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दिवस विशेष: आज ही हंसते हंसते फांसी पर झूल गए थे अशफाक, बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह

शाहजहांपुर को शहीदों की नगरी के रूप में जाना जाता है, क्योंकि यह स्थान काकोरी कांड के महानायक क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खां, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह की जन्मस्थली है. शाहजहांपुर से ही काकोरी कांड की रूपरेखा तैयार की गई थी. जिसके बाद काकोरी कांड को अंजाम तक पहुंचाया गया था. जिसके बाद अंग्रेजों ने इन तीनों क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करके अलग-अलग जेलों में डाल दिया था और 19 दिसंबर 1927 को इन तीनों काकोरी कांड के महानायको को फांसी दे दी गई थी.

दिवस विशेष
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Published : Dec 19, 2021, 10:40 AM IST

शाहजहांपुर: "शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का बस यही बाकी निशां होगा". यह चंद लाइने अमर शहीद अशफाक उल्ला खां पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं, जो मुल्क की आजादी के खातिर हंसते हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए. अशफाक उल्ला खां और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की दोस्ती हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल है. इन शहीदों की कुर्बानी पर आज हर कोई फक्र करता है. काकोरी कांड के महानायक अशफाक उल्ला खां का परिवार उनकी एक एक ऐतिहासिक पल को संजोए रखा हुआ है. आज ही के दिन अशफाक उल्ला खां और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और रोशन सिंह को फांसी दी गई थी. ETV भारत की टीम आज पहुंची है शहीद अशफाक उल्ला खां के घर जहां उनके प्रपौत्र अशफाक उल्ला खां ने उनके जीवन की घटनाओं पर प्रकाश डाला.

शहीद अशफाक उल्ला खां का जन्म शहर के मोहल्ला एमनजई जलालनगर में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था, उन्होंने शाहजहांपुर के एवी रिच इंटर कॉलेज में पढ़ाई की थी. यहां उनके साथ राम प्रसाद बिस्मिल उनके सहपाठी थे. यह दोनों कॉलेज में पढ़ने के बाद आर्य समाज मंदिर में देश की आजादी की रूपरेखा तैयार करते थे. जिले का आर्य समाज मंदिर हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल है. इस मंदिर के पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के पिता पुजारी थे. यही आर्य समाज मंदिर, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खां की दोस्ती आज भी हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल पेश करती है. दोनों एक ही थाली में खाना खाया करते थे. मुस्लिम होते हुए भी अशफाक उल्ला खां आर्य समाज मंदिर में अपना ज्यादा से ज्यादा समय बिताते थे और देश की आजादी के लिए इसी अर्थ में आज मंदिर में नई नई योजनाएं बनाया करते थे. इन दोनों की अमर दोस्ती ने काकोरी कांड करके अंग्रेजों से लोहा लिया था. काकोरी कांड के बाद दोनों दोस्तों को अलग-अलग जेलों में फांसी दे दी गई और दोनों 19 दिसंबर 1927 को हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए.

शहीद अशफाक उल्ला खां के प्रपौत्र अशफाक उल्ला



शहीद अशफाक उल्ला खां के प्रपौत्र अशफाक उल्ला का कहना है कि शहीद अशफाक उल्ला खां, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और राजेंद्र लहरी इन सभी क्रांतिकारियों को ब्रिटिश हुकूमत ने काकोरी कांड को अंजाम देने बाला मानते हुए 19 दिसंबर 1927 को अलग-अलग जिलों में फांसी दे दी थी. हिंदुस्तान की आजादी के लिए इन क्रांतिकारियों ने अपना बलिदान दिया था. 19 दिसंबर को देश के अलग-अलग कोनों में इन्हीं शहीदों याद किया जाता है.

उनका कहना है कि काकोरी कांड के तीन शहीद अशफाक उल्ला खां, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह शाहजहांपुर के हैं. 19 दिसंबर को शाहजहांपुर में अशफाक उल्ला खां की मजार पर विशेष कार्यक्रम किया जाता है और उनको याद किया जाता है. उनको याद करना बेहद जरूरी है. क्योंकि हिंदुस्तान की आजादी में बच्चों और नौजवानों को इतिहास के बारे में पूरी जानकारी हो, हम सभी क्रांतिकारियों के परिवार के लोग चाहते हैं कि पढ़ाई के सिलेबस में क्रांतिकारियों के योगदान के बारे में भी पढ़ाया जाए जिससे लोगों में राष्ट्रप्रेम जागृत हो.

यह भी पढ़ें- बिस्मिल की शहादत की याद का दिन, यादगार लम्हों को समेटे है गोरखपुर जेल


उनका कहना है कि शहीद अशफाक उल्ला खां की फांसी से पहले मेरा परिवार मिला था. उन्होंने बताया कि फांसी के फंदे पर जाते वक्त अशफाक ने अपनी मां को एक खत भी लिखा था, जिसमें लिखा था ऐ दुखिया मां मेरा वक्त बहुत करीब आ गया है. मैं फांसी के फंदे पर जाकर आपसे रुखसत हो जाऊंगा. लेकिन आप पढ़ी-लिखी मां हैं. ईश्वर ने कुदरत ने मुझे आपकी गोद में दिया था. लोग आपको मुबारकबाद देते थे. मेरी पैदाइश पर और आप लोगों से कहा करते थे कि यह अल्लाह ताला की अमानत है. अगर मैं उसकी अमानत था वो इस देश के लिए अपनी अमानत मांग रहा है तो आपको अमानत में खयानत नहीं करनी चाहिए और इस देश को सौंप देना चाहिए.

