स्थान काकोरी कांड के महानायक क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खां, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह की जन्मस्थली है. शाहजहांपुर से ही काकोरी कांड की रूपरेखा तैयार की गई थी, जिसके बाद काकोरी कांड को अंजाम तक पहुंचाया गया. इसके बाद अंग्रेजों ने इन तीनों क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करके अलग-अलग जेलों में डाल दिया और 19 दिसंबर 1927 को इन महानायकों को फांसी दे दी गई.

स्पेशल रिपोर्ट.

शहीद अशफाक उल्ला खां का जन्म शहर के मोहल्ला एमनजई जलालनगर में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था. उन्होंने शाहजहांपुर के एवी रिच इंटर कॉलेज में पढ़ाई की. यहां राम प्रसाद बिस्मिल उनके सहपाठी थे. दोनों कॉलेज में पढ़ने के बाद आर्य समाज मंदिर में देश की आजादी की रूपरेखा तैयार करते थे. इसी वजह से आज भी यह आर्य समाज मंदिर हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है.

इस मंदिर में राम प्रसाद बिस्मिल के पिता पुजारी थे. जबकि, अशफाक उल्ला खां कट्टर मुसलमान थे. लेकिन, दोनों दोस्त एक ही थाली में खाना खाया करते थे. इन दोनों महान क्रांतिकारियों की दोस्ती आज भी हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है. अशफाक उल्ला खां आर्य समाज मंदिर में अपना ज्यादा से ज्यादा समय बिताते थे.

काकोरी कांड से बौखला गई थी अंग्रेजी हुकूमत
दोनों मित्र देश की आजादी के लिए इसी मंदिर में नई-नई योजनाएं बनाया करते थे. इन दोनों की अमर दोस्ती ने काकोरी कांड में अंग्रेजों से लोहा लिया था. शहीद अशफाक उल्ला खां के प्रपौत्र अशफाक उल्ला का कहना है कि शहीद अशफाक उल्ला खां, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और राजेंद्र लहरी इन सभी क्रांतिकारियों को ब्रिटिश हुकूमत ने काकोरी कांड को अंजाम देने वाला मानते हुए 19 दिसंबर 1927 को अलग-अलग जिलों में फांसी दे दी थी.

शहीद के नाम से बना है पार्क.
शहीद के नाम से बना है पार्क.

हिंदुस्तान की आजादी के लिए इन क्रांतिकारियों ने अपना बलिदान दिया. 19 दिसंबर को देश के अलग-अलग कोनों में इन्हीं शहीदों याद किया जाता है. शाहजहांपुर जिला शहीदों को याद करने में अग्रणी है, क्योंकि यहां काकोरी कांड के तीन शहीद अशफाक उल्ला खां, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह की जन्मस्थली है.

मजार में हर वर्ष होता है कार्यक्रम
19 दिसंबर को शाहजहांपुर में अमर शहीद अशफाक उल्ला खां की मजार पर विशेष कार्यक्रम करके उन्हें याद किया जाता है. शहीद अशफाक उल्ला खां के प्रपौत्र अशफाक उल्ला का यह भी कहना है कि शहीद अशफाक उल्ला खान की फांसी से पहले परिवार उनसे मिलने गया था. उन्होंने खुशी जाहिर की थी कि वे देश की आजादी के लिए अपनी जान दे रहे हैं.

शहीद अशफाक उल्ला खां की प्रतिमा.
शहीद अशफाक उल्ला खां की प्रतिमा.

शहीद अशफाक उल्ला खां ने मां को लिखा था आखिरी खत
अमर शहीद अशफाक उल्ला खां ने फांसी से पहले अपनी मां को एक खत भी लिखा था, जिसमें लिखा था कि 'ऐ दुखिया मां, मेरा वक्त बहुत करीब आ गया है, मैं फांसी के फंदे पर जाकर आपसे रुखसत हो जाऊंगा, लेकिन आप पढ़ी-लिखी मां हैं. ईश्वर ने और कुदरत ने मुझे आपकी गोद में दिया था. लोग आपको मुबारकबाद देते थे. मेरी पैदाइश पर आप लोगों से कहा करती थे कि यह अल्लाह ताला की अमानत है. अगर मैं उसकी अमानत था तो वो अब इस देश के लिए अपनी अमानत मांग रहे हैं. आपको अमानत में खयानत नहीं करनी चाहिए और इस देश को सौंप देना चाहिए.' अशफाक उल्ला खान ने फांसी से पहले एक आखरी श्येर भी कहा था, 'कुछ आरजू नहीं है, है आरजू तो ये है कि रख दे कोई जरा सी खाक-ए-वतन कफन में.'

Last Updated : Dec 19, 2020, 7:41 AM IST
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