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शाहजहांपुर: "शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का बस यही बाकी निशां होगा". यह चंद लाइने अमर शहीद अशफाक उल्ला खां पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं, जो मुल्क की आजादी के खातिर हंसते हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए. अशफाक उल्ला खां और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की दोस्ती हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल है. इन शहीदों की कुर्बानी पर आज हर कोई फक्र करता है. काकोरी कांड के महानायक अशफाक उल्ला खां का परिवार उनकी एक एक ऐतिहासिक पल को संजोए रखा हुआ है. आज ही के दिन अशफाक उल्ला खां और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और रोशन सिंह को फांसी दी गई थी. ETV भारत की टीम आज पहुंची है शहीद अशफाक उल्ला खां के घर जहां उनके प्रपौत्र अशफाक उल्ला खां ने उनके जीवन की घटनाओं पर प्रकाश डाला.

शहीद अशफाक उल्ला खां का जन्म शहर के मोहल्ला एमनजई जलालनगर में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था, उन्होंने शाहजहांपुर के एवी रिच इंटर कॉलेज में पढ़ाई की थी. यहां उनके साथ राम प्रसाद बिस्मिल उनके सहपाठी थे. यह दोनों कॉलेज में पढ़ने के बाद आर्य समाज मंदिर में देश की आजादी की रूपरेखा तैयार करते थे. जिले का आर्य समाज मंदिर हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल है. इस मंदिर के पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के पिता पुजारी थे. यही आर्य समाज मंदिर, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खां की दोस्ती आज भी हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल पेश करती है. दोनों एक ही थाली में खाना खाया करते थे. मुस्लिम होते हुए भी अशफाक उल्ला खां आर्य समाज मंदिर में अपना ज्यादा से ज्यादा समय बिताते थे और देश की आजादी के लिए इसी अर्थ में आज मंदिर में नई नई योजनाएं बनाया करते थे. इन दोनों की अमर दोस्ती ने काकोरी कांड करके अंग्रेजों से लोहा लिया था. काकोरी कांड के बाद दोनों दोस्तों को अलग-अलग जेलों में फांसी दे दी गई और दोनों 19 दिसंबर 1927 को हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए.

शहीद अशफाक उल्ला खां के प्रपौत्र अशफाक उल्ला



शहीद अशफाक उल्ला खां के प्रपौत्र अशफाक उल्ला का कहना है कि शहीद अशफाक उल्ला खां, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और राजेंद्र लहरी इन सभी क्रांतिकारियों को ब्रिटिश हुकूमत ने काकोरी कांड को अंजाम देने बाला मानते हुए 19 दिसंबर 1927 को अलग-अलग जिलों में फांसी दे दी थी. हिंदुस्तान की आजादी के लिए इन क्रांतिकारियों ने अपना बलिदान दिया था. 19 दिसंबर को देश के अलग-अलग कोनों में इन्हीं शहीदों याद किया जाता है.

उनका कहना है कि काकोरी कांड के तीन शहीद अशफाक उल्ला खां, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह शाहजहांपुर के हैं. 19 दिसंबर को शाहजहांपुर में अशफाक उल्ला खां की मजार पर विशेष कार्यक्रम किया जाता है और उनको याद किया जाता है. उनको याद करना बेहद जरूरी है. क्योंकि हिंदुस्तान की आजादी में बच्चों और नौजवानों को इतिहास के बारे में पूरी जानकारी हो, हम सभी क्रांतिकारियों के परिवार के लोग चाहते हैं कि पढ़ाई के सिलेबस में क्रांतिकारियों के योगदान के बारे में भी पढ़ाया जाए जिससे लोगों में राष्ट्रप्रेम जागृत हो.

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उनका कहना है कि शहीद अशफाक उल्ला खां की फांसी से पहले मेरा परिवार मिला था. उन्होंने बताया कि फांसी के फंदे पर जाते वक्त अशफाक ने अपनी मां को एक खत भी लिखा था, जिसमें लिखा था ऐ दुखिया मां मेरा वक्त बहुत करीब आ गया है. मैं फांसी के फंदे पर जाकर आपसे रुखसत हो जाऊंगा. लेकिन आप पढ़ी-लिखी मां हैं. ईश्वर ने कुदरत ने मुझे आपकी गोद में दिया था. लोग आपको मुबारकबाद देते थे. मेरी पैदाइश पर और आप लोगों से कहा करते थे कि यह अल्लाह ताला की अमानत है. अगर मैं उसकी अमानत था वो इस देश के लिए अपनी अमानत मांग रहा है तो आपको अमानत में खयानत नहीं करनी चाहिए और इस देश को सौंप देना चाहिए.

